Wednesday, August 28, 2013

जोड़ दिया जाये या काट दिया जाये ........

एक दिन किसी कारण से स्कूल में छुट्टी की घोषणा होने
के कारण, एक दर्जी का बेटा, अपने पापा की दुकान पर
चला गया । वहाँ जाकर वह बड़े ध्यान से अपने
पापा को काम करते हुए देखने लगा । उसने देखा कि उसके
पापा कैंची से कपड़े को काटते हैं और कैंची को पैर के पास
टांग से दबा कर रख देते हैं । फिर सुई से उसको सीते हैं
और सीने के बाद सुई को अपनी टोपी पर लगा लेते हैं ।
जब उसने इसी क्रिया को चार-पाँच बार देखा तो उससे
रहा नहीं गया, तो उसने अपने पापा से कहा कि वह एक
बात उनसे पूछना चाहता है ? पापा ने कहा-
बेटा बोलो क्या पूछना चाहते हो ? बेटा बोला-
पापा मैं बड़ी देर से आपको देख रहा हूं , आप जब
भी कपड़ा काटते हैं, उसके बाद कैंची को पैर के नीचे
दबा देते हैं, और सुई से कपड़ा सीने के बाद, उसे टोपी पर
लगा लेते हैं, ऐसा क्यों ? इसका जो उत्तर पापा ने
दिया- उन दो पंक्तियाँ में मानों उसने
ज़िन्दगी का सार समझा दिया ।

उत्तर था- ” बेटा, कैंची काटने का काम करती है, और
सुई जोड़ने का काम करती है, और काटने वाले की जगह
हमेशा नीची होती है परन्तु जोड़ने वाले की जगह
हमेशा ऊपर होती है । यही कारण है कि मैं सुई
को टोपी पर लगाता हूं और कैंची को पैर के नीचे
रखता हूं.....................


जय बाबा बनारस .....




Saturday, August 24, 2013

जुमे की नमाज

भाजपा शासित राज्यो से निवेदन है की हर शुक्रवार को सिर्फ मस्जिद में नमाज पड़ने का आदेश दे सडक पर नमाज पड़ने पर कठोर कानूनी करवाई का प्रावधान करे और मजारो पर क़व्वाली पर रोक लगा दी जाय तो ८४ कोस यात्रा को रोकने वाली सरकारों के पेट में मरोड़े पड़ने लगेंगी..............

सेक्युलर कीड़े अचानक आत्महत्या करने लगेगे अचानक इनके आसू सैलाब बन कर बह बह कर मीडिया दिन भर दिखाता रहेगा ...


जय बाबा बनारस....

Thursday, August 22, 2013

मीडिया का बलात्कार हो गया

जालीदार टोपी वालो का कारनामा..........क्या किसी चैनेल ने शीर्षक दिया "अशोक चौह्वन के महाराष्ट्र में महिला पत्रकार के साथ सामूहिक बलात्कार...जबाब दे अशोक चौव्हान"कल रात देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में एक महिला पत्रकार के साथ १० से १५ लोगो ने सामूहिकबलात्कार किया | सभी आरोपी एक जालीदार टोपी मतलब गद्दार मुसलमान धर्म विशेष के थे | वो धर्म जो पुरे विश्व को "शांति" और "अहिंसा"का संदेश देता है |महिला पत्रकार अपने मैगजीन के लिए फोटो शूट करनेअपने साथी के साथ बंद मिल में गयी थी जहाँ उसके साथको आरोपियों ने खूब मारा और उसे बेहोश करके बांधदिया फिर उस महिला पत्रकार के साथ सामूहिक बलात्कार किया .......मीडिया का बलात्कार हो गया .....मीडिया का बलात्कार हो गया ....मीडिया का बलात्कार हो गया ...और मीडिया और मीडिया के लोग शांत है सेक्युलर कीड़े शांत है .....अब इन शांति प्रिय धर्मआडंबरियों को सेक्युलर धर्माचार्यों के घर मे उनके परिवार के साथ रख देना चाहिए

वैसे कॉंग्रेस शासित राज्यों मे ही ऐसे जघन्य सुविचार कार्य क्यूँ होते हैं....क्या कॉंग्रेस पार्टी का हाथ है बलात्कारियों के साथ ! ! !

