Saturday, September 20, 2014

एक कहानी झुण्ड....

विवेकानंद ने एक कहानी का जिक्र कई बार किया है | 
एक शेर का बच्चा अपने झुण्ड से बिछुड जाता है और भेंड़ों के झुण्ड में जा मिलता है | उसका लालन
पालन भेंड़ों की तरह होता है और उसमे भेंड के सारे गुण आ जातें हैं | एक दिन उस भेंड़ों के झुण्ड पर
एक शेर आक्रमण कर देता है सारे भेंड अपनी जान ले कर भागतें हैं | शेर का बच्चा भी भागता है |शेर
को यह सब देख कर मारे आश्चर्य की उसकी आँखें फटी रह जाती है | वह भेंड़ों को छोड़ कर पहले
शेर के बच्चे को पहले दबोचता है | शेर का बच्चा मिमियाने लगता है |शेर उस बच्चे से पूछता है की भेंड तो भाग गए कोई बात नहीं लेकिन तुम क्यों भाग रहे हो ?
शेर का बच्चा मिमियाने लगता है | शेर को बात समझ में आ जाती है ,पास हीं नदी बह रही होती है | शेर उस बच्चे का गर्दन पकड कर नदी में उसका छवि दिखाता है | शेर का बच्चा अपने को पहचान कर जोरदार गर्जन करता है | शेर को मारे खुशी के आंसू छलक आतें हैं |हम भटके हुए शेर के बच्चे हैं समय समय पर कोई कृष्ण अपने गीता के माध्यम से ये बताता है कि हम शेर हैं और खुद को भेंड समझ बैठे हैं और जब हम खुद को पहचानतें हैं तो जितनी खुशी हमें होती है
वर्तमान में भारत की जो दुर्दशा यहाँ के भ्रष्टों ने ,आततायिओं ने बना रखी है ऐसे में हमें अपने शेर होने का परिचय देना हीं होगा | हम शेर बन कर भ्रष्टों के गले दबोचे और एक एक चीज का हिसाब मांगे | हम शेर हैं और शेर की तरह जियें | हमारे नस नस में रक्त की ज्वाला बह रही है | हम ऊर्जा और शक्ति के श्रोत हैं | हम ईश्वरपुत्र हैं ऐसे भाव के साथ जियें |



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