Monday, June 28, 2010
सरकार hai या लाला जी की dukan
वाह लाला जी वाह किया दुकान सजी है देखो देखो देखो---------------------------------------------------------------------Petrol Pricing in Delhi !!Basic Price = Rs 21.93Excise duty = Rs 14.35Education Tax = Rs 0.43Dealer commission = Rs 1.05VAT = Rs 5.5Crude Oil Custom duty = Rs 1.1Petrol Custom = Rs 1.54Transportation Charge = Rs 6.00Total price = Rs 51.43!!!!
Saturday, June 26, 2010
आज का joke
बेटा: मम्मी ये गर्ल फ्रेंड क्या होती है?मम्मी: जब तुम बड़े होके अच्छे लड़के बनोगे तो तुम्हें भी एक मिलेगी!बेटा: अगर अच्छा लड़का नहीं बना तो?मम्मी: तो फिर बहुत सारी मिलेगी!
एक फूल और एक noor
वाह री सरकार जीत लिया जनता का gharbar सरकार का दिल दरिया जनता का समुंदर.एक तरफ चाकू और दूसरी तरफ मरहम.वाह री सरकार तेरी जय जय kar
Friday, June 25, 2010
गर्मी सा rahat
आज का दिन बाकि दिनों सा काफी aacha raha गर्मी सा राहत कुछ समय का लिया मिली तापमान कुल मिला कर आच्हा रहा .
Thursday, June 24, 2010
Wednesday, June 23, 2010
सोचो achha
Aj ka am aadami ki soch badal gaye ही एक साहिब का ब्लॉग पर पढ़ा मेट्रो हिन्दू की बपौती hi
हम तो सारा जहाँ हिन्दू की बपौती मानता hi
हम तो सारा जहाँ हिन्दू की बपौती मानता hi
Saturday, June 19, 2010
बनारस शहर
बनारस शहर के बारे मैं मोटा मोटा बता देते हैं :
पौराणिक कथाओं के अनुसार, काशी नगर की स्थापना हिन्दू भगवान शिव ने लगभग ५००० वर्ष पूर्व की थी, जिस कारण ये आज एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। ये हिन्दुओं की पवित्र सप्तपुरियों में से एक है। स्कन्द पुराण, रामायण, महाभारत एवं प्राचीनतम वेद ऋग्वेद सहित कई हिन्दू ग्रन्थों में इस नगर का उल्लेख आता है। सामान्यतया वाराणसी शहर को लगभग ३००० वर्ष प्राचीन माना जाता है। परन्तु हिन्दू परम्पराओं के अनुसार काशी को इससे भी अत्यंत प्राचीन माना जाता है। नगर मलमल और रेशमी कपड़ों, इत्रों, हाथी दांत और शिल्प कला के लिये व्यापारिक एवं औद्योगिक केन्द्र रहा है। गौतम बुद्ध (जन्म ५६७ ई.पू.) के काल में, वाराणसी काशी राज्य की राजधानी हुआ करता था। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने नगर को धार्मिक, शैक्षणिक एवं कलात्मक गतिविधियों का केन्द्र बताया है और इसका विस्तार गंगा नदी के किनारे ५ कि.मी. तक लिखा है।
वाराणसी गंगा तट पर बसी काशी बड़ी पुरानी नगरी है। इतने प्राचीन नगर संसार में बहुत नहीं हैं। हजारों वर्ष पूर्व कुछ नाटे कद के साँवले लोगों ने इस नगर की नींव डाली थी। तभी यहाँ कपड़े और चाँदी का व्यापार शुरू हुआ। काशी के पास ही अयोध्या में भी तभी राजकुल बसा। उसे राजा इक्ष्वाकु का कुल कहते थे, यानि सूर्यवंश। काशी में चन्द्र वंश की स्थापना हुई। सैकड़ों वर्ष काशी नगर पर भरत राजकुल के चन्द्रवंशी राजा राज करते रहे। काशी तब आर्यों के पूर्वी नगरों में से थी, पूर्व में उनके राज की सीमा। उससे परे पूर्व का देश अपवित्र माना जाता था।
महाभारत काल
महाभारत काल में काशी भारत के समृद्ध जनपदों में से एक था। महाभारत में वर्णित एक कथा के अनुसार एक स्वयंवर में पाण्डवों और कौरवों के पितामह भीष्म ने काशी नरेश की तीन पुत्रियों अंबा, अंबिका और अंबालिका का अपहरण किया था। इस अपहरण के परिणामस्वरूप काशी और हस्तिनापुर की शत्रुता हो गई। कर्ण ने भी दुर्योधन के लिये काशी राजकुमारी का बलपूर्वक अपहरण किया था, जिस कारण काशी नरेश महाभारत के युद्ध में पाण्डवों की तरफ से लड़े थे। कालांतर में गंगा की बाढ़ ने हस्तिनापुर को डुबा दिया, तब पाण्डवों के वंशज वर्तमान इलाहाबाद जिले में यमुना किनारे कौशाम्बी में नई राजधानी बनाकर बस गए। उनका राज्य वत्स कहलाया और काशी पर वत्स का अधिकार हो गया।
