Tuesday, November 30, 2010

मुस्कुराते पल-कुछ सच कुछ सपने: दिल में राम बसा कर देखो--(विनोद कुमार पांडेय)#c7439960818726771989

ज़िम्मेदारी
घर का बोझ उठा कर देखो"

इसी पल में ज़िन्दगी है. इस पल कों जी लें.

छोटी-छोटी खुशियों से ज़िन्दगी बनती है - मैं यह हमेशा ही कहता हूँ कि जीवन में जो कुछ भी सबसे अच्छा है वह हमें मुफ्त में ही मिल जाता है। वह सब हमारे सामने नन्हे-नन्हे पलों में मामूली खुशियों के रूप में जाने-अनजाने आता रहता है. प्रकृति स्वयं उन क्षणों कों हमारी गोदी में डालती रहती है. अपने प्रियजन के साथ हाथों में हाथ डालकर बैठना और सरोवर में डूब रहे सूर्य के अप्रतिम सौन्दर्य कों देखने में मिलनेवाले आनंद का मुकाबला और कोई बात कर सकती है क्या? ऐसे ही अनेक क्षण देखते-देखते रोज़ आँखों से ओझल हो जाते हैं और हम व्यर्थ की बातों में खुशियों की तलाश करते रहते हैं.
इसी क्षण में जीना सीखें - जो पल इस समय आपके हाथों में है वही पल आपके पास है. इसी पल में ज़िन्दगी है. इस पल कों जी लें. यह दोबारा लौटकर नहीं आएगा.

Monday, November 29, 2010

परखना मत ----एक कहानी किन्तु सच

एक गाँव में एक विधवा रहती थी, जिसे सत्संग और सेवा में रुचि थी । गाँव में कोई साधु-महात्मा आते तो वह उनके दर्शन के लिए जाती, उपदेश सुनती और उसे भिक्षा भी देती, यथाशक्ति सेवा भी करती ।
उसके जीवन में सांसारिक सुख न था । पूर्वसंस्कार बडे प्रबल होने पर उसका मन संतसमागम में गहरे सुख की अनुभूति करता । संतपुरुष से ऐसा प्रेम किसी असाधारण आत्मा में ही होता है । इस दृष्टि से देखा जाय तो उस स्त्री की आत्मा असाधारण थी । उस समय उच्चे कोटि की साधनावाले संतपुरुष तीर्थयात्रा पर निकलते और बीच में आनेवाले गाँव में इच्छानुसार कम या अधिक समय रहते । इनमें कुछ संतपुरुष शक्तिसंपन्न भी होते थे ।
इत्तफाक से एक बार ऐसे ही परम प्रतापी संतपुरुष घूमते-धूमते इस गाँव में आ पहुँचे । गाँव के भाविक लोग उनके दर्शन से बडे प्रसन्न हुए । वह विधवा भी उसके पास पहूँच गई ।
उनके दर्शन व उपदेश से ऐसा लगा कि महापुरुष उच्च अवस्था प्राप्त है । ऐसे पुरुष का समागम जिस किसको और जब तब नहीं मिलता । अगर उनकी सेवा का लाभ मिले तो जीवन सफल हो जाये । वह स्त्री बडे मन से उनकी सेवा करने लगी । महात्मा पुरुष को भी उस गाँव का शांत वातावरण भा गया । इसलिए वे वहाँ लंबे समय रहे ।
‘जहाँ गाँव वहाँ सडाव’ इस न्याय से बायल गाँव में भी कुछ अशुभ-बुरे तत्व विद्यमान थे । उन्होंने उस विधवा की निंदा करना शुरु किया । महात्मा पुरुष एवं उस स्त्री का संबंध बुरा है ऐसा खुलमखुल्ला बोलने लगे ।
उस स्त्री को यह सुनकर बडा दुःख हुआ । वह जानती थी कि संतपुरुष कितने पवित्र थे और वह भी पवित्रता से उनकी सेवा करती थी । इसलिए लोगों की निंदा सुनकर उसे अत्यधिक दुःख हुआ लेकिन क्या करे ?
कुछ आदमियों ने उस स्त्री से कहा, ‘कितने भी बडे महापुरुष हो, संगदोष तो उन्हें लगता ही है । जेमिनी, पराशर और विश्वामित्र जैसे पुरुष भी स्त्री की मोहिनी से नहीं बचे तो आजकल के सामान्य संतो की क्या बिसात ? फिर भी अगर तुम्हें संगदोष न लगा हो, तुम पवित्र हो तो उबलते तेल की कडाही में हाथ डालो और पवित्रता की परख होने दो अन्यथा गाँव में फजीहत होगी ।
उस स्त्रीने लोगों को बहुत समझाया पर न माने तब वह पवित्रता की परख देने तैयार हो गई । वैसे तो वह अनपढ थी पर ईश्वर की कृपा एवं सत्य की विजय में उसे बडी श्रद्धा थी । एक निश्चित दिन गाँव वाले इकट्ठे हुए । उबलते तेल की कडाही के पास वह स्त्री आई ।
उसने परमात्मा से प्रार्थना की ‘हे प्रभु ! मेरा व संतपुरुष का सम्बन्ध कितना पवित्र है, यह आप ही जानते है । आप सर्वज्ञ है, अंतर्यामी है, आज मेरी रक्षा करना । तुम्हारे बिन मेरा कौन सहारा ?’
ऐसा बोलकर उसने उबलती तेल की कडाही में हाथ डाल दिया । गाँव के लोग यह दृश्य उत्सुकता, आश्चर्य एवं कुतूहल से देखते रहे ।
उबलते तेल का उस नारी पर कोई असर न हुआ । जाने किसी ठंडे पानी में हाथ डाले हो ऐसा लगा । सबकुछ जानने वाले परम कृपालु परमात्मा ने उसकी रक्षा की । उनके लिए कोई काम मुश्किल नहीं है । शरणागत भक्त के लिए वे कुछ भी कर सकते हैं ।
जिसे शंका की नजरों से देखते थे, जिसकी निंदा करते थे, वह नारी विशुद्ध-पवित्र साबित हुई । लोगों के दिल में उसके प्रति सम्मान की भावना जागी । उन्होंने उसकी जयजयकार की । संकीर्ण मनोवृत्तिवाले, निंदा करनेवाले खामोश हो गये ।
गाँव के अग्रगण्य लोगों ने सबकी ओर से उस पवित्र नारी की क्षमा माँगी । उसके मना करने पर भी उस नारी को सो बीघा जमीन दी । थोडे समय के बाद वे संतपुरुष गाँव से चले गये और समयांतर में उस नारी ने भी देहत्याग किया ।आप के विचार आमंत्रित है -----