जय बाबा बनारस....

Sunday, August 11, 2013

तिलक का महत्व

शायद भारत के सिवा और कहीं भी मस्तक पर तिलक लगाने की प्रथा प्रचलित नहीं है। यह रिवाज अत्यंत प्राचीन है। माना जाता है कि मनुष्य के मस्तक के मध्य में विष्णु भगवान का निवास होता है, और तिलक ठीक इसी स्थान पर लगाया जाता है।

मनोविज्ञान की दृष्टि से भी तिलक लगाना उपयोगी माना गया है। माथा चेहरे का केंद्रीय भाग होता है, जहां सबकी नजर अटकती है। उसके मध्य में
तिलक लगाकर, विशेषकर स्त्रियों में, देखने वाले की दृष्टि को बांधे रखने का प्रयत्न किया जाता है।

स्त्रियां लाल कुंकुम का तिलक लगाती हैं। यह भी बिना प्रयोजन नहीं है। लाल रंग ऊर्जा एवं स्फूर्ति का प्रतीक होता है। तिलक स्त्रियों के सौंदर्य में अभिवृद्धि करता है। तिलक लगाना देवी की आराधना से भी जुड़ा है। देवी की पूजा करने के बाद माथे पर तिलक लगाया जाता है। तिलक देवी के आशीर्वाद का प्रतीक माना जाता है।

तिलक का महत्व
हिन्दु परम्परा में मस्तक पर तिलक लगाना शूभ माना जाता है इसे सात्विकता का प्रतीक माना जाता है विजयश्री प्राप्त करने के उद्देश्य रोली, हल्दी, चन्दन या फिर कुम्कुम का तिलक या कार्य की महत्ता को ध्यान में रखकर, इसी प्रकार शुभकामनाओं के रुप में हमारे तीर्थस्थानों पर, विभिन्न पर्वो-त्यौहारों, विशेष अतिथि आगमन पर आवाजाही के उद्देश्य से भी लगाया जाता है ।

मस्तिष्क के भ्रु-मध्य ललाट में जिस स्थान पर टीका या तिलक लगाया जाता है यह भाग आज्ञाचक्र है । शरीर शास्त्र के अनुसार पीनियल ग्रन्थि का स्थान होने की वजह से, जब पीनियल ग्रन्थि को उद्दीप्त किया जाता हैं, तो मस्तष्क के अन्दर एक तरह के प्रकाश की अनुभूति होती है । इसे प्रयोगों द्वारा प्रमाणित किया जा चुका है हमारे ऋषिगण इस बात को भलीभाँति जानते थे पीनियल ग्रन्थि के उद्दीपन से आज्ञाचक्र का उद्दीपन होगा । इसी वजह से धार्मिक कर्मकाण्ड, पूजा-उपासना व शूभकार्यो में टीका लगाने का प्रचलन से बार-बार उस के उद्दीपन से हमारे शरीर में स्थूल-सूक्ष्म अवयन जागृत हो सकें । इस आसान तरीके से सर्वसाधारण की रुचि धार्मिकता की ओर, आत्मिकता की ओर, तृतीय नेत्र जानकर इसके उन्मीलन की दिशा में किया गयचा प्रयास जिससे आज्ञाचक्र को नियमित उत्तेजना मिलती रहती है ।

तन्त्र शास्त्र के अनुसार माथे को इष्ट इष्ट देव का प्रतीक समझा जाता है हमारे इष्ट देव की स्मृति हमें सदैव बनी रहे इस तरह की धारणा क ध्यान में रखकर, ताकि मन में उस केन्द्रबिन्दु की स्मृति हो सकें । शरीर व्यापी चेतना शनैः शनैः आज्ञाचक्र पर एकत्रित होती रहे । चुँकि चेतना सारे शरीर में फैली रहती है । अतः इसे तिलक या टीके के माधअयम से आज्ञाचक्र पर एकत्रित कर, तीसरे नेत्र को जागृत करा सकें ताकि हम परामानसिक जगत में प्रवेश कर सकें ।

