Saturday, February 14, 2015

दोस्ती

 बचपन के निस्वार्थ दोस्त आजकल कहा मिलते है आज तो दोस्त बस अपने अपने स्वार्थ को पूरा करने तक ही रहते है अब कहा है ऐसे दोस्त की दोस्त के माथे पर आये हुए पसीने को देख कर पूरी दुनिया का खून बहाने को तैयार रहते थे और अपनी जान देकर अपनी दोस्ती की मिसाल कायम रखते थे ...अबे बता तो क्या हुआ है ...आग लगा देंगे ...बोल तो सही ...भाई अब नहीं लिखा जा रहा है सोच सोच कर किस किस ने कहा कहा क्या क्या कुर्बान किया था भाई जी बचपन की दोस्ती बहुत सच्चे दोस्त होते थे ...अपने हर सच्चे दोस्त को दिल से राम राम ...

Tuesday, January 6, 2015

जन्नत की हूरे

रात सपने में पता नहीं कब में को मर गया और जन्नत पहुचने के बाद पता लगा की मेरा धर्मपरिवर्तन ,मरने से 2 मिनट पहले हुआ था और मैं सीधा जन्नत में "वाइल्ड Entry कार्ड" के जरिये आ गया हु। मन ही मन बड़ा खुस था चलो यार अब 72 मिलेंगी।
जो मेरे साथ जन्नत का सिपाही चल रहा था मैंने उस से पूछ ही लिया ,भाईजान अभी तक "72 हूर" नहीं दिखाई दी। वो अपने मुह से गुटके की पीक को थूकता हुआ बोला। अबे ! एक रात तो आराम करले ,थोड़ा सब्र करले -कल सुबह आऊंगा और तुझे हुरों के पास लेकर चलूँगा। और मुझे वो सफेद चांदनी में नहाये हुए रेगिस्तान में जो वास्तव में बहुत ही सुन्दर लग रहा था छोड़कर जाने लगा। मैंने उसका हाथ पकड़ा और बोला भाईजान ,यहाँ तो कोई नहीं है मुझे अकेला यहाँ क्यू छोड़कर जा रहे रहे हो। वो बोला- चिंता मत केवल रात की बात है ,तू भी कल से वही होगा ,जहा पर सब बाकी के "चरित्रवान शांतिप्रिय जन्नती" हैं
मैं थोड़ा सा सकपकाया फिर सोचा की यार जन्नत का मामला है अलग तो होगा ही, एक रात की बात है फिर तो 72 हुरे मिल ही जाएंगी। रेत पर लेट गया -आरामदायक रेत था -चांदनी फैली हुई थी -अच्छा शांत वातावरण था -ना कोई गीदड़ रो रहा था और ना ही कोई कुत्ता भोंक रहा था परन्तु नींद नहीं आई दिल तो 72 के फेर में था।
अगले दिन वो सिपाही थोड़ा लेट आया -पूछने पर बोला आज कुछ 14 -15 साल के नाबालिक शांति दूत आये हैं वो कह रहे थे कि हूरों पर पहला हक़ उनका है 
उन सब को कोड़े लगाये जा रहे हैं -हूरो की रानी के आदेश पर और बोला चल बई चल। (एक ख़ास बात बता दू धरती पर तो बिस्तर से उठने के लिए ,एक कप चाय चाहिए यहाँ पर उसकी जरूरत नहीं पड़ी।) 
अब उसने चुटकी बजाई और एक अजीब सा वेहिकल प्रकट हो गया ,कुछ अपने यहाँ के जुगाड़ू टैम्पू की तरह था और सीट नहीं थी उसमे। बिस्तर था जैसे किसी एम्बुलेंस की गाडी में होता है और पता ही नहीं चला कैसे अपन उस पर लेट गए और उसने आँख बंद करने को कहा -कुछ क्षणों के बाद उसने कहा -अबे जन्नती !,उत्तर मंजिल आ गई है।
और उसने मुझे एक कई किलोमीटर लम्बी लाइन में लगा दिया। और बोला यही खड़ा रहा तेरा भी नम्बर आ ही जाएगा -इस ही लाइन में खड़ा रहियो ,तो उम्मीद है की नम्बर आ ही जाएगा -मैंने उसका हाथ पकड़ लिया और बोला भाईजान ये क्या बदतमीज़ी है ? ये तो धोखा धडी है.मुझे तो पता चला था की जानत में 72 हूर मिलती है. वो हंसा -बोला गुटका है तेरे पास -मैंने कहा नहीं ,सिगरेट है -पियेगा 