Sunday, November 28, 2010

उतना ही ज्यादा मुस्कराने की आदत है

अगर रख सको तो एक निशानी हूँ मैं,

खो दो तो सिर्फ एक कहानी हूँ मैं ,

रोक पाए न जिसको ये सारी दुनिया,

वोह एक बूँद आँख का पानी हूँ

मैं.....सबको प्यार देने की आदत है हमें,

अपनी अलग पहचान बनाने की आदत है हमे,

कितना भी गहरा जख्म दे कोई,

उतना ही ज्यादा मुस्कराने की आदत है

हमें...इस अजनबी दुनिया में अकेला ख्वाब हूँ मैं,

सवालो से खफा छोटा सा जवाब हूँ मैं,

जो समझ न सके मुझे,

उनके लिए "कौन"जो समझ गए उनके लिए खुली किताब हूँ मैं,

आँख से देखोगे तो खुश पाओगे,

दिल से पूछोगे तो दर्द का सैलाब हूँ मैं,,

,,,"अगर रख सको तो निशानी,

खो दो तो सिर्फ एक कहानी हूँ मैं

भाई किसी मित्र ने ऑरकुट पर मेल की है अब आप के सामने है

Saturday, November 27, 2010

परदेसी की वापसी

जब एक परदेसी की अपने वतन की वापसी होती है उसके दिल में बहुत अरमान होते है
परदेसी को अपने वतन अपने गाँव अपने देश की मिटटी की खुसबू की याद आती है कभी वो याद कर के हँसता है कभी कुछ याद करके अपने आख को नम करता है परदेसी का दिल अपनों से मिलाने को तडफता है ,सबकी याद एक एक करके आती है ,और जब उस दौरान गाड़ी किसी कारन से देर होती है एक एक मिनट एक एक साल के बराबर लगता है
गाँव में सबको उसका बहुत इंतजार है, किसी के लिए रिमोट वाली कार लाया हूं तो किसी के लिए कैमरा... पूरे तीन साल बाद जो आ रहा हूं। तीन साल बाद क्यों आ रहे हो, पहले क्यों नहीं आए, यह पूछने पर वह बोला, बार-बार आऊंगा तो दिन रात काम करके जो पैसे बचाएं हैं वह टिकट पर ही खर्च हो जाएंगे। गांव में मकान पक्का करना है, बड़ा टीवी लगाना है, तीन जवान बहनें हैं जिनकी शादी भी करनी है। मुझे हिंदी फिल्मों के सीन याद आने लगे, बिल्कुल हीरो की तरह। उसकी लाइफ में भी इतना ही थ्रिल होता है।
परदेसी पुरे गाँव का एक हीरो होता है सबको उसका इन्तिज़ार होता है और परदेसी को अपनों का इन्तिज़ार होता है।
क्या आप परदेसी है ???????????????????

कभी किसी को मुकम्मल जहा नहीं मिलता

कभी किसी को मुकम्मल जहा नहीं मिलता ,
कही जमी तो कही आसमा नहीं मिलता ,
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आप के विचार सादर आमंत्रित है.

Thursday, November 25, 2010

रहिमन चुप रह देखए देख दिनन के फेर

सर्दी के बाद गर्मी ,गर्मी के बाद सर्दी आती ही है,
रहिमन चुप रह देखए देख दिनन के फेर ।
फिर नीके दिन आयगे बहुर न लगेये देर।
आज के लिए इतना ही काफी है

"बाहर तेरी माँ नाच रही थी"

सभी ब्लोगर्स भाइयों को जय राम जी की

आज अपने मित्र को "लफ़त्तू की संगत" मैं ले गए. बहुत ही आनंद आया. लगभग २-३ घंटे तक हम दोनों पांडेजी के लाफ्तू के साथ रामनगर में ऐश करते रहे.

बच्चपन की कई बातें हमें भी बार बार याद आती रही. और उन्हीं का जिक्र कर रहा हूँ.
एक मास्टर जी जो हमे प्राथमिक कक्षा में पड़ते थे. एक बार एक बच्चा कक्षा के बाहर झांक रहा था. मास्टरजी ने उसे बुला कर पहेले तो २ झापड़ रसीद किया फिर पूछा "बाहर तेरी माँ नाच रही थी" बेचारा बच्चा क्या जवाब देता. हाँ मगर लफ्तू टाइप कई लड़के उसको कई दिन तक छेड़ते रहे - बाहर तेरी माँ नाच रही है.

जब में नवी कक्षा में था, तो गणित और बिज्ञान में हमारा हाथ शुरू से ही तंग था (और आज भी है). जीवविज्ञानं के सरजी (अब मा'साब - सरजी बन गए थे) ने न जाने मुझ में क्या देखा - डेस्क से खड़ा कर दिया और केमिस्ट्री के कुछ HO2 जैसे फार्मूले पूछने लगे, (जहीर ही है, की जब उन्होंने सोच समझ कर मुझ से पूछा था तो उनको इतना तो मालूम ही था की मुझे नहीं आते) और मैंने भी सरजी की अपेक्षा पर खरे उतारते हुए अपनी गर्दन हिला दी. बस फिर क्या था रावल सरजी नै आव देखा न तव, पिल पड़े मुझ पर. पता नहीं कितने थप्पड़ मारे. वो भी तेज़ तेज़ मुहं लाल हो गया. आज भी बेटे की केमिस्ट्री की किताब देखता हूँ तो एक हाथ स्वत की मुंह पर चला जाता है. - बात थप्पड़ तक ही सिमित नहीं थी "हरामजादे पड़ते नहीं - कल हमारा मेट्रिक का रिजल्ट डाउन करवायेगे. आब कहेगा - कान का पर्दा फट गया, - कल बाप को बुला कर प्रिंसिपल के पास जा कर मेरी शिकायत लगायेगे." पिरोड़ ख़त्म होने के बाद में तो सर झुका कर बैठा रहा पर - बाकि क्लास नें मेरी और सरजी की एक्टिंग की क्या बताएं.