तिलक का हमारे जीवन में कितना महत्व है शुभघटना से लेकर अन्य कई धार्मिक अनुष्ठानों, संस्कारों, युद्ध लडने जाने वाले को शुभकामनाँ के तौर पर तिलक लगाया जाता है वे प्रसंग जिन्हें हम हमारी स्मृति-पटल से हटाना नही चाहते इन शुशियों को मस्तिष्क में स्थआई तौर पर रखने, शुभ-प्रसंगों इत्यादि के लिए तिलक लगाया जाता है हमारे जीवन में तिलक का बडा महत्व है तत्वदर्शन व विज्ञान भी इसके प्रचलन को शिक्षा को बढाने व हमारे हमारे जीवन सरल व सार्थकता उतारने के जरुरत है ?।

तिलक हिंदू संस्कृति में एक पहचान चिन्ह का काम करता है। तिलक केवल धार्मिक मान्यता नहीं है बल्कि कई वैज्ञानिक कारण भी हैं इसके पीछे। तिलक केवल एक तरह से नहीं लगाया जाता। हिंदू धर्म में जितने संतों के मत हैं, जितने पंथ है, संप्रदाय हैं उन सबके अपने अलग-अलग तिलक होते हैं। 


एक मित्र की फेसबुक की वाल से साभार .....

जय बाबा बनारस......

Thursday, August 8, 2013

सर पे कफ़न.....

सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है।
देखना है ज़ोर कितना, बाज़ु-ए-कातिल में है?

वक्त आने दे बता, देंगे तुझे ए आस्माँ!
हम अभी से क्या बतायें, क्या हमारे दिल में है?

एक से करता नहीं क्यों, दूसरा कुछ बातचीत;
देखता हूँ मैं जिसे वो, चुप तेरी महफ़िल में है।

रहबरे-राहे-मुहब्बत, रह न जाना राह में;
लज्जते-सहरा-नवर्दी, दूरि-ए-मंजिल में है।

अब न अगले वलवले हैं, और न अरमानों की भीड़;
एक मिट जाने की हसरत, अब दिले-'बिस्मिल' में है।

ऐ शहीदे-मुल्को-मिल्लत, मैं तेरे ऊपर निसार;
अब तेरी हिम्मत का चर्चा,गैर की महफ़िल में है।

खींच कर लायी है सबको, कत्ल होने की उम्मीद;
आशिकों का आज जमघट, कूच-ए-कातिल में है।

है लिये हथियार दुश्मन, ताक में बैठा उधर;
और हम तैय्यार हैं; सीना लिये अपना इधर।

खून से खेलेंगे होली; गर वतन मुश्किल में है;
सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है।

हाथ जिन में हो जुनूँ , कटते नही तलवार से;
सर जो उठ जाते हैं वो, झुकते नहीं ललकार से।

और भड़केगा जो शोला, सा हमारे दिल में है;
सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है।

हम तो निकले ही थे घर से, बाँधकर सर पे कफ़न;
जाँ हथेली पर लिये लो, बढ चले हैं ये कदम।

जिन्दगी तो अपनी महमाँ, मौत की महफ़िल में है;
सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है।

यूँ खड़ा मकतल में, कातिल कह रहा है बार-बार;
क्या तमन्ना-ए-शहादत, भी किसी के दिल में है?

सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है;
देखना है जोर कितना, बाजु-ए-कातिल में है?