वो बोला -पहले दे -वैसे बीड़ी भी चलती है -तेरे आगे वाले ने बीड़ी ही पिलाई थी,कई साल पहले। 
उसने सिगरेट ली। मुह में लगाईं और सिगरेट खुद ही जलने लगी और धुंवा अंदर ही सटकता हुआ बोला 
हम्म ! बोल तूने क्या सुना था।
मैंने कहा की जन्नत में "चरितवान् शांति प्रिय" लोगो को 72 हूरें मिलती हैं .उसने कहा की बिलकुल सही सुना और ऐसा ही हैं 'जिस लाइन में तू खड़ा है ,यहा से हज़ार कौस की दुरी पर 72 हूरों के 72 कोठे हैं। एक ही लाइन में बने हुए हैं और सबके आगे इतनी ही बड़ी लाइन लगी है अब देख कितने देर बाद तेरा नम्बर आएगा।' मैं बोला यार ,पता तो ये चला था की हर आदमी को अलग -अलग 72 मिलेंगी। 
तो वो बोला -हाँ अलग अलग ही हैं - 72 हूरें हैं और उनके 72 कोठे हैं -बिलकुल GB रोड की तरह।
मैं बोला - क्या GB रोड ?
वो सिगरेट का लंबा कस मारता हुआ बोला -अबे भादू मैं दिल्ली की बात कर रहा हु -यहाँ आने से पहले वही पर था मैं -समझा ! और सुन एक बात और चुपचाप खड़ा रहियो लाइन में -कुछ लफड़ा किया तो -एक कौस पीछे ले जाकर खड़ा कर देंगे और तेरे से पहले उनका नम्बर आएगा जो तेरे से बाद में आएंगे और उनको तेरे से आगे खड़ा कर देंगे ,
वैसे यार नम्बर तो आएगा ना - मैंने उस से मरी हुई आवाज़ में पूछा। वो बोला अबे ये "हुरे " हैं कोई औरत नहीं है की कोई भी जबरदस्ती कर ले। इनका जब मन होता है लाइन में एक -एक को बुलाती है -मन नहीं है तो कई कई दिन या सालों तक :इन्तजार : कराती हैं, किसी को नहीं बुलाती हैं। यहाँ हूरों की हुक्मरानी है आदमी की नहीं ........फिर भी यार -बता ना नम्बर तो आएगा ना !
वो बोला सुन, उम्मीद पर दुनिया कायम है तू भी तो उम्मीद करके ही धर्मपरिवर्तन करके आया है ,वो ही उम्मीद कायम रख। 100 से 200 साल में नम्बर आ ही जाएगा -आराम से खड़ा रह। खाने पीने की तो कोई चिंता है नहीं, यहाँ पर जितने भी जन्नती - सबकी एक ही चिंता है की -उनको '72 हूर ' कब मिलेंगी 
और कुछ काम है ही नहीं यहाँ करने के लिए ,बस चुपचाप लाइन में खड़ा रहना है , एक ही तो काम है ये , फिर क्या दिक्कत है।
मेरी समझ में ये भी आ गया था की रात को क्यों मैं रेगिस्तान में अकेला था -मेरे सारे जन्नती भाई तो यहाँ लाइन में खड़े थे।
तबी देखा की एक आदमी को 2 जन्नती सिपाही घसीटते हुए मेरे से भी पीछे की और ले जा रहे थे -मैंने अपने साथ के सिपाही की तरफ देखा -उसने अपना मुह खोला -दांतों पर मोबाइल की तरह नम्बर टाइप और कोई ना समझ में आने वाली भाषा में बात करके बोला -ये आदमी 132 साल से लाइन में लगा था आज इस से पहले वाले का नम्बर था -इसके बाद हूरें कुछ दिन के लिए छुटटी पर थी, तो इसको ये सहन नहीं हुआ और इसने अपने से अगले वाले को ध्क्का दे दिया और खुद खड़ा हो गया और जब हूरों के सिपाहियों ने पूछा की ऐसा क्यों किया -तो लगा "सेकुलरी" छाड्ने -बोला -'मैंने तो कोई धक्का दिया ही नहीं है -कोई सबूत हो तो बताओ ? और जोर जोर से चिल्लाने लगा।
इसको ये सिपाही तुमसे एक कोस नहीं -5 कोस पीछे ले जाकर खड़ा करेंगे -ऐसा हुक्म दिया है -उस हूर ने जिसकी ये लाइन में था। और फिर उसने मेरे कंधे पर हाथ रखा और बोला -देख भाई कोई पंगा मत लियो -तुझे बता रहा हु तेरा नम्बर 2178  वर्ष में आ जाएगा। -
जय बाबा बनारस ...

