Thursday, November 8, 2012

अपनी उन्नति का मार्ग प्रशस्त करें



एक दिन एक किसान का गधा कुएँ में गिर गया । वह गधा घंटों ज़ोर -ज़ोर से रोता रहा और किसान सुनता रहा और विचार करता रहा कि उसे क्या करना चाहिऐ और क्या नहीं। अंततः उसने निर्णय लिया कि चूंकि गधा काफी बूढा हो चूका था,अतः उसे बचाने से कोई लाभ होने वा
ला नहीं था;और इसलिए उसे कुएँ में ही दफना देना चाहिऐ।

किसान ने अपने सभी पड़ोसियों को मदद के लिए बुलाया। सभी ने एक-एक फावड़ा पकड़ा और कुएँ में मिट्टी डालनी शुरू कर दी। जैसे ही गधे कि समझ में आया कि यह क्या हो रहा है,वह और ज़ोर-ज़ोर से चीख़ चीख़ कर रोने लगा । और फिर ,अचानक वह आश्चर्यजनक रुप से शांत हो गया।
सब लोग चुपचाप कुएँ में मिट्टी डालते रहे। तभी किसान ने कुएँ मेंझाँका तो वह आश्चर्य से सन्न रह गया। अपनी पीठ पर पड़ने वाले हर फावड़े की मिट्टी के साथ वह गधा एक आश्चर्यजनक हरकत कर रहा था। वहहिल-हिल कर उस मिट्टी को नीचे गिरा देता था और फिर एक कद
म बढ़ाकर उस पर चढ़ जाता था।

जैसे-जैसे किसान तथा उसके पड़ोसी उस पर फावड़ों से मिट्टी गिराते वैसे -वैसे वह हिल-हिल कर उस मिट्टी को गिरा देता और एस सीढी ऊपर चढ़ आता । जल्दी ही सबको आश्चर्यचकित करते हुए वह गधा कुएँ के किनारे पर पहुंच गया और फिर कूदकर बाहर भाग गया।

ध्यान रखो ,तुम्हारे जीवन में भी तुम पर बहुत तरह कि मिट्टी फेंकी जायेगी ,बहुत तरह कि गंदगी तुम पर गिरेगी। जैसे कि ,आपको आगे बढ़ने से रोकने के लिए कोई बेकार में ही तुम्हारी आलोचना करेगा,कोई तुम्हारी सफलता से ईर्ष्या के कारण आपको बेकार में ही भला बुरा कहेगा । कोई आपसे आगे निकलने के लिए ऐसे रास्ते अपनाता हुआ दिखेगा जो आपके आदर्शों के विरुद्ध होंगे। ऐसे में आपको हतोत्साहित होकर कुएँ मेंही नहीं पड़े रहना है बल्कि साहस के साथ हिल-हिल कर हर तरह कि गंदगीको गिरा देना है और उससे सीख लेकर,उसे सीढ़ी बनाकर,बिना अपने आदर्शों का त्याग किये अपने कदमों को आगे बढ़ाते जाना है।

अतः याद रखे !जीवन में सदा आगे बढ़ने के लिए--

१)नकारात्मक विचारों को उनके विपरीत सकारात्मक विचारों से विस्थापित करते रहें ।
२)आलोचनाओं से विचलित न हो बल्कि उन्हें उपयोग में लाकर 

एक दिन एक किसान का गधा कुएँ में गिर गया । वह गधा घंटों ज़ोर -ज़ोर से रोता रहा और किसान सुनता रहा और विचार करता रहा कि उसे क्या करना चाहिऐ और क्या नहीं। अंततः उसने निर्णय लिया कि चूंकि गधा काफी बूढा हो चूका था,अतः उसे बचाने से कोई लाभ होने वा
ला नहीं था;और इसलिए उसे कुएँ में ही दफना देना चाहिऐ।

