मां दुर्गा के नौ रूपों का ध्यान सारी मनोकामनाएं पूर्ण करने वाला होता है। दुर्गा पूजा के दौरान माता के इन्हीं रूपों की भक्ति-भाव से पूजा-अर्चना की जाती है:
1. शैलपुत्री- पहले स्वरूप में देवी मां पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती के रूप में विराजमान हैं। नंदी नामक वृषभ पर सवार ' शैलपुत्री ' के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प है। शैलराज हिमालय की कन्या होने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा गया। इन्हें समस्त वन्य जीव-जंतुओं की रक्षक माना जाता है। दुर्गम स्थलों पर स्थित बस्तियों में सबसे पहले शैलपुत्री के मंदिर की स्थापना इसीलिए की जाती है कि वह स्थान सुरक्षित रह सके।
2. ब्रह्माचारिणी- दूसरी दुर्गा ' ब्रह्माचारिणी ' को समस्त विद्याओं की ज्ञाता माना गया है। इनकी आराधना से अनंत फल की प्राप्ति और तप , त्याग , वैराग्य , सदाचार , संयम जैसे गुणों की वृद्धि होती है। ' ब्रह्माचारिणी ' का अर्थ हुआ ,तप की चारिणी यानी तप का आचरण करने वाली। यह स्वरूप श्वेत वस्त्र पहने दाएं हाथ में अष्टदल की माला और बाएं हाथ में कमंडल लिए हुए सुशोभित है। कहा जाता है कि देवी ब्रह्माचारिणी अपने पूर्व जन्म में पार्वती स्वरूप में थीं। वह भगवान शिव को पाने के लिए 1000 साल तक सिर्फ फल खाकर रहीं और 3000 साल तक शिव की तपस्या सिर्फ पेड़ों से गिरी पत्तियां खाकर की। कड़ी तपस्या के कारण उन्हें ब्रह्माचारिणी कहा गया।
3. चंद्रघंटा- शक्ति के रूप में विराजमान मां चंद्रघंटा मस्तक पर घंटे के आकार के चंद्रमा को धारण किए हुए हैं। देवी का यह तीसरा स्वरूप भक्तों का कल्याण करता है। इन्हें ज्ञान की देवी भी माना गया है। बाघ पर सवार मां चंद्रघंटा के चारों तरफ अद्भुत तेज दिखाई है। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। यह तीन नेत्रों और दस हाथों वाली हैं। इनके दस हाथों में कमल , धनुष-बाण , कमंडल , तलवार , त्रिशूल और गदा जैसे अस्त्र-शस्त्र हैं। कंठ में सफेद पुष्पों की माला और शीर्ष पर रत्नजडि़त मुकुट विराजमान हैं। यह साधकों को चिरायु ,आरोग्य , सुखी और संपन्न होने का वरदान देती हैं। कहा जाता है कि यह हर समय दुष्टों के संहार के लिए तैयार रहती हैं और युद्घ से पहले उनके घंटे की आवाज ही राक्षसों को भयभीत करने के लिए काफी होती है।
4. कुष्मांडा- चौथे स्वरूप में देवी कुष्मांडा भक्तों को रोग , शोक और विनाश से मुक्त करके आयु , यश , बल और बुद्धि प्रदान करती हैं। यह बाघ की सवारी करती हुईं अष्टभुजाधारी , मस्तक पर रत्नजड़ित स्वर्ण मुकुट पहने उज्जवल स्वरूप वाली दुर्गा हैं। इन्होंने अपने हाथों में कमंडल , कलश , कमल , सुदर्शन चक्र , गदा , धनुष , बाण और अक्षमाला धारण किए हैं। अपनी मंद मुस्कान हंसी से ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इनका नाम कुष्मांडा पड़ा। कहा जाता है कि जब दुनिया नहीं थी , तो चारों तरफ सिर्फ अंधकार था। ऐसे में देवी ने अपनी हल्की-सी हंसी से ब्रह्मांड की उत्पत्ति की। वह सूरज के घेरे में रहती हैं। सिर्फ उन्हीं के अंदर इतनी शक्ति है , जो सूरज की तपिश को सहन कर सकें। मान्यता है कि वह ही जीवन की शक्ति प्रदान करती हैं।