Friday, January 2, 2015

आदमखोर शेर ...

सभी मित्र ध्यान से पढ़े।
एक बार औरंगजेब के दरबार में एक शिकारी जंगल से पकड़कर एक बड़ा भारी शेर लाया ! लोहे के पिंजरे में बंद शेर बार-बार दहाड़ रहा था ! बादशाह कहता था... इससे बड़ा भयानक शेर दूसरा नहीं मिल सकता !
दरबारियों ने हाँ में हाँ मिलायी.. किन्तु वहाँ मौजूद राजा यसवंत सिंह जी ने कहा - इससे भी अधिक शक्तिशाली शेर मेरे पास है ! क्रूर एवं अधर्मी औरंगजेब को बड़ा क्रोध हुआ ! उसने कहा तुम अपने शेर को इससे लड़ने को छोडो.. यदि तुम्हारा शेर हार गया तो तुम्हारा सर काट लिया जायेगा ...... !
दुसरे दिन किले के मैदान में दो शेरों का मुकाबला देखने बहुत बड़ी भीड़ इकट्ठी हो गयी ! औरंगजेब बादशाह भी ठीक समय पर आकर अपने सिंहासन पर बैठ गया ! राजा यशवंत सिंह अपने दस वर्ष के पुत्र पृथ्वी सिंह के साथ आये ! उन्हें देखकर बादशाह ने पूछा-- आपका शेर कहाँ है ?
यशवंत सिंह बोले- मैं अपना शेर अपने साथ लाया हूँ ! आप केवल लडाई की आज्ञा दीजिये ! बादशाह की आज्ञा से जंगली शेर को लोहे के बड़े पिंजड़े में छोड़ दिया गया !
यशवंत सिंह ने अपने पुत्र को उस पिंजड़े में घुस जाने को कहा ! बादशाह एवं वहां के लोग हक्के- बक्के रह गए ! किन्तु दस वर्ष का निर्भीक बालक पृथ्वी सिंह पिता को प्रणाम करके हँसते-हँसते शेर के पिंजड़े में घुस गया !
शेर ने पृथ्वी सिंह की ओर देखा ! उस तेजस्वी बालक के नेत्रों में देखते ही एकबार तो वह पूंछ दबाकर पीछे हट गया.. लेकिन मुस्लिम सैनिकों द्वारा भाले की नोक से उकसाए जाने पर शेर क्रोध में दहाड़ मारकर पृथ्वी सिंह पर टूट पड़ा ! वार बचा कर वीर बालक एक ओर हटा और अपनी तलवार खींच ली !
पुत्र को तलवार निकालते हुए देखकर यशवंत सिंह ने पुकारा - बेटा, तू यह क्या करता है ? शेर के पास तलवार है क्या जो तू उसपर तलवार चलाएगा ? यह हमारे हिन्दू-धर्म की शिक्षाओं के विपरीत है और धर्मयुद्ध नहीं है ! पिता की बात सुनकर पृथ्वी सिंह ने तलवार फेंक दी और निहत्था ही शेर पर टूट पड़ा !
अंतहीन से दिखने वाले एक लम्बे संघर्ष के बाद आख़िरकार उस छोटे से बालक ने शेर का जबड़ा पकड़कर फाड़ दिया और फिर पूरे शरीर को चीर दो टुकड़े कर फेंक दिया ! भीड़ उस वीर बालक पृथ्वी सिंह की जय-जयकार करने लगी !
अपने.. और शेर के खून से लथपथ पृथ्वी सिंह जब पिंजड़े से बाहर निकला तो पिता ने दौड़कर अपने पुत्र को छाती से लगा लिया !
तो ऐसे थे हमारे पूर्वजों के कारनामे.. जिनके मुख-मंडल वीरता के ओज़ से ओतप्रोत रहते थे !
और आज हम क्या बना रहे हैं अपनी संतति को.. सारेगामा लिट्ल चैंप्स के नचनिये.. ?
आज समय फिर से मुड़ कर इतिहास के उसी औरंगजेबी काल की ओर ताक रहा है.. हमें चेतावनी देता हुआ सा..
कि जरूरत है कि हिन्दू अपने बच्चों को फिर से वही हिन्दू संस्कार दें.. ताकि बक्त पड़ने पर वो शेर से भी भिड़ जाये.. न कि “सुवरों” की तरह चिड़ियाघर के पालतू शेर के आगे भी हाथ पैर जोड़ें.. ! जय श्री राम !!
जय बाबा बनारस ...

