१.संबंधों को पल्लवित करने के लिये समय देना पड़ता है, ...जो की लोगो के पास नहीं है..
२.पाठक ढूढ़ने का श्रम लेखक को करना होता है ...आज कल परिश्रम कोइए नहीं करना चाहता है..
३. अच्छे लेखक को ढूढ़ने का श्रम पाठक को भी करना पड़ता है।...अब पाठक के पास पढ़ने का टाइम है नहीं और आप कहते है की...
४. रेत से पिरामिड नहीं बनते, उनके लिये बड़े पत्थरों की आवश्यकता होती है।...सत्य वचन ...
५.हर निर्णय का आधार होता है,...सब का कुछ न कुछ आधार होता है ..आज कल सर्कार भी आधार कार्ड बनवा रही है ....
आभार प्रवीण पाण्डेय जी का जो की इतना कुछ लिख गए अपनी समझ मैं बस यही सब आया जो समझ आया वह आप सब के सामने है...जाने अनजाने मैं कुछ गलत हो गया हो तो अग्रिम माफ़ी नामा साथ है ....
जय बाबा बनारस....
२.पाठक ढूढ़ने का श्रम लेखक को करना होता है ...आज कल परिश्रम कोइए नहीं करना चाहता है..
३. अच्छे लेखक को ढूढ़ने का श्रम पाठक को भी करना पड़ता है।...अब पाठक के पास पढ़ने का टाइम है नहीं और आप कहते है की...
४. रेत से पिरामिड नहीं बनते, उनके लिये बड़े पत्थरों की आवश्यकता होती है।...सत्य वचन ...
५.हर निर्णय का आधार होता है,...सब का कुछ न कुछ आधार होता है ..आज कल सर्कार भी आधार कार्ड बनवा रही है ....
आभार प्रवीण पाण्डेय जी का जो की इतना कुछ लिख गए अपनी समझ मैं बस यही सब आया जो समझ आया वह आप सब के सामने है...जाने अनजाने मैं कुछ गलत हो गया हो तो अग्रिम माफ़ी नामा साथ है ....
जय बाबा बनारस....