किसान ने अपने सभी पड़ोसियों को मदद के लिए बुलाया। सभी ने एक-एक फावड़ा पकड़ा और कुएँ में मिट्टी डालनी शुरू कर दी। जैसे ही गधे कि समझ में आया कि यह क्या हो रहा है,वह और ज़ोर-ज़ोर से चीख़ चीख़ कर रोने लगा । और फिर ,अचानक वह आश्चर्यजनक रुप से शांत हो गया।
सब लोग चुपचाप कुएँ में मिट्टी डालते रहे। तभी किसान ने कुएँ मेंझाँका तो वह आश्चर्य से सन्न रह गया। अपनी पीठ पर पड़ने वाले हर फावड़े की मिट्टी के साथ वह गधा एक आश्चर्यजनक हरकत कर रहा था। वहहिल-हिल कर उस मिट्टी को नीचे गिरा देता था और फिर एक कद
म बढ़ाकर उस पर चढ़ जाता था।

जैसे-जैसे किसान तथा उसके पड़ोसी उस पर फावड़ों से मिट्टी गिराते वैसे -वैसे वह हिल-हिल कर उस मिट्टी को गिरा देता और एस सीढी ऊपर चढ़ आता । जल्दी ही सबको आश्चर्यचकित करते हुए वह गधा कुएँ के किनारे पर पहुंच गया और फिर कूदकर बाहर भाग गया।

ध्यान रखो ,तुम्हारे जीवन में भी तुम पर बहुत तरह कि मिट्टी फेंकी जायेगी ,बहुत तरह कि गंदगी तुम पर गिरेगी। जैसे कि ,आपको आगे बढ़ने से रोकने के लिए कोई बेकार में ही तुम्हारी आलोचना करेगा,कोई तुम्हारी सफलता से ईर्ष्या के कारण आपको बेकार में ही भला बुरा कहेगा । कोई आपसे आगे निकलने के लिए ऐसे रास्ते अपनाता हुआ दिखेगा जो आपके आदर्शों के विरुद्ध होंगे। ऐसे में आपको हतोत्साहित होकर कुएँ मेंही नहीं पड़े रहना है बल्कि साहस के साथ हिल-हिल कर हर तरह कि गंदगीको गिरा देना है और उससे सीख लेकर,उसे सीढ़ी बनाकर,बिना अपने आदर्शों का त्याग किये अपने कदमों को आगे बढ़ाते जाना है।

अतः याद रखे !जीवन में सदा आगे बढ़ने के लिए--

१)नकारात्मक विचारों को उनके विपरीत सकारात्मक विचारों से विस्थापित करते रहें ।
२)आलोचनाओं से विचलित न हो बल्कि उन्हें उपयोग में लाकर अपनी उन्नति का मार्ग प्रशस्त करें |


-स्वामी अमृतानंद जी
 — 
जय बाबा बनारस।।।

Friday, November 2, 2012

करवाचौथ का भी 'कल्याण'