Wednesday, October 15, 2014

कॉफ़ी -शॉप...दो कप कॉफ़ी

जापान के टोक्यो शहर के निकट एक कस्बा अपनी खुशहाली के लिए प्रसिद्द था एक बार एक व्यक्ति उस कसबे की खुशहाली का कारण जानने के लिए सुबह -सुबह वहाँ पहुंचा . कस्बे में घुसते ही उसे एक कॉफ़ी -शॉप दिखायी दी। उसने मन ही मन सोचा कि मैं यहाँ बैठ कर चुप -चाप लोगों को देखता हूँ , और वह धीरे -धीरे आगे बढ़ते हुए शॉप के अंदर लगी एक कुर्सी पर जा कर बैठ गया .कॉफ़ी-शॉप शहर के रेस्टोरेंटस की तरह ही थी , पर वहाँ उसे लोगों का व्यवहार कुछ अजीब लगा .एक आदमी शॉप में आया और उसने दो कॉफ़ी के पैसे देते हुए कहा , “ दो कप कॉफ़ी , एक मेरे लिए और एक उस दीवार पर। ”
व्यक्ति दीवार की तरफ देखने लगा लेकिन उसे वहाँ कोई नज़र नहीं आया , पर फिर भी उस आदमी को कॉफ़ी देने के बाद वेटर दीवार के पास गया और उस पर कागज़ का एक टुकड़ा चिपका दिया , जिसपर “एक कप कॉफ़ी ” लिखा था .व्यक्ति समझ नहीं पाया कि आखिर माजरा क्या है . उसने सोचा कि कुछ देर और बैठता हूँ , और समझने की कोशिश करता हूँ .
थोड़ी देर बाद एक गरीब मजदूर वहाँ आया , उसके कपड़े फटे -पुराने थे पर फिर भी वह पुरे आत्म -विश्वास के साथ शॉप में घुसा और आराम से एक कुर्सी पर बैठ गया .व्यक्ति सोच रहा था कि एक मजदूर के लिए कॉफ़ी पर इतने पैसे बर्वाद करना कोई समझदारी नहीं है …तभी वेटर मजदूर के पास आर्डर लेने पंहुचा .
“ सर , आपका आर्डर प्लीज !”, वेटर बोला .
“ दीवार से एक कप कॉफ़ी .” , मजदूर ने जवाब दिया .
वेटर ने मजदूर से बिना पैसे लिए एक कप कॉफ़ी दी और दीवार पर लगी ढेर सारे कागज के टुकड़ों में से “एक कप कॉफ़ी ” लिखा एक टुकड़ा निकाल कर डस्टबिन में फेंक दिया .व्यक्ति को अब सारी बात समझ आ गयी थी . कसबे के लोगों का ज़रूरतमंदों के प्रति यह रवैया देखकर वह भाव-विभोर हो गया … उसे लगा , सचमुच लोगों ने मदद का कितना अच्छा तरीका निकाला है जहां एक गरीब मजदूर भी बिना अपना आत्मसम्मान कम किये एक अच्छी सी कॉफ़ी -शॉप में खाने -पीने का आनंद ले सकता है .


जय बाबा बनारस...

ख़ुशी का पुल ...

