भीड़ में हों तो लोगों का डर
अकेले में हों तो सुनसान राहों का डर
गर्मी में हों तो पसीने से भीगने का डर
हवा चले तो दुपट्टे के उड़ने का डर
कोई न देखे तो अपने चेहरे से डर
कोई देखे तो देखने वाले की आँखों से डर
बचपन हो तो माता-पिता का डर
किशोर हो तो भाइयों का डर
यौवन आये तो दुनिया वालो का डर
राह में कड़ी धुप हो तो,चेहरे के मुरझाने का डर
बारिश आ जाये तो उसमें भीग जाने का डर
वो डरती हैं और तब तक डरती हैं
जब तक उन्हें कोई जीवन साथी नहीं मिल जाता
और वही वो व्यक्ति होता हैं जिसे वो सबसे ज्यादा डराती है!
वो डरती हैं और तब तक डरती हैं
ReplyDeleteजब तक उन्हें कोई जीवन साथी नहीं मिल जाता
...........एकदम सही बात कही है..
बहुत सुंदर कविता जी, अभी बीबी से पुछता हुं कि वो मेरे से कितना डरती हे:) लेकिन कविता पढ कर सच मे आदमी सोचता हे, धन्यवाद
ReplyDeleteएक नया दृष्टिकोण, एकदम नया।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर तरह से आपने इस डर को सामने लाया है !
ReplyDelete-------------
बस एक और हो जाये ....
वाह
ReplyDeleteभाई गजब की रचना ..तजुर्बेकार ही ऐसी रचना लिख सकता है ...बधाई
डर...
ReplyDeleteडर
डर
डर
डर
डर
डर
अमा यार कुछ खुशी की बात करते
बहुत उम्दा विश्लेषण!!
ReplyDeletekya khoob.....................
ReplyDeleteबहुत सटीक बाते कहीं है आपने. ........सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteबिल्कुल नई सोच के साथ लिखी गई रचना। इसका अंत लाजवाब है।
ReplyDeleteवाह,आप की सोच का जवाब नहीं !
ReplyDeleteपढ़ कर आनन्द आ गया !