5. स्कन्दमाता- भगवान स्कन्द (कार्तिकेय) की माता होने के कारण देवी के इस पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है। इस रूप में वह कमल के आसन पर विराजमान हैं , इसलिए इन्हें पद्मासन देवी भी कहा जाता है। इनका वाहन भी सिंह है। इन्हें कल्याणकारी शक्ति की अधिष्ठात्री कहा जाता है। यह दोनों हाथों में कमलदल लिए हुए और एक हाथ से अपनी गोद में ब्रह्मस्वरूप सनतकुमार को थामे हुए हैं। स्कन्द माता की गोद में उन्हीं का सूक्ष्म रूप छह सिर वाली देवी का है। अत: इनकी पूजा-अर्चना में मिट्टी की छह मूर्तियां सजाना जरूरी माना गया हैं।
6. कात्यायनी- यह दुर्गा देवताओं और ऋषियों के कार्यों को सिद्ध करने लिए महर्षि कात्यायन के आश्रम में प्रकट हुईं। उनकी पुत्री होने के कारण इनका नाम कात्यायनी पड़ा। देवी कात्यायनी दानवों व पापी जीवियों का नाश करने वाली हैं। ये ऋषि-मुनियों को कष्ट देने वाले दानवों को अपने तेज से ही नष्ट कर देती थीं। यह सिंह पर सवार , चार भुजाओं वाली और सुसज्जित आभा मंडल वाली देवी हैं। इनके बाएं हाथ में कमल और तलवार व दाएं हाथ में स्वस्तिक व आशीर्वाद की मुदा है।
7. कालरात्रि- देवी का सातवां स्वरूप देखने में भयानक अवश्य है , लेकिन यह सदैव शुभ फल देने वाला होता है। इन्हें ' शुभंकरी ' भी कहा जाता है। ' कालरात्रि ' केवल शत्रु एवं दुष्टों का संहार करती हैं। यह काले रंग-रूप वाली , केशों को फैलाकर रखने वाली और चार भुजाओं वाली दुर्गा हैं। यह वर्ण और वेश में अर्द्धनारीश्वर शिव की तांडव मुदा में नजर आती हैं। इनकी आंखों से अग्नि की वर्षा होती है। एक हाथ से शत्रुओं की गर्दन पकड़कर दूसरे हाथ में खड्ग-तलवार से उनका नाश करने वाली कालरात्रि विकट रूप में विराजमान हैं। इनकी सवारी गधर्व यानि गधा है , जो समस्त जीव-जंतुओं में सबसे अधिक परिश्रमी माना गया है।
8. महागौरी- नवरात्रों के आठवें दिन महागौरी की उपासना की जाती है। इससे सभी पाप धुल जाते हैं। देवी ने कठिन तपस्या करके गौर वर्ण प्राप्त किया था। उत्पत्ति के समय आठ वर्ष की आयु की होने के कारण नवरात्र के आठवें दिन इनकी पूजा की जाती है। भक्तों के लिए यह अन्नपूर्णा स्वरूप हैं , इसलिए अष्टमी के दिन कन्याओं के पूजन का विधान है। यह धन , वैभव और सुख-शांति की अधिष्ठात्री देवी हैं। इनका स्वरूप उज्जवल , कोमल ,श्वेतवर्णा तथा श्वेत वस्त्रधारी है। यह एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे में डमरू लिए हुए हैं। गायन और संगीत से प्रसन्न होने वाली ' महागौरी ' सफेद वृषभ यानि बैल पर सवार हैं।
9. सिद्धिदात्री- नवीं शक्ति ' सिद्धिदात्री ' सभी सिद्धियों को प्रदान करने वाली हैं। इनकी उपासना से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। कमल के आसन पर विराजमान देवी हाथों में कमल , शंख , गदा , सुदर्शन चक्र धारण किए हुए हैं। भक्त इनकी पूजा से यश , बल और धन की प्राप्ति करते हैं। सिद्धिदात्री की पूजा के लिए नवाहन का प्रसाद , नवरस युक्त भोजन तथा नौ प्रकार के फल-फूल आदि का अर्पण करना चाहिए। इस तरह नवरात्र का समापन करने वाले भक्तों को धर्म , अर्थ , काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। सिद्धिदात्री देवी सरस्वती का भी स्वरूप हैं , जो श्वेत वस्त्रालंकार से युक्त महाज्ञान और मधुर स्वर से भक्तों को सम्मोहित करती हैं
1. शैलपुत्री- पहले स्वरूप में देवी मां पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती के रूप में विराजमान हैं। नंदी नामक वृषभ पर सवार ' शैलपुत्री ' के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प है। शैलराज हिमालय की कन्या होने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा गया। इन्हें समस्त वन्य जीव-जंतुओं की रक्षक माना जाता है। दुर्गम स्थलों पर स्थित बस्तियों में सबसे पहले शैलपुत्री के मंदिर की स्थापना इसीलिए की जाती है कि वह स्थान सुरक्षित रह सके।