सके बाद ब्रह्मदत्त नाम के राजकुल का काशी पर अधिकार हुआ। उस कुल में बड़े पंडित शासक हुए और में ज्ञान और पंडिताई ब्राह्मणों से क्षत्रियों के पास पहुंच गई थी। इनके समकालीन पंजाब में कैकेय राजकुल में राजा अश्वपति था। तभी गंगा-यमुना के दोआब में राज करने वाले पांचालों में राजा प्रवहण जैबलि ने भी अपने ज्ञान का डंका बजाया था। इसी काल में जनकपुर, मिथिला में विदेहों के शासक जनक हुए, जिनके दरबार में याज्ञवल्क्य जैसे ज्ञानी महर्षि और गार्गी जैसी पंडिता नारियां शास्त्रार्थ करती थीं। इनके समकालीन काशी राज्य का राजा अजातशत्रु हुआ। ये आत्मा और परमात्मा के ज्ञान में अनुपम था। ब्रह्म और जीवन के सम्बन्ध पर, जन्म और मृत्यु पर, लोक-परलोक पर तब देश में विचार हो रहे थे। इन विचारों को उपनिषद् कहते हैं। इसी से यह काल भी उपनिषद-काल कहलाता है।
महाजनपद युग
युग बदलने के साथ ही वैशाली और मिथिला के लिच्छवियों में साधु वर्धमान महावीर हुए, कपिलवस्तु के शाक्यों में गौतम बुद्ध हुए। उन्हीं दिनों काशी का राजा अश्वसेन हुआ। इनके यहां पार्श्वनाथ हुए जो जैन धर्म के २३वें तीर्थंकर हुए। उन दिनों भारत में चार राज्य प्रबल थे जो एक-दूसरे को जीतने के लिए, आपस में बराबर लड़ते रहते थे। ये राह्य थे मगध, कोसल, वत्स और उज्जयिनी। कभी काशी वत्सों के हाथ में जाती, कभी मगध के और कभी कोसल के। पार्श्वनाथ के बाद और बुद्ध से कुछ पहले, कोसल-श्रावस्ती के राजा कंस ने काशी को जीतकर अपने राज में मिला लिया। उसी कुल के राजा महाकोशल ने तब अपनी बेटी कोसल देवी का मगध के राजा बिम्बसार से विवाह कर दहेज के रूप में काशी की वार्षिक आमदनी एक लाख मुद्रा प्रतिवर्ष देना आरंभ किया और इस प्रकार काशी मगध के नियंत्रण में पहुंच गई। राज के लोभ से मगध के राजा बिम्बसार के बेटे अजातशत्रु ने पिता को मारकर गद्दी छीन ली। तब विधवा बहन कोसलदेवी के दुःख से दुःखी उसके भाई कोसल के राजा प्रसेनजित ने काशी की आमदनी अजातशत्रु को देना बन्द कर दिया जिसका परिणाम मगध और कोसल समर हुई। इसमें कभी काशी कोसल के, कभी मगध के हाथ लगी। अन्ततः अजातशत्रु की जीत हुई और काशी उसके बढ़ते हुए साम्राज्य में समा गई। बाद में मगध की राजधानी राजगृह से पाटलिपुत्र चली गई और फिर कभी काशी पर उसका आक्रमण नहीं हो पाया।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, काशी नगर की स्थापना हिन्दू भगवान शिव ने लगभग ५००० वर्ष पूर्व की थी, जिस कारण ये आज एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। ये हिन्दुओं की पवित्र सप्तपुरियों में से एक है। स्कन्द पुराण, रामायण, महाभारत एवं प्राचीनतम वेद ऋग्वेद सहित कई हिन्दू ग्रन्थों में इस नगर का उल्लेख आता है। सामान्यतया वाराणसी शहर को लगभग ३००० वर्ष प्राचीन माना जाता है। परन्तु हिन्दू परम्पराओं के अनुसार काशी को इससे भी अत्यंत प्राचीन माना जाता है। नगर मलमल और रेशमी कपड़ों, इत्रों, हाथी दांत और शिल्प कला के लिये व्यापारिक एवं औद्योगिक केन्द्र रहा है। गौतम बुद्ध (जन्म ५६७ ई.पू.) के काल में, वाराणसी काशी राज्य की राजधानी हुआ करता था। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने नगर को धार्मिक, शैक्षणिक एवं कलात्मक गतिविधियों का केन्द्र बताया है और इसका विस्तार गंगा नदी के किनारे ५ कि.मी. तक लिखा है।