दो भाई साथ साथ खेती करते थे। मशीनों की भागीदारी और चीजों का व्यवसाय किया करते थे। चालीस साल के साथ के बाद एक छोटी सी ग़लतफहमी की वजह से उनमें पहली बार झगडा हो गया था झगडा दुश्मनी में बदल गया था।
एक सुबह एक बढई बड़े भाई से काम मांगने आया. बड़े भाई ने कहा “हाँ ,मेरे पास तुम्हारे लिए काम हैं। उस तरफ देखो, वो मेरा पडोसी है, यूँ तो वो मेरा भाई है, पिछले हफ्ते तक हमारे खेतों के बीच घास का मैदान हुआ करता था पर मेरा भाई बुलडोजर ले आया और अब हमारे खेतों के बीच ये खाई खोद दी, जरुर उसने मुझे परेशान करने के लिए ये सब किया है अब मुझे उसे मजा चखाना है, तुम खेत के चारों तरफ बाड़ बना दो ताकि मुझे उसकी शक्ल भी ना देखनी पड़े."
“ठीक हैं”, बढई ने कहा।
बड़े भाई ने बढई को सारा सामान लाकर दे दिया और खुद शहर चला गया, शाम को लौटा तो बढई का काम देखकर भौंचक्का रह गया, बाड़ की जगह वहा एक पुल था जो खाई को एक तरफ से दूसरी तरफ जोड़ता था. इससे पहले की बढई कुछ कहता, उसका छोटा भाई आ गया।
छोटा भाई बोला “तुम कितने दरियादिल हो , मेरे इतने भला बुरा कहने के बाद भी तुमने हमारे बीच ये पुल बनाया, कहते कहते उसकी आँखे भर आईं और दोनों एक दूसरे के गले लग कर रोने लगे. जब दोनों भाई सम्भले तो देखा कि बढई जा रहा है।
रुको! मेरे पास तुम्हारे लिए और भी कई काम हैं, बड़ा भाई बोला।
मुझे रुकना अच्छा लगता ,पर मुझे ऐसे कई पुल और बनाने हैं, बढई मुस्कुराकर बोला और अपनी राह को चल दिया.
दिल से मुस्कुराने के लिए जीवन में पुल की जरुरत होती हैं खाई की नहीं। छोटी छोटी बातों पर अपनों से न रूठें।
"दीपावली आ रही है घरेलू रिश्तों के साथ साथ सभी दोस्ती के रिश्तों पर जमी धूल भी साफ कर लेना, खुशियाँ चार गुनी हो जाएंगी"
आने वाली दीपावली आप सभी के लिए खुशियाँ ले कर आए...आहा..!!

जय बाबा बनारस ....

Saturday, September 27, 2014

भिन्डी

एक राजा था उसके महल में एक नया खानसामा ( खाना बनाने वाला ) आया जो बहुत ही चतुर व्यक्ति था और भोजन बहुत लज़ीज़ बनाता था ! उस खानसामे को पता था की राजा की पसंदीदा सब्ज़ी भिन्डी है ! उसने इसीलिए रात के भोजन में भिन्डी बनाई ! जब राजा ने देखा की भिन्डी बनाई गयी है राजा खुश हो गया और चूँकि भिन्डी स्वादिष्ट थी तो भिन्डी खा कर तो और भी गदगद हो गया ! राजा ने खानसामे से खुश होते हुए कहा की : मज़ा आ गया आज तो भिन्डी खा कर भिन्डी क्या ज़बरदस्त सब्ज़ी होती है वाह ! इस पर खानसामा बोला अरे साहब भिन्डी का तो कोई जवाब ही नहीं मैं तो कहता हूँ की सब्ज़ियों की रानी है भिन्डी, भिन्डी जैसी कोई सब्ज़ी नहीं ! राजा और भी खुश हुआ और अपने गले से हीरे की माला निकाल कर उस खानसामे को दी और कहा ये लो तुम्हारा इनाम ! अगले दिन दोपहर का भोजन करने जैसे ही राजा बैठा उसने देखा की खानसामे ने फिर भिन्डी बना दी लेकिन अब राजा ने भिन्डी की इतनी तारीफ कर दी थी उसे मना करते नहीं बना और उसे फिर भिन्डी की तारीफ करना पड़ी और खाना पड़ी और खानसामे ने भी भिन्डी की तारीफ की और राजा ने फिर अपने गले से माला निकाल कर खानसामे को दे दी ! अब बारी थी रात के भोजन की रात के भोजन में फिरसे खानसामे ने भिन्डी बना दी राजा लगातार 2 दिनो से भिन्डी खाके उक्ता चुका था उसने लेकिन उसने जैसे तैसे मन मार के भिन्डी खा ली और चुपचाप एक माला गले से निकाल कर खानसामे को दे दी ! अब अगले दिन जब फिर भोजन करने बैठा राजा उसे फिर भिन्डी नज़र आ गयी ! राजा आग बबूला हो गया भिन्डी देख कर और बोला क्या वाहियात सब्ज़ी होती है भिन्डी क्यों बना दी किसने कहा तुम्हे भिन्डी बनाने को !! खानसामा विनम्रतापूर्वक बोला की साहब भिन्डी तो निहायती घटिया सब्ज़ी होती है मैं तो कहता हूँ की किसी बेवक़ूफ़ को ही पसंद होगी भिन्डी, पता नहीं कैसे खा लेते है लोग भिन्डी !! राजा का ये सुनते ही और भी दिमाग खराब हो गया और वो चिल्लाता हुआ बोला अरे नामाकूल कल तक जब तक मैं भिन्डी की तारीफ कर रहा था तू भी भिन्डी की तारीफ कर रहा था और अब जब मैं भिन्डी की बुराई करने लगा तो तू भी भिन्डी की बुराई करने लगा बड़ा होशियार है तू !! इस पर खानसामा मुस्कुराता हुआ बोला : साहब मैं आपका नौकर हूँ भिन्डी का नहीं !!