2. ब्रह्माचारिणी- दूसरी दुर्गा ' ब्रह्माचारिणी ' को समस्त विद्याओं की ज्ञाता माना गया है। इनकी आराधना से अनंत फल की प्राप्ति और तप , त्याग , वैराग्य , सदाचार , संयम जैसे गुणों की वृद्धि होती है। ' ब्रह्माचारिणी ' का अर्थ हुआ ,तप की चारिणी यानी तप का आचरण करने वाली। यह स्वरूप श्वेत वस्त्र पहने दाएं हाथ में अष्टदल की माला और बाएं हाथ में कमंडल लिए हुए सुशोभित है। कहा जाता है कि देवी ब्रह्माचारिणी अपने पूर्व जन्म में पार्वती स्वरूप में थीं। वह भगवान शिव को पाने के लिए 1000 साल तक सिर्फ फल खाकर रहीं और 3000 साल तक शिव की तपस्या सिर्फ पेड़ों से गिरी पत्तियां खाकर की। कड़ी तपस्या के कारण उन्हें ब्रह्माचारिणी कहा गया।
3. चंद्रघंटा- शक्ति के रूप में विराजमान मां चंद्रघंटा मस्तक पर घंटे के आकार के चंद्रमा को धारण किए हुए हैं। देवी का यह तीसरा स्वरूप भक्तों का कल्याण करता है। इन्हें ज्ञान की देवी भी माना गया है। बाघ पर सवार मां चंद्रघंटा के चारों तरफ अद्भुत तेज दिखाई है। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। यह तीन नेत्रों और दस हाथों वाली हैं। इनके दस हाथों में कमल , धनुष-बाण , कमंडल , तलवार , त्रिशूल और गदा जैसे अस्त्र-शस्त्र हैं। कंठ में सफेद पुष्पों की माला और शीर्ष पर रत्नजडि़त मुकुट विराजमान हैं। यह साधकों को चिरायु ,आरोग्य , सुखी और संपन्न होने का वरदान देती हैं। कहा जाता है कि यह हर समय दुष्टों के संहार के लिए तैयार रहती हैं और युद्घ से पहले उनके घंटे की आवाज ही राक्षसों को भयभीत करने के लिए काफी होती है।
4. कुष्मांडा- चौथे स्वरूप में देवी कुष्मांडा भक्तों को रोग , शोक और विनाश से मुक्त करके आयु , यश , बल और बुद्धि प्रदान करती हैं। यह बाघ की सवारी करती हुईं अष्टभुजाधारी , मस्तक पर रत्नजड़ित स्वर्ण मुकुट पहने उज्जवल स्वरूप वाली दुर्गा हैं। इन्होंने अपने हाथों में कमंडल , कलश , कमल , सुदर्शन चक्र , गदा , धनुष , बाण और अक्षमाला धारण किए हैं। अपनी मंद मुस्कान हंसी से ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इनका नाम कुष्मांडा पड़ा। कहा जाता है कि जब दुनिया नहीं थी , तो चारों तरफ सिर्फ अंधकार था। ऐसे में देवी ने अपनी हल्की-सी हंसी से ब्रह्मांड की उत्पत्ति की। वह सूरज के घेरे में रहती हैं। सिर्फ उन्हीं के अंदर इतनी शक्ति है , जो सूरज की तपिश को सहन कर सकें। मान्यता है कि वह ही जीवन की शक्ति प्रदान करती हैं।
5. स्कन्दमाता- भगवान स्कन्द (कार्तिकेय) की माता होने के कारण देवी के इस पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है। इस रूप में वह कमल के आसन पर विराजमान हैं , इसलिए इन्हें पद्मासन देवी भी कहा जाता है। इनका वाहन भी सिंह है। इन्हें कल्याणकारी शक्ति की अधिष्ठात्री कहा जाता है। यह दोनों हाथों में कमलदल लिए हुए और एक हाथ से अपनी गोद में ब्रह्मस्वरूप सनतकुमार को थामे हुए हैं। स्कन्द माता की गोद में उन्हीं का सूक्ष्म रूप छह सिर वाली देवी का है। अत: इनकी पूजा-अर्चना में मिट्टी की छह मूर्तियां सजाना जरूरी माना गया हैं।
