दिल्ली का तो अब सवरूप ही बदल गया है पता ही नहीं लगता है की हम दिल्ली मैं हैं दिल्ली जिसको लोग देश का दिल कहता है अब बिलकुल ही बदल गये है पहले एक दील्ल्ली हुआ करती थी अब तो हर जगह का एक ही हाल है नई दिल्ली ,पुरानी दिल्ली ,अब दिल्ली दिल्ली नहीं रही एक जंग का मैदान है जहा सुबह साईं शाम तम रोजाना आम आदमी एक जंग लड़ता जीत गया तो घर वापस पहुच जाता है नहीं तो दिल्ली के जंग के मैदान मैं ख़तम हो जाता है
पहले कहा जाता था .... दिल्ली है दिलवालों की..... फिर कहा जाने लगा ...दिल्ली है पैसे वालों की. और अब ... दिल्ली है गुर्दे वालों की जो लड़ना मारना जाने.
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