दिल में तूफ़ानों की टोली, और नसों में इन्कलाब;
होश दुश्मन के उड़ा, देंगे हमें रोको न आज।

दूर रह पाये जो हमसे, दम कहाँ मंज़िल में है;
सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है।

जिस्म वो क्या जिस्म है, जिसमें न हो खूने-जुनूँ;
क्या वो तूफाँ से लड़े, जो कश्ती-ए-साहिल में है।

सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है;
देखना है ज़ोर कितना, बाज़ु-ए-कातिल में है

Tuesday, August 6, 2013

बिना टाइटल के

हमारे जवानों की शहादत पर मन खिन्न है , ये निर्मम हत्या का मामला है / परन्तु एक प्रश्न मन को कचोट रहा है की कैसे पाकिस्तान के फौजी हमारी सीमा के अंदर आ गये और हमारे जवानों को मार भी देते हैं तो फिर हमारी फौज की ट्रेनिंग कैसी कमजोर है की दुश्मन हमारे घर आया और मार के गायब भी हो गया , हमारी फौज क्या सो रही होती है , कैसे कोई घर आ कर मार जाए और हम देखता रह जाएँ , कम से कम दुश्मन को भी कुछ तो आघात होना चाहिए , कहीं ऐसा तो नही कुछ बागी अपनी ही फौज में हो और अपने ही जवानों का कत्ल कर पकिस्तान का नाम उछाल रहे हों .... पता करना पड़ेगा की आज मरने वाले जवान हिन्दू थे या मुसलमान , अगर सिर्फ हिन्दू थे तो जान लेना पड़ेगा की हमारी सेना को अंदर से घुन का कीड़ा लग चुका है जो की बहुत भयानक रूप ले सकता है ....इंटेलीजेंसी डिपार्टमेंट को एलर्ट हो जाना चाहिए....

जय बाबा बनारस........

Monday, August 5, 2013

रोजा -अफ्तार

किसी मुस्लमान या ईसाई को कभी पोस्टरों में भी तिलक लगवा कर
 होली, दीपावली, नवरात्रों आदि को शुभकामनायें देते हुए नही देखा... 
वास्तविक जीवन में तो असम्भव सी बात है l
सेक्युलर कीड़े रोजा -अफ्तार की पार्टी मैं टोपी लगा के क्या कहना चाहते है जो अपने धरम का न हुआ
 जो अपने देश का न हुआ वह क्या होगा यह सब जानते है ...वन्देमातरम

जय बाबा बनारस....

Saturday, August 3, 2013

वन्देमातरम

जो हिन्दू राम का नहीं वो इंसान किसी काम का नहीं
ये ..... "उमर अब्दुल्ला" ने खीर भवानी मंदिर में तिलक लगवाने से इन्कार किया !!
.

मोदी जी द्वारा काफा नही ओढने पर छाती कूट कूट कर सलवार कमीज फाड़ने वाले सेकुलर अब किस गंदे नाले में छुप कर सो रहे हे ।

.....क्या तुम्हारी ये ही धर्म निरपेक्षता हे ?????
जय बाबा बनारस  वंदे मातरम॥

Thursday, August 1, 2013

वरिष्ठ बुजर्ग

कुछ दिन पहले  में एक वरिष्ठ बुजर्ग से बात कर रहा था, मेने उनसे अपने मन की बात कही की भाई साहब ये सेक्युलर क्यों है हिन्दुओ में, तो उन्होंने मेरी बात का जवाब इस प्रकार से दिया ====

" बेटा हमारा देश लगभग 1100 साल विदेशियों के कब्जे में रहा, उस समय कुछ लोगो ने विदेशी आक्रंताओ को जरा से डर से ही अपना मालिक मन लिया था एवं कुछ हिन्दू लगातार उनसे संघर्ष करते रहे जिन्होंने संघर्ष किया वो आज भी हिन्दू ही है लेकिन जिन्होंने विदेशियो को उस समय मानसिक रूप से अपना मालिक मन लिया था उनकी पीढ़ी आज भी विदेशियो के पक्ष में ही बोलती है एवं उनके पक्ष में बोलने को वो स्वयं को सेकुलर कहते है"इसका मतलब जो दर गया करीब करीब बहुत से लोग वही सेक्युलर है 

मुझे कुछ बात जमी पता नहीं आपको जमेगी या नहीं

जय बाबा बनारस .....