इस शौक और चलन को क्या कहिये? आज कुंवारी लड़कियां ब्वाय फ्रेंड के लिए व्रत रख रही हैं। सुना है ये साल में किसी को भी, सालों में न जाने कितनों के लिए भी व्रत रख लेती हैं..? मेरी नजर में ये करवाचौथ जैसे तमाम पर्वो की गंगा को मैला करने की निकृष्टतम कोशिश है। इसमें कोई खुश हो सकता है तो वो है बाजार। क्योंकि, उसपर दौलत बरसती है। कोई कुर्बान होता है तो वो है समर्पण और प्रेम, जबकि यही करवाचौथ का मूल है। हमें ताज्जुब होता है ये देखकर कि जो त्योहार कभी बंद कमरों और गुपचुप मनाया जाता था, आज होटलों में मन रहा है। मेरे ख्याल से ये बदलाव महिलाओं के आर्थिक रूप से सशक्त होने से नहीं हुआ। ये चलन तो व्यापार और फैशन से है। बाजार की ताकतें ही अब दुनिया चला रही हैं।
दरअसल, हिंदुस्तान के तमाम पर्वो की तरह बाजारवाद व भूमंडलीकरण ने करवाचौथ का भी 'कल्याण' कर दिया है। बड़ी हैरानी होती है जब 25-30 साल पीछे जाकर सोचता हूं। ..हिंदुस्तान की पढ़ी-लिखी, नौकरीपेशा महिलाएं करवाचौथ मनाने की परंपरा को पिछड़ापन घोषित करती थीं और पुरुष विशेष के लिए पूरे दिन भूखे रहने को 'मरना' कहती थीं। आज की अधिकतर महिलाएं करवाचौथ को मनाकर, सबको बताने-दिखाने में, अपनी पहचान और शान मानती हैं। मेरा मानना है कि प्रेम और भक्ति तो एकांतिक और वैयक्तिक चीजें हैं। ये उछल-कूदकर, नाच-गाकर, दुनियाभर को दिखाने-बताने की चीज नहीं है। आधुनिक दिखने-बनने के इस नशे ने केवल चमक-दमक ही शेष छोड़ी है। पर्व के मूल के भाव को क्षीण किया है। ये आधुनिकता का प्रभाव है कि आज घर में मेहंदी रचाने की तैयारी नहीं होती। न बढि़या मेहंदी रचने वाली महिलाएं ही हैं। अब तो जिस्म के अधिक से अधिक हिस्से में मेहंदी भी किसी और से लगवानी पड़ती है, इंतजार तक करना पड़ता है। तब मेहंदी फबती थी, रचती थी। आज मेहंदी लिपती-पुतती है और अगले दिन धुल-पुंछकर, रासायनिक असर छोड़कर साफ भी हो जाती है।
मैं इस पर्व के साथ जुड़ी भावना का पूरा सम्मान करता हूं। ये भी दूसरे तीज-त्योहारों की तरह श्रेष्ठ और पवित्र है। पर, बाजार की बाजीगरी और संचार माध्यमों की जादूगरी ने इसे जमीन से उठाकर हवा में उड़ना सिखा दिया है। मन के भावों को जिस्म और अभिनय में बदल दिया है। अब तो कुछ पति भी व्रत रखने लगे हैं? प्रदर्शन और प्रचार भी करते हैं। इससे उन्हें क्षणिक सुख भले मिलता हो, जिंदगीभर की खुशी शायद ही मिलती हो।
पहले ये पर्व अनकहे, बिना जताए-दिखाए, अगले करवाचौथ तक अपने पति के प्रति प्रेम और समर्पण का प्रतीक था। पति खुश और पत्नी भी। शायद इसलिए कि पुरुष का अहंकार तुष्ट और स्त्री की आश्वस्ति। आज के जीवन में जो दिखता है, उसे बिकाऊ-कमाऊ बनाने में बाजार की पूरी शक्ति, बुद्धि लगी हुई है। अफसोसनाक आश्चर्य होता है कि पर्व करवाचौथ है और मिट्टी के करवे गायब हैं। ये चांदी-सोने में तब्दील होते जा रहे हैं। दावतें पार्टियां हो रही हैं। अलंकरण और विदेशी गानों पर नाच हो रहा है। हमें डर है कि कहीं दूसरे पर्वो की तरह करवाचौथ भी गरीबों से दूर न हो जाए? ..हम नए चलन का स्वागत करते हैं, लेकिन करवाचौथ को तमाशा बनाने वालों से गलबहियां करना भी अपने बस की बात नहीं..!
जय बाबा बनारस 

Thursday, November 1, 2012

सुबह अच्छी

1.जिसकी सुबह अच्छी उसका दिन अच्छा .

2.जिसकी शाम अच्छी उसकी रात अच्छी .

3. जिसके दोस्त अच्छे उसकी पूरी की पूरी  जिंदगी अच्छी।।।।

जय बाबा बनारस।।।।