जय बाबा बनारस .....

भिन्डी

एक राजा था उसके महल में एक नया खानसामा ( खाना बनाने वाला ) आया जो बहुत ही चतुर व्यक्ति था और भोजन बहुत लज़ीज़ बनाता था ! उस खानसामे को पता था की राजा की पसंदीदा सब्ज़ी भिन्डी है ! उसने इसीलिए रात के भोजन में भिन्डी बनाई ! जब राजा ने देखा की भिन्डी बनाई गयी है राजा खुश हो गया और चूँकि भिन्डी स्वादिष्ट थी तो भिन्डी खा कर तो और भी गदगद हो गया ! राजा ने खानसामे से खुश होते हुए कहा की : मज़ा आ गया आज तो भिन्डी खा कर भिन्डी क्या ज़बरदस्त सब्ज़ी होती है वाह ! इस पर खानसामा बोला अरे साहब भिन्डी का तो कोई जवाब ही नहीं मैं तो कहता हूँ की सब्ज़ियों की रानी है भिन्डी, भिन्डी जैसी कोई सब्ज़ी नहीं ! राजा और भी खुश हुआ और अपने गले से हीरे की माला निकाल कर उस खानसामे को दी और कहा ये लो तुम्हारा इनाम ! अगले दिन दोपहर का भोजन करने जैसे ही राजा बैठा उसने देखा की खानसामे ने फिर भिन्डी बना दी लेकिन अब राजा ने भिन्डी की इतनी तारीफ कर दी थी उसे मना करते नहीं बना और उसे फिर भिन्डी की तारीफ करना पड़ी और खाना पड़ी और खानसामे ने भी भिन्डी की तारीफ की और राजा ने फिर अपने गले से माला निकाल कर खानसामे को दे दी ! अब बारी थी रात के भोजन की रात के भोजन में फिरसे खानसामे ने भिन्डी बना दी राजा लगातार 2 दिनो से भिन्डी खाके उक्ता चुका था उसने लेकिन उसने जैसे तैसे मन मार के भिन्डी खा ली और चुपचाप एक माला गले से निकाल कर खानसामे को दे दी ! अब अगले दिन जब फिर भोजन करने बैठा राजा उसे फिर भिन्डी नज़र आ गयी ! राजा आग बबूला हो गया भिन्डी देख कर और बोला क्या वाहियात सब्ज़ी होती है भिन्डी क्यों बना दी किसने कहा तुम्हे भिन्डी बनाने को !! खानसामा विनम्रतापूर्वक बोला की साहब भिन्डी तो निहायती घटिया सब्ज़ी होती है मैं तो कहता हूँ की किसी बेवक़ूफ़ को ही पसंद होगी भिन्डी, पता नहीं कैसे खा लेते है लोग भिन्डी !! राजा का ये सुनते ही और भी दिमाग खराब हो गया और वो चिल्लाता हुआ बोला अरे नामाकूल कल तक जब तक मैं भिन्डी की तारीफ कर रहा था तू भी भिन्डी की तारीफ कर रहा था और अब जब मैं भिन्डी की बुराई करने लगा तो तू भी भिन्डी की बुराई करने लगा बड़ा होशियार है तू !! इस पर खानसामा मुस्कुराता हुआ बोला : साहब मैं आपका नौकर हूँ भिन्डी का नहीं !!


जय बाबा बनारस .....