Wednesday, October 15, 2014

कॉफ़ी -शॉप...दो कप कॉफ़ी

जापान के टोक्यो शहर के निकट एक कस्बा अपनी खुशहाली के लिए प्रसिद्द था एक बार एक व्यक्ति उस कसबे की खुशहाली का कारण जानने के लिए सुबह -सुबह वहाँ पहुंचा . कस्बे में घुसते ही उसे एक कॉफ़ी -शॉप दिखायी दी। उसने मन ही मन सोचा कि मैं यहाँ बैठ कर चुप -चाप लोगों को देखता हूँ , और वह धीरे -धीरे आगे बढ़ते हुए शॉप के अंदर लगी एक कुर्सी पर जा कर बैठ गया .कॉफ़ी-शॉप शहर के रेस्टोरेंटस की तरह ही थी , पर वहाँ उसे लोगों का व्यवहार कुछ अजीब लगा .एक आदमी शॉप में आया और उसने दो कॉफ़ी के पैसे देते हुए कहा , “ दो कप कॉफ़ी , एक मेरे लिए और एक उस दीवार पर। ”
व्यक्ति दीवार की तरफ देखने लगा लेकिन उसे वहाँ कोई नज़र नहीं आया , पर फिर भी उस आदमी को कॉफ़ी देने के बाद वेटर दीवार के पास गया और उस पर कागज़ का एक टुकड़ा चिपका दिया , जिसपर “एक कप कॉफ़ी ” लिखा था .व्यक्ति समझ नहीं पाया कि आखिर माजरा क्या है . उसने सोचा कि कुछ देर और बैठता हूँ , और समझने की कोशिश करता हूँ .
थोड़ी देर बाद एक गरीब मजदूर वहाँ आया , उसके कपड़े फटे -पुराने थे पर फिर भी वह पुरे आत्म -विश्वास के साथ शॉप में घुसा और आराम से एक कुर्सी पर बैठ गया .व्यक्ति सोच रहा था कि एक मजदूर के लिए कॉफ़ी पर इतने पैसे बर्वाद करना कोई समझदारी नहीं है …तभी वेटर मजदूर के पास आर्डर लेने पंहुचा .
“ सर , आपका आर्डर प्लीज !”, वेटर बोला .
“ दीवार से एक कप कॉफ़ी .” , मजदूर ने जवाब दिया .
वेटर ने मजदूर से बिना पैसे लिए एक कप कॉफ़ी दी और दीवार पर लगी ढेर सारे कागज के टुकड़ों में से “एक कप कॉफ़ी ” लिखा एक टुकड़ा निकाल कर डस्टबिन में फेंक दिया .व्यक्ति को अब सारी बात समझ आ गयी थी . कसबे के लोगों का ज़रूरतमंदों के प्रति यह रवैया देखकर वह भाव-विभोर हो गया … उसे लगा , सचमुच लोगों ने मदद का कितना अच्छा तरीका निकाला है जहां एक गरीब मजदूर भी बिना अपना आत्मसम्मान कम किये एक अच्छी सी कॉफ़ी -शॉप में खाने -पीने का आनंद ले सकता है .


जय बाबा बनारस...

ख़ुशी का पुल ...

दो भाई साथ साथ खेती करते थे। मशीनों की भागीदारी और चीजों का व्यवसाय किया करते थे। चालीस साल के साथ के बाद एक छोटी सी ग़लतफहमी की वजह से उनमें पहली बार झगडा हो गया था झगडा दुश्मनी में बदल गया था।
एक सुबह एक बढई बड़े भाई से काम मांगने आया. बड़े भाई ने कहा “हाँ ,मेरे पास तुम्हारे लिए काम हैं। उस तरफ देखो, वो मेरा पडोसी है, यूँ तो वो मेरा भाई है, पिछले हफ्ते तक हमारे खेतों के बीच घास का मैदान हुआ करता था पर मेरा भाई बुलडोजर ले आया और अब हमारे खेतों के बीच ये खाई खोद दी, जरुर उसने मुझे परेशान करने के लिए ये सब किया है अब मुझे उसे मजा चखाना है, तुम खेत के चारों तरफ बाड़ बना दो ताकि मुझे उसकी शक्ल भी ना देखनी पड़े."
“ठीक हैं”, बढई ने कहा।
बड़े भाई ने बढई को सारा सामान लाकर दे दिया और खुद शहर चला गया, शाम को लौटा तो बढई का काम देखकर भौंचक्का रह गया, बाड़ की जगह वहा एक पुल था जो खाई को एक तरफ से दूसरी तरफ जोड़ता था. इससे पहले की बढई कुछ कहता, उसका छोटा भाई आ गया।
छोटा भाई बोला “तुम कितने दरियादिल हो , मेरे इतने भला बुरा कहने के बाद भी तुमने हमारे बीच ये पुल बनाया, कहते कहते उसकी आँखे भर आईं और दोनों एक दूसरे के गले लग कर रोने लगे. जब दोनों भाई सम्भले तो देखा कि बढई जा रहा है।
रुको! मेरे पास तुम्हारे लिए और भी कई काम हैं, बड़ा भाई बोला।
मुझे रुकना अच्छा लगता ,पर मुझे ऐसे कई पुल और बनाने हैं, बढई मुस्कुराकर बोला और अपनी राह को चल दिया.
दिल से मुस्कुराने के लिए जीवन में पुल की जरुरत होती हैं खाई की नहीं। छोटी छोटी बातों पर अपनों से न रूठें।
"दीपावली आ रही है घरेलू रिश्तों के साथ साथ सभी दोस्ती के रिश्तों पर जमी धूल भी साफ कर लेना, खुशियाँ चार गुनी हो जाएंगी"
आने वाली दीपावली आप सभी के लिए खुशियाँ ले कर आए...आहा..!!

जय बाबा बनारस ....