वाराणसी गंगा तट पर बसी काशी बड़ी पुरानी नगरी है। इतने प्राचीन नगर संसार में बहुत नहीं हैं। हजारों वर्ष पूर्व कुछ नाटे कद के साँवले लोगों ने इस नगर की नींव डाली थी। तभी यहाँ कपड़े और चाँदी का व्यापार शुरू हुआ। काशी के पास ही अयोध्या में भी तभी राजकुल बसा। उसे राजा इक्ष्वाकु का कुल कहते थे, यानि सूर्यवंश। काशी में चन्द्र वंश की स्थापना हुई। सैकड़ों वर्ष काशी नगर पर भरत राजकुल के चन्द्रवंशी राजा राज करते रहे। काशी तब आर्यों के पूर्वी नगरों में से थी, पूर्व में उनके राज की सीमा। उससे परे पूर्व का देश अपवित्र माना जाता था।
महाभारत काल
महाभारत काल में काशी भारत के समृद्ध जनपदों में से एक था। महाभारत में वर्णित एक कथा के अनुसार एक स्वयंवर में पाण्डवों और कौरवों के पितामह भीष्म ने काशी नरेश की तीन पुत्रियों अंबा, अंबिका और अंबालिका का अपहरण किया था। इस अपहरण के परिणामस्वरूप काशी और हस्तिनापुर की शत्रुता हो गई। कर्ण ने भी दुर्योधन के लिये काशी राजकुमारी का बलपूर्वक अपहरण किया था, जिस कारण काशी नरेश महाभारत के युद्ध में पाण्डवों की तरफ से लड़े थे। कालांतर में गंगा की बाढ़ ने हस्तिनापुर को डुबा दिया, तब पाण्डवों के वंशज वर्तमान इलाहाबाद जिले में यमुना किनारे कौशाम्बी में नई राजधानी बनाकर बस गए। उनका राज्य वत्स कहलाया और काशी पर वत्स का अधिकार हो गया।
सके बाद ब्रह्मदत्त नाम के राजकुल का काशी पर अधिकार हुआ। उस कुल में बड़े पंडित शासक हुए और में ज्ञान और पंडिताई ब्राह्मणों से क्षत्रियों के पास पहुंच गई थी। इनके समकालीन पंजाब में कैकेय राजकुल में राजा अश्वपति था। तभी गंगा-यमुना के दोआब में राज करने वाले पांचालों में राजा प्रवहण जैबलि ने भी अपने ज्ञान का डंका बजाया था। इसी काल में जनकपुर, मिथिला में विदेहों के शासक जनक हुए, जिनके दरबार में याज्ञवल्क्य जैसे ज्ञानी महर्षि और गार्गी जैसी पंडिता नारियां शास्त्रार्थ करती थीं। इनके समकालीन काशी राज्य का राजा अजातशत्रु हुआ। ये आत्मा और परमात्मा के ज्ञान में अनुपम था। ब्रह्म और जीवन के सम्बन्ध पर, जन्म और मृत्यु पर, लोक-परलोक पर तब देश में विचार हो रहे थे। इन विचारों को उपनिषद् कहते हैं। इसी से यह काल भी उपनिषद-काल कहलाता है।
महाजनपद युग
युग बदलने के साथ ही वैशाली और मिथिला के लिच्छवियों में साधु वर्धमान महावीर हुए, कपिलवस्तु के शाक्यों में गौतम बुद्ध हुए। उन्हीं दिनों काशी का राजा अश्वसेन हुआ। इनके यहां पार्श्वनाथ हुए जो जैन धर्म के २३वें तीर्थंकर हुए। उन दिनों भारत में चार राज्य प्रबल थे जो एक-दूसरे को जीतने के लिए, आपस में बराबर लड़ते रहते थे। ये राह्य थे मगध, कोसल, वत्स और उज्जयिनी। कभी काशी वत्सों के हाथ में जाती, कभी मगध के और कभी कोसल के। पार्श्वनाथ के बाद और बुद्ध से कुछ पहले, कोसल-श्रावस्ती के राजा कंस ने काशी को जीतकर अपने राज में मिला लिया। उसी कुल के राजा महाकोशल ने तब अपनी बेटी कोसल देवी का मगध के राजा बिम्बसार से विवाह कर दहेज के रूप में काशी की वार्षिक आमदनी एक लाख मुद्रा प्रतिवर्ष देना आरंभ किया और इस प्रकार काशी मगध के नियंत्रण में पहुंच गई। राज के लोभ से मगध के राजा बिम्बसार के बेटे अजातशत्रु ने पिता को मारकर गद्दी छीन ली। तब विधवा बहन कोसलदेवी के दुःख से दुःखी उसके भाई कोसल के राजा प्रसेनजित ने काशी की आमदनी अजातशत्रु को देना बन्द कर दिया जिसका परिणाम मगध और कोसल समर हुई। इसमें कभी काशी कोसल के, कभी मगध के हाथ लगी। अन्ततः अजातशत्रु की जीत हुई और काशी उसके बढ़ते हुए साम्राज्य में समा गई। बाद में मगध की राजधानी राजगृह से पाटलिपुत्र चली गई और फिर कभी काशी पर उसका आक्रमण नहीं हो पाया।
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