अब सोचते हैं की सरजी नें खामखा ही मारा, अगर आज केमिस्ट्री के फोर्मुल नहीं आते तो क्या रोटी नहीं खा रहे - जिंदगी में किसी मुकाम पर पीछे हैं क्या. हाँ गणित आता होता तो अच्छा था . आज प्रेस में हिसाब किताब में कई बार गड़बड़ हो जाती है.
ऐसी बात नहीं है की मास्टरों ने ही हमारी बजाई. जब हमें मोका लगता हम भी बाज़ नहीं आते थे. आठवी क्लास में एक मा'साब नें एक प्रसिद्ध दूकान से पकोड़े मंगवाए, हम पकोड़े तो ले लिए पर बाल सुलभ हरकतों की वजह से पकोड़े का लिफाफा हिलाते हुवे स्कूल ला रहे थे की लिफाफा हाथ से छूट कर रोड पर गिर गया और पकोड़े बिखर गए. अब बिखर गए तो कोई बात नहीं - पर बिखरे वहां थे जहाँ पर गोबर (सुखा) पड़ा था. हमने बड़े जतन से पकोड़े एकठे किये पर उनमें गोबर का बुरादा लग गया था. समझ नहीं आया क्या करें. फिर भी दिमाग(?) था .. पकोड़े दूकानदार को वापिस दे कर बोले की मा'साब नें बोला है दुबारा गर्म कर दो. दूकानदार नें दुबारा गर्म के दे दिए और हमने कांपते हाथों से मा'साब को दिए. शुक्र है पकोड़े ज्यादा क्रिस्पी बन गए थे........

Wednesday, November 24, 2010

टिपण्णी एक नशा है इस से कोइए भी नहीं बचा

tippanni का दलदल एक ऐसा दलदल है ,
एक ऐसे खुसबू है जो हर आदमी पाना चाहते है
जैसे शादी का लड्डू जो खई वोह जाने
और जो न खिए उ खाना चैहे
उसी तरह से यह तिपनी का है
किसी को बिने ताम झाम के बहुत मिल जाती है
और किसी को बहुत कुछ करने के बाद एक थो मिलती है
भाई नसा बहुत तरह का होता है
किसी को बीडी का ,किसी को सिगरेट का ,किसी को तम्बाकू का ,
किसी को अफीम का ,किसी को भंग का ,किसी को सोमरस का ,
ब्लॉगर को सिर्फ एक नसा होता है तिप्पद्दी देने का ,
और अपने लिखे पर टिपण्णी आने का इन्तिज़ार होता है
आप लोगो के vichar saadar amantratit है

Tuesday, November 23, 2010

आज सूअर महामात्य ...........

मुझे बहुत ताज्जुब हुई की एक दोस्त ने कहा कि २-४ महीने के बात सूअर का मांस खा लेना चाहिए ? एक ब्राह्मण से आईसी बात ? मुझे ताज्जुब हुवा. वो बोले घबराओ मत.... जो इंसान सूअर का मांस खा लेता है तो उस पर मुस्लिम तांत्रिक का किया कराया नहीं लगता..... मैंने कहा, अमा क्या बात कर रहे हो... क्या आज के यूग में भी किएय कराये की बात कर रहे हो.

वो बोला, हमारी पंजाबी सम्युदाय में तो है, पता नहीं और लोगों में भी हो सकता है,- कि सूअर का दांत सोने के लोकेट में गढ़वा कर बच्चे के गले में दाल दो तो उसको नज़र नहीं लगती.... ज्यादा रोता नहीं, दूध बक्त से पी लेता है.

अच्छा, मुझे ताज्जुब हुवा....

पर वो तो आज हमारे ज्ञान चाक्षुक खोलने का मूड बना रखे थे..

बोले आपको मालूम है कित्ता सूअर का मांस निर्यात होता है....

जाहिर सी बात है, हमने हमें आयात और निर्यात के बारे में कुछ भी नहीं मालूम ... और मांस के निर्यात में तो बिलकुल ही नहीं.... सो स्वाभाविक रूप से हमने ‘न’ में अपनी गर्दन हिला दी...

उनका उपदेश जारी रहिया..

यूरोप देशों में सूअर के मांस का बहुत प्रचालन है...... हिन्दुस्तान से काफी मात्र में सूअर का मांस निर्यात होता है ... जिससे देश जो बहुत मात्र में विदेश आय होती है.

दूसरी बात, सूअर पलने में ज्यादा दिक्कत भी नहीं है, जैसे की भैंस, बकरी या अन्य कोई दुधारू जानवर पालने में है.... आप पिगरी फार्म खोलिए..... दो चार शादी गृह वालों से कोंटेक्ट रखिये और बचा हुवा फालतू खाना आपके पिगरी फार्म में भेज देंगेई....

सूअर प्रजजन बहुत ज्यादा करता है और बच्चे भी बहुत ज्यादा पैदा करता है.... उस फार्म में एक तालाब भी बनवाओ – जिसमे की मच्छली पालन होगा... सूअर की विष्टा मछली के लिए आहार है.... बहुत अच्छा आहार...... मछली देश में बेचो और सूअर विदेश में.

सूअर के बच्चे भी जल्दी बदते है...... यानी प्रोडक्शंन चालू..... मांस बहुत तेज़ी से बढता है – आप किसी भी जानवर से उसकी तुलना कर लें........

जिसको वज़न बदाना है तो सबसे आसान उपाय : सूअर के मांस खाया जाए...... तुरंत चमत्कारी रूप से वज़न बदता है....

ऐसा भी होता है, मुझे सुन कर बहुत ताज्जुब हुवा.......

आपके सुझाव के लिए कोमेंट्स बॉक्स खुला है..