6. कात्यायनी- यह दुर्गा देवताओं और ऋषियों के कार्यों को सिद्ध करने लिए महर्षि कात्यायन के आश्रम में प्रकट हुईं। उनकी पुत्री होने के कारण इनका नाम कात्यायनी पड़ा। देवी कात्यायनी दानवों व पापी जीवियों का नाश करने वाली हैं। ये ऋषि-मुनियों को कष्ट देने वाले दानवों को अपने तेज से ही नष्ट कर देती थीं। यह सिंह पर सवार , चार भुजाओं वाली और सुसज्जित आभा मंडल वाली देवी हैं। इनके बाएं हाथ में कमल और तलवार व दाएं हाथ में स्वस्तिक व आशीर्वाद की मुदा है।
7. कालरात्रि- देवी का सातवां स्वरूप देखने में भयानक अवश्य है , लेकिन यह सदैव शुभ फल देने वाला होता है। इन्हें ' शुभंकरी ' भी कहा जाता है। ' कालरात्रि ' केवल शत्रु एवं दुष्टों का संहार करती हैं। यह काले रंग-रूप वाली , केशों को फैलाकर रखने वाली और चार भुजाओं वाली दुर्गा हैं। यह वर्ण और वेश में अर्द्धनारीश्वर शिव की तांडव मुदा में नजर आती हैं। इनकी आंखों से अग्नि की वर्षा होती है। एक हाथ से शत्रुओं की गर्दन पकड़कर दूसरे हाथ में खड्ग-तलवार से उनका नाश करने वाली कालरात्रि विकट रूप में विराजमान हैं। इनकी सवारी गधर्व यानि गधा है , जो समस्त जीव-जंतुओं में सबसे अधिक परिश्रमी माना गया है।
8. महागौरी- नवरात्रों के आठवें दिन महागौरी की उपासना की जाती है। इससे सभी पाप धुल जाते हैं। देवी ने कठिन तपस्या करके गौर वर्ण प्राप्त किया था। उत्पत्ति के समय आठ वर्ष की आयु की होने के कारण नवरात्र के आठवें दिन इनकी पूजा की जाती है। भक्तों के लिए यह अन्नपूर्णा स्वरूप हैं , इसलिए अष्टमी के दिन कन्याओं के पूजन का विधान है। यह धन , वैभव और सुख-शांति की अधिष्ठात्री देवी हैं। इनका स्वरूप उज्जवल , कोमल ,श्वेतवर्णा तथा श्वेत वस्त्रधारी है। यह एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे में डमरू लिए हुए हैं। गायन और संगीत से प्रसन्न होने वाली ' महागौरी ' सफेद वृषभ यानि बैल पर सवार हैं।
9. सिद्धिदात्री- नवीं शक्ति ' सिद्धिदात्री ' सभी सिद्धियों को प्रदान करने वाली हैं। इनकी उपासना से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। कमल के आसन पर विराजमान देवी हाथों में कमल , शंख , गदा , सुदर्शन चक्र धारण किए हुए हैं। भक्त इनकी पूजा से यश , बल और धन की प्राप्ति करते हैं। सिद्धिदात्री की पूजा के लिए नवाहन का प्रसाद , नवरस युक्त भोजन तथा नौ प्रकार के फल-फूल आदि का अर्पण करना चाहिए। इस तरह नवरात्र का समापन करने वाले भक्तों को धर्म , अर्थ , काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। सिद्धिदात्री देवी सरस्वती का भी स्वरूप हैं , जो श्वेत वस्त्रालंकार से युक्त महाज्ञान और मधुर स्वर से भक्तों को सम्मोहित करती हैं
आप सभी को सपरिवार नवरात्रि पर्व शुभ एवं मंगलमय हो ....
जय बाबा बनारस....
सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते
ReplyDeleteनवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं|
ReplyDeleteजय हो
ReplyDeleteभक्तों का कल्याण हो...
Maa durga ke navroopon kee sundar pratuti ke liye aabhar..
ReplyDeleteNAVRATRI kee haardik shubhkamnayen
नवरात्र की शुभकामनायें।
ReplyDeleteनवरात्रि और दुर्गापूजा की बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं हो जी
ReplyDeleteनवरात्र की शुभकामनायें।
ReplyDeleteनमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः!
ReplyDeleteजय बाबा बनारस....
ReplyDeleteदेर से ही सही...बढ़िया जानकारी देती पोस्ट के लिए आभार।
ReplyDeleteजय बाबा बनारस।
महत्त्वपूर्ण संकलन.
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