इन्तिज़ार का मज़ा जो है वोह किसी भी मजे से कम नहीं है

कुछ दिन पहले एक गाना सुना था की इश्क और प्यार का मजा --------
और थोडा इन्तिज़ार का मज़ा -------
गाना पहली बार में तो कुछ समझ में हे नहीं आया
आज उस गाने का मतलब समझ आया
आज हम किसी का इन्तिज़ार कर रहे है
सुबह से हो गए शाम लेकिन वो नहीं आये
अब का करे कुछ समझ ही नहीं आ रहा है
तब सोचा की आज यही लिख दे -------
बाकी जो भी आप के सुझाव हो सर माथे
जय राम जी की

Sunday, November 21, 2010

एक मासूम कुत्ते की कुर्बानी-------?

एक मासूम कुत्ते की कुर्बानी एक बार एक कुत्ते को बकरा ईद से कुछ दिन पहले सपना आयाएक कुत्ते ने उस से पूछाबड़े कुत्ता भईए एक बात पुछु कुत्ता भाई बोले पूछ भाई भाई हमारी जो कुत्ता बिरादरी है उसकी जो आदमी लोग है कोइए izaat नहीं करते है बस एक तमगा दे रखा है की कुत्ता एक वफादार जानवर है अब देखो कुछ दिन बाद बकरा ईद पर बहुत से जानवर भाई अपने अपने क़ुरबानी देगे लेकिनहम कुत्ता बिरादरी से किसी को भी नहीं bulaya गया है भाई यह कुत्ता समाज के लिए शर्म की बात है हम सब kutta samaj ko पानी में डूब कर मर जाना चाहए भैसे की क़ुरबानी ,बकरे की क़ुरबानी ,उट की क़ुरबानी ,कुत्ता की क़ुरबानी नहीं होती है ,शेर की क़ुरबानी नहीं होती है ,चीते की क़ुरबानी नहीं होती है ,गजराज की क़ुरबानी नहीं होती है , इन सब से खतरा रहता है .बस जो इन सब को खा नहीं सकता है बस उसकी क़ुरबानी होती है क़ुरबानी hamesa लाचार की होती --------------

एक मासूम कुत्ते की क़ुरबानी

एक मासूम कुत्ते की क़ुरबानी
एक बार एक कुत्ते को बकरा ईद से कुछ दिन पहले सपना आया
एक कुत्ते ने उस से पूछा
बड़े कुत्ता भईए एक बात पुछु
कुत्ता भाई बोले पूछ भाई
भाई हमारी जो कुत्ता बिरादरी है
उसकी जो आदमी लोग है कोइए izaat नहीं करते है
बस एक तमगा दे रखा है की कुत्ता एक वफादार जानवर है
अब देखो कुछ दिन बाद बकरा ईद पर बहुत से जानवर भाई
अपने अपने क़ुरबानी देगे लेकिन
हम कुत्ता बिरादरी से किसी को भी
नहीं bulaya गया है भाई यह कुत्ता समाज के लिए शर्म की बात है
हम सब kutta samaj ko पानी में डूब कर मर जाना चाहए
भैसे की क़ुरबानी ,बकरे की क़ुरबानी ,उट की क़ुरबानी ,
कुत्ता की क़ुरबानी नहीं होती है ,शेर की क़ुरबानी नहीं होती है ,चीते की क़ुरबानी नहीं होती है ,गजराज की क़ुरबानी नहीं होती है , इन सब से खतरा रहता है .
बस जो इन सब को खा नहीं सकता है बस उसकी क़ुरबानी होती है
क़ुरबानी hamesa लाचार की होती --------------

समय बीतने के साथ औरतों की खूबसूरती और बढ़ती है।'

१.खूबसूरत ओठ के लिए विन्रमता के शब्द बोलें।
२.खूबसूरत आँखों के लिए, लोगों में अच्छाइयाँ ढूंढो।
३.खूबसूरत काया के लिए अपने भोजन को
जो भूखे हों उनमें बांटे।
४.खूबसूरत चाल के लिये, यह सोच कर चलें कि आप अकेले नहीं हैं।
५.याद रखें कि यदि आपको कभी किसी की मदद की आवश्यकता हो उन्हें अपने दोनों कंधों के अन्त में पायेगे। जैसे, जैसे आप अधिक आयु के होगें आपको ज्ञात होगा कि आपके पास दो हाथ हैं जिसमें कि और एक हाथ आपके स्वयं के मदद के लिए तथा दूसरा, दूसरों की मदद के लिए है।
६।स्त्री की खूबसूरती उनके कपड़ों या उनके शरीर में या किस तरह से बाल झाड़ती है उससे नहीं है। उनकी खूबसूरती उनकी आँखों में देखी जा सकती है। यही रास्ता उनके दिल तक पहुंचने का है। जहां पर प्यार निवास करता है।
७।औरतों की खूबसूरती उनके चेहरों से नहीं होती है परन्तु उनकी आत्मा से झलकती है। उनकी खूबसूरती प्रेमपूर्वक दूसरों का ध्यान और ख्याल रखने के जोश में है।
८।मतलब कानों की शोभा कुंडल पहनने से नहीं श्रुतियों (श्रेष्ठ बातों ) को सुनने में हैहाथ की सुन्दरता कंगन से नहीं दान देने में है ॥और सारे शरीर की लोक सेवा से न कि चन्दन के लेप से है
कुछ भी जो पढ़ने मे आच्हा लगता वो औरो के साथ शेयर करो आज यही कुछ पढ़ा था जो ठीक लगा आप लोगो के सामने है .भाई यह किसी और के विचार है
आप लोगो के विचार सादर आमंत्रित है

Saturday, November 20, 2010

कुरबानी तो बडे पुण्य का काम

कुरबानी तो बडे पुण्य का काम
सच मुच कुरबानी तो बडे पुण्य का काम
आज कल कौन क़ुरबानी नहीं दे रहा है
आज कल हर आदमी क़ुरबानी दे रहा है।
एक बाप अपने बच्चओ की खातिर पता नहीं किस किस की क़ुरबानी देता है
एक पत्नी पता नहीं किस किस के क़ुरबानी देती है
एक कहावत है तुझ पे मै कुर्बान
आज कल सब स्वार्थ की क़ुरबानी है।
कुरबानी तो बडे पुण्य का काम
कोइए धरम के नाम पर कुर्बान है
कोइए शर्म के नाम पर कुर्बान है
कुर्सी की क़ुरबानी कोइए नहीं देता है.

Friday, November 19, 2010

जिंदगी जिन्दादिली का नाम है

जिंदगी का आयाम जिंदगी जिन्दादिली का नाम है
स्वस्थ रहो ,मस्त रहो,व्यस्त रहो,
यही जिंदगी है .

Wednesday, November 17, 2010

जीवन में कोई चीज असंभव नहीं हैं।

जीवन में कोई चीज असंभव नहीं हैं। बस आवश्यकता है सच्चे मन व मेहनत से कार्य करने की। ऐसा करने पर सफलता कदम चूमती है।

Tuesday, November 16, 2010

जनता की कीमत दो लाख है ---- -- नेता की कीमत किया है ?

किसी भी समय किसी खौंफनाक हादसे के इन्तेज़ार में.... आप की दिल्ली
आज दीपक बाबा जी के ब्लॉग पर जा कर एक खबर के बारे में उनके उदगार पढ़े
मन की मनो स्थति आप लोग समझ सकते है
लक्ष्मी नगर का हादसा --इस तरह के हादसे हमारे और आप के लिए
सरकारी अमला सरकार की शह पर तैयार करता है
और हम और आप खुशी खुशी स्वीकार कर लेते है
यह आप की मजबूरी होती है
कामन वेअल्थ गेम के दौरान सरकार जो चाहती थी
वह सरकार ने किया
फिर यह लक्ष्मी नगर जैसी घटना कियु होती है
सब सरकार की मिली भगत होती है
किया आज तक कोइए सरकारी नेता आइसे बिल्डिंग में दब कर मरा है ?
जनता की कीमत दो लाख है ---- -- नेता की कीमत किया है ?

Sunday, November 14, 2010

बंधन की महिमा -----------

बंधन एक जाना पहचाना सा सब्द बंधन जैसे ही बच्चा कुछ समझने लगता है
उसको किसी न बंधन में बांध दिया जाता है
हमारा यह मानना है की बंधन में किसी को नहीं बधना चाहिए
लेकिन हिन्दू धरम में तो सोलह संस्कार है
बहुत से हिन्दुओ को तो वाह पता ही नहीं है
की सोलह संस्कार कौन कौन से है
जाती का बंधन
उम्र का बंधन
समाज का बंधन
शादी का बंधन
प्यार का बंधन
और पता नहीं कौन कौन से बंधन में
हमको आप को बाँधा जाता है
कुछ लोग किसी भी बंधन को नहीं मानते है
भाई आप लोगो से एक सवाल है की क्या कोइए बंधन होना चाहिए ?
न उम्र की सीमा है न प्यार का है बंधन -----

Saturday, November 13, 2010

कनॉट प्लेस ब्लोगर्स मीट - कुछ मेरी तरफ से

लो बाबा, कर लो मन और देख लो फोटू...... कल से हल्ला कर रहे हो...... फोटू खींचनी तो आती नहीं... और लिख रहे हो पुरविया फोटू नहीं दे रहा.......

कल ब्लोगर मिलन में बाकी तो सब बहुत बदिया लगा... अच्छे लोगों में मुलाकात हुई, वक्ता बढिया लगे ..... पर एक सन्नाटा समझ से बाहर था...... एक दो को छोड़ कर किसी ने न तो कोई बात पूछी ...... न कोई समस्या बताई और न ही कोई उदगार व्यक्त किये..... सब कुछ प्रधानमन्त्री की प्रेस कोंफ्रेंस जैसा था.... जैसे कोई पाबन्दी लगी हो....

आप बस सुनने आये है...... और कोमेंट बॉक्स भी बंद .......

एक बात और है – अगर ओबामा का हिंदी में ब्लॉग होता तो आज शायद उनको भी समीरलालजी पर इर्ष्य होती – ये पक्का है. वो भी अपने स्टाफ को बुला कर खूब धमकाते ...... और हो सकता था... पूरा का पूरा CIA मेह्कम्मा ही चिट्ठाजगत में लगा देते.........

मैं, अपनी और बाकि ब्लोगर साथियों की तरफ से अविनाश जी का धन्यवाद करता हूँ – कार्यकर्म के लिए बढिया जगह का चयन किया और अच्छे नाश्ते के साथ विदा दी... वहाँ तो मिल नहीं पाए.... काफी व्यस्त लग रहे थे. एक बात और, आइन्दा अगर दिल्ली में कुछ इसी तरह का कार्यकर्म रखा जाता है तो व्यवस्था में अपनी सेवा देने के लिए तत्पर हूँ..... जो आदेश होगा.

फोटो देखिये..... बाबा ने बिना किसी एंगल से खींची है........






Friday, November 12, 2010

आप ब्लॉग पर है एक बार मुस्कराना है

मुस्कराना एक आर्ट है हर आदमी मुस्करा नहीं सकता है
मुस्कराना भी एक कला है
सबका मुस्कराने का एक अलग अंदाज होता है
कोई किसी के मुस्कान पर ही अपने पूरी जिन्दाजी दाव पर लगा देता है
पुराने लोग कहते है मुस्कराने के वक़्त बत्तस्सी नज़र नहीं आणि चाहिए
हँसना और मुस्कराने में बहुत फर्क है
आप गला फाड़ कर हँस सकते है
लेकिन मुस्करा --------सकते है
कोइए फत्तू पर हँसता है ,
कोई संता पर हसता है
कोइए ढक्कन और मक्खन पर हँसता है
कोई हम पर भी हँसता है ------
जिंदगी में मुस्कराना जरुरी है
मुस्कराना ही जिंदगी है

Thursday, November 11, 2010

ब्लॉग्गिंग का जीवन चक्र

ब्लॉग्गिंग का जीवन चक्र
प्रथम चक्र --दोस्त खोजकर न्योता भेजना (Send invitation) या दोस्त का आवेदन मिलना (Getinvitation)
द्वितीय चक्र -- बहुत खुश होना तथा कुछ दिन तक रोज़ना लिखना तथा Reply पाना
त्रितीय चक्र -- कुछ दिन पश्चात Replyआना बन्द फिर मन में ख्याल आना कि पहले वो लिखे तब ----
चतुर्थ चक्र-- दोस्त सिर्फ FriendList की शोभा बढाते हैं (Number of Friends inFriendList)
पांचवा तथा अंतिम चक्र -- दोस्त साथ में होते हुयेभी बहुत दूर चला जाता है।।।
मेरे और आपके साथ ऐसा ना हो इसीलियेमेरी गुज़रिश है ...........कि............

वो काफ़िर है तू कायर है

काफ़िर नाम ही काफी है क्या कोइए अपने औलाद का नाम काफ़िर रखता है ----नहीं रखता है ।
क्या कोइए अपने आप को कायर कहता है ---------नहीं कहेता है
अगर आप को कोइए काफ़िर कहता है
तो वोह कायर है
दुनिया में काफ़िर नाम की कोइए कौम ही नहीं है
एक अगर काफ़िर है तो दूसरा कायर है
काफ़िर तो काफ़िर न रहा
लेकिन तू कायर का कायर ही रहा
बिना वजह का हो हल्ला कुछ कायर मचा रहे है

Wednesday, November 10, 2010

इंटेली‍जेन्‍ट ब्‍लॉगिंग अपनाऍं, बिना वजह न चिढ़ाऍं।

इंटेली‍जेन्‍ट ब्‍लॉगिंग अपनाऍं, बिना वजह न चिढ़ाऍं।
बहुत सुंदर कहा है ब्लॉग्गिंग बहुत ही सुंदर स्थान है अपने बात कहने का लेकिन कुछ लोग आज कल इसको एक युद्ध की तरह इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहे है जो की बिल कुल ही गलत है बिना वहज किसी को न उकसाए
यही इसका सही उपयोग होगा इंटेली‍जेन्‍ट ब्‍लॉगिंग अपनाऍं, बिना वजह न चिढ़ाऍं।

Monday, November 8, 2010

एक हादसे का इन्तिज़ार करो तब लोगो के ---------------

जिस बेटी को अपने हाथों से पाला-पोसा, उसी को इन आंखों ने सड़क पर दम
तोड़ते देखा और इन्हीं हाथों ने उसकी चिता को अग्नि दी। मैं सड़क पर हाथ जोड़कर लोगों से अपनी बेटी को हॉस्पिटल ले जाने की गुहार करता रहा, लेकिन कोई रुकने को तैयार नहीं था। अगर इन हत्यारे ड्राइवरों और सरकारी कर्मचारियों में सुधार आ जाए तो बहुत सी जानें बच जाएंगी।'

यह वेदना सड़क हादसे में अपनी बेटी को मरते देखने वाले एक पिता की है। सिविल लाइंस इलाके में राजनिवास मार्ग पर बी. एम. ग्रेज सीनियर सेकेंडरी स्कूल में इश्मीत (14) क्लास 9 की स्टूडेंट थी। उसके पिता महेंद्र सिंह ने बताया कि इश्मीत स्टूडेंट पास बनवाने के लिए चार दिन से लगातार कश्मीरी गेट इलाके में डीटीसी ऑफिस में जा रही थी। स्कूल के बाद बेटी के डेढ़ किलोमीटर पैदल जाने के कारण महेंद्र सिंह 2 नवंबर को खुद स्कूल पहुंचे। वह इश्मीत को साथ लेकर स्कूटर पर चर्च के नजदीक डीटीसी ऑफिस गए। वहां पास बनाने वाले कर्मचारी ने आनाकानी की। वह बेटी को लेकर दोबारा स्कूल पहुंचे। वहां से वह दोबारा डीटीसी ऑफिस की ओर जा रहे थे।

इसी दौरान अलीपुर रोड पर ओबेरॉय अपार्टमेंट के सामने टूर ऐंड ट्रेवेल्स की एक बस ने रॉन्ग साइड में घूमकर उनके स्कूटर में पीछे से जोरदार टक्कर मारी। इश्मीत नीचे गिर गई। बस का अगला टायर उस पर चढ़ गया। बेटी की यह हालत देखकर महेंद्र सिंह ने रोते हुए आसपास से गुजर रहे गाड़ी वालों को हाथ जोड़कर रोकने की कोशिश की। न किसी कार वाले का दिल पसीजा, न फटफट सेवा के ड्राइवर ने अपनी गाड़ी रोकी और ऑटो ड्राइवर ने भी तिपहिया में ब्रेक नहीं लगाया। महेंद्र सिंह को चीत्कार करते देखकर एक सरदार जी ने अपनी कार रोकी। इश्मीत को सुश्रुत ट्रॉमा सेंटर ले जाया गया। कुछ देर बाद डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।

14 अक्टूबर को इश्मीत को जन्मदिन था। तब महेंद्र सिंह उसके लिए ज्योमेट्री बॉक्स, पर्स और नई सड़क से एक बुक गिफ्ट लेकर आए थे। अपनी सीमित आमदनी के बावजूद वह अपने खर्च बंद कर बेटी की हर डिमांड पूरी करते थे। वह उसके लिए कंप्यूटर भी ले आए थे। उनका कहना है कि बेटी की कामयाबी ही उनकी जिंदगी की सफलता होती। वह तिनका-तिनका जोड़कर उसे आईपीएस अफसर बनाना चाहते थे, हालांकि वह खुद डॉक्टर बनना चाहती थी।

महेंद्र सिंह को भगवान से शिकायत है कि उसने उनके साथ यह ठीक नहीं किया। अब वह बेटी की कापियों में उसकी लिखावट देखकर उसे याद करते रहते हैं। इस दुखद हादसे से एक दिन पहले इश्मीत ने अपने पिता से सदीर् का हवाला देकर कोट निकालने के लिए कहा था। महेंद्र सिंह ने फुर्सत मिलते ही संदूक में रखा उसका कोट निकालने के लिए कहा था। अब उनका कहना है कि उस कोट को बाहर निकालने की जरूरत ही नहीं रही।

महेंद्र सिंह को जिंदगी भर का दुख देने वाले बस ड्राइवर लाभाराम को गिरफ्तारी के बाद थाने से ही जमानत भी मिल गई। दरअसल जानलेवा रोड एक्सिडेंट के केस में आईपीसी के सेक्शन 304ए के तहत एफआईआर होती है, जो जमानती अपराध है। इसमें थाने से ही बेल मिल जाती है। लाभाराम को जमानत पहले मिली, जबकि इश्मीत का अंतिम संस्कार बाद में हुआ। महेंद सिंह के मुताबिक, अगर इश्मीत की जान लेकर ही लापरवाह ड्राइवर कर्मचारी सुधर जाएं तो बहुत से बच्चे बच जाएंगे। उन्हें दुख है कि अगर इश्मीत को हॉस्पिटल ले जाने के लिए सड़क पर कोई जल्दी ठहर जाता तो उनकी बेटी बच सकती थी।
हर खबर कुछ कहती है लोगो की संवेदना ख़तम हो चुकी है.

Wednesday, November 3, 2010

आदमी अपने बिरादरी में ठीक रहता है

जंगल में एक हरे भरे जगह पर कुकर सभी इक्कट्ठा हैं........ मौका है - नया सरदार चुनने की रस्म पूर्ति करने का .......
वैसे तो कुक्कर स्वाभाव से ही स्वामिभक्त होते है और ये चुनाव वगैरा में मन नहीं लगाते - पर क्या है कि इस जंगल में लोकतंत्र की रावायत चली हुई है....... इसलिय दिखाने को ही सही... सभी कुक्कर चुनाव में भाग लेते हैं व् अगले तील साल के लिए सरदारी तय करते हैं.... वैसे ये सरदारी भी एक ही वंश के अधीन है........ शुरू से ही इस वंश को सरदारी करने का शौंक रहा था..... इसके लिए जंगल भी बाँट डाला गया...... ताकि अपनी सरदारी कायम रहे...... उसके बाद जो पुश्ते हुई .... उन्होंने और इस सरदारी को पुख्ता किया.....
वैसे इस जंगल का इतिहास बहुत ही पुराना है. कई सैकड़ों साल पहले दुसरे जंगल के जानवरों ने यहाँ के सिंहों पर शासन किया..... इतनी गुलामी के बाद सिंह दहाड़ना तो दूर, गुराना ही भूल गए.. कोई २०० साल पहले कुछ गोरे रंग के अलग तरह से जानवर इस जंगल में आये और ....... उन्होंने सिंहो को बिलकुल ही बदल डाला...... और उन्हें नख दांत शक्ति वहीन कर दिया ..... हालाँकि समय समय पर कुछ सिंह सरदार भी आये पर और उन्होंने अपनी कौम को जाग्रत करने का प्रयास किया पर - गौरे जानवरों की शिक्षा का इत्ता प्रभाव था कि उनका कोई प्रयास कामयाब नहीं हुवा.
आइये फिर उसी हरे-भरे स्थल पर चलते हैं - इस समय 50 से भी ज्यादा कुक्करों ने खड़े होकर पुराने सरदार के पक्ष में अपनी निष्ठा दर्शाई ..... और देखते ही देखते ... कई कुक्करों ने इक्कठे एक सुर में भौंकने लगे....
निवर्तमान सरदार ..... संतुष्ट हुवा..... और एक ऊँचे टीले पर चढ़कर ... जोर की गुर्हात भर का सब को शांत रहने का इशारा किया...... कुक्कर समुदाय बहुत ही प्रस्सन था ...... जज्बातों को काबू में रख कर चुप तो हुवा..... पर उमंगें इत्ती ज्यादा थी अत: उन्होंने सरदार के वर्णसकर्ण युवा पुत्र को घेर लिया ........ और उसकी भी स्तुति गान करने लगे.. निष्ठा और चम्मागिरी का ये अनुपम उद्धरण कहीं और देखने को नहीं मिला.
हालांकि मुद्दे तो बहुत थे...... कई कुक्कर भष्टाचार की सभी हदें पार कर चुके थे..... कुछ तो रक्षकों के मकान को अपने नाम किये बैठे थे, कुछ जंगल के जानवरों का राशन गोदाम में रख कर भूल गए थे - जो बाद में पड़ा-पड़ा सड़ गया . कुछ ने जंगल गौरव के नाम हजारों करोड़ डकार चुके लिए ...... पर सरदार ने इन सब को भुला कर सिंहो के उस गिरोह पर ही निशाना साधा. उन्हें आंतकवादी करार दे दिया गया ........ कुक्कर समुदाय और प्रस्सन हुवा......... मीडिया भी थी..... चकाचक फोटू, अखबार में पहले पेज पर ८० पॉइंट बोल्ड हेडिंग लगी " आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्तता" को बक्शा नहीं जाएगा........
जिन कुकरों ने दुनिया भर के घोटाले कर रखे थे..... बहुत खुश हुए और सरदार का इशारा पार का भौंकते हुए हमला करने भाग पड़े

गंगाराम और भारत के नंगाराम

बाबा मेरी बात सुनो......, गधा बनना मंज़ूर है ........ पर खुदा किसी को छोटा भाई न बनाये.......
रे गंगा राम के बात हो गयी.
कुछ नहीं बाबा, बस एक बात गधा बनना मंज़ूर है ........ पर खुदा किसी को छोटा भाई न बनाये.......
अरे फिर भी कुछ तो बोलेगा...
अब क्या बोलूं बाबा, घर में हम पांच भाई, मैं सबसे छोटा - गंगा राम..
ठीक है, इसमें के... एक न एक ने तो छोटा होना ही था....... तू हो गया.
नहीं बाबा, तेरा कोई बड़ा भाई है...
नहीं - गंगा राम..... न तो मेरा कोई बड़ा भाई है न ही कोई छोटा...पण तेरे जीसे छोटे-बड़े घने भाई से.....
बाबा, मैं असल की बात करूँ और तू बातां की खान लग रहा....
नहीं गंगा राम, मेरो कोई बड़ो भाई कोणी......
जी बात....
बाबा.... इब मैं अपना दर्द सुनाऊं .......
सुना भाई छोरे....
पहला बोला, रे गंगाराम, भैंसों ने सानी कर दे हमने सूट और बूट पहन रखे हैं....
ठीक है भैया.....
दूसरा बोला, रे गंगाराम, जा जीजी ने घर छोड़ आ, और हाँ जे सूट और बूट पहर जईओ - इज्जत का सवाल है .... हमने काम ज्यादा है....
ठीक है भैया.....
तीसरा बोला, रे गंगाराम, जा खेता में चला जा, पानी लगा दिए.... आज बिजली रात की है.
ठीक है भैया.....
चोथा बोला, रे गंगा राम, अब ये सूट और बूट तू पहन ले, मेरे पे छोटे हो गए.
ठीक hai
और हाँ, रात चला जाईये, प्रधान जी ने दारू पी राखी होगी.... उने राम राम कर दिए - जरूर, बापू ने मने कही थे.... पर मेरे कपडे ठीक कोणी - तने सूट और बूट पहर रखे हैं
भाई जे है छोटे भाई की दास्ताँ, अगर खुद सूट और बूट पहने तो कोई काम न करे ..... और हमने पहर लिए तो प्रधान जी तैयार........

Tuesday, November 2, 2010

क्रांति से पहले अध्यात्मिक क्रांति की आवश्यकता है

आज भारतीय मानुष काम नहीं करना चाहता – चाहे वो कोई भी क्षेत्र हो। जिस तब्बके के बच्चे आगे नहीं पढ़ना चाहते सरकार को उनके लिए कुछ वोकेशनल ट्रेनिंग का इंतज़ाम करना चाहिए... ये ठीक है की ये वोकेशनल ट्रेनिंग आज कक्षा दस के बाद है ...... पर इसे आठवी कक्षा के बाद चालू करन चाहिए और इसमें निजी क्षेत्र को भी आगे आना चाहिए.....
क्रांति से पहले अध्यात्मिक क्रांति की आवश्यकता है

Monday, November 1, 2010

बाबा के लिखने मात्र से क्रांति नहीं हो जाती

क्रांति.......... हर क्षेत्र में........
इस धरा पर अगर मेरे जैसे लोग जन्म ले कर शांति के लिए अनाप शनाप तरीके आजमा रहे है तो गलत है ....... सवेदनाओ को एक किनारे कर के समाज में एकरस हो जाना ही जीने की कला है... या फिर भावनाओं में जकड कर अपने को समाज से किनारे रखना .... दूसरी कला. अब अपने पर निर्भर करता है की कौन सी कला में निपुण होकर जीने लायक है.
हम है उस प्रभु के दासा.......
देखन आये जगत तमाशा..
इस तर्ज़ पर दूर से दुनिया को देखना और उस में खुद निर्लेप न होना. या खुद को दूर ही रखना - हर वाद, धारा, सम्युदाय, क्षेत्र से.
विश्व साहित्य प्रसिद्ध साईंस फिक्शन कृति ब्रेव न्यू वर्ल्ड के लेखक आल्डूअस हक्सले साहब के कथन हैं -“गंगा में मोक्ष की अभिलाषा लिए लोगों को डुबकी लगाते देख उनका चिन्तक मन क्लांत हो गया ..उन्होंने आगे लिखा -"भारतीयों ने जीवन के संघर्ष से मुंह मोड़ काल्पनिक सत्ताओं का सृजन कर लिया -आत्मा परमात्मा और मोक्ष जैसी धारणाएं इसी का परिणाम है !"”
मित्र सुरेश नागपाल जी के शब्द है....
क्यों, भई, क्यों चाहिए तुम्हे शांति......... कर्म करो....... शांति वान्ति कहीं नहीं है. तुम कहते शांति ..... नहीं मिलती ... और अब मेरे ख्याल से मिलनी भी नहीं चाहिए. यहाँ मानव जन्म में शांति का क्या काम. कर्म की बात करनी चाहिए..... शांति तो उन संतो को भी नहीं मिलती जो दूर कंदराओ में बैठे है. जो संन्यास धारण करके भी अखाड़ों और पदवी की राजनीति में उलझे रहते है.. और तुमने तो मात्र अपने नाम के आगे मात्र बाबा लगाया है.
अन्न धन और वैभव से परिपूर्ण सेठ का पता नहीं क्या हुवा...... शांति की तलाश में चल पड़ा. दूर किसी जंगल में जाकर राम जी के चरणों में धूनी जमा कर बैठ गया और.... प्रभु को सेठ की जिद्द के आगे नतमस्तक होकर दर्शन देने पड़े. तपस्या से खुश होकर उस नगर सेठ को राष्ट्र सेठ बनाने के धन-धन्य इत्यादी .. सेठ में कहा प्रभु मुझे ये सब नहीं चाहिए.......
मुझे बस शान्ति चाहिए.. राम जी ने कहा ... सेठ, तुमने रामायण पढ़ कर ऐसा सोच रहे हो........ मानव जन्म में तो मुझे कहाँ शान्ति मिली थी......सारी जिंदगी मात्र परेशानी, संघर्ष के अलावा क्या थी..... क्या मैं भी शांत मन से अजोध्या में एक किनारे बैठ कर जिंदगी नहीं काट सकता था..........
सत्य है....... इश्वर ने अवतार लिए है.. मात्र हमको रास्ता दिखाने को ही हैं....... और हम लोग अंधभक्ति में पड़ कर घंटी बजाने लग जाते हैं और उस कहानी के तत्व ज्ञान को भूल जाते हैं........
शान्ति नहीं............
अब क्रांति की बात होनी चाहिय........
भारत वर्ष में हर क्षत्र में क्रांति चाहिए.........
हम यानी लगभग १.२५ अरब की संख्या वाला देश जिसमे लगभग पच्चास प्रतिशत युवा माने तो २५ साल से भी कम की उम्र के हैं............... और यही युवा पीडी किसी न किसी बाबा, संत फकीर के चक्कर में पड़ी है....... कहीं जागरण और कहीं साईं संध्या के लिए दिन रात एक कर रहे हैं.
और हमरा अपना देश बनाने के लिए चीन से श्रमिक भी आने लग गए....... इस धार्मिक नशे और आलस्य का जीवन छोड़ कर एक नाद कर देना चाहिए.............
क्रांति.......... हर क्षेत्र में........
हम लोग छोटे-छोटे कार्य में निपुण होकर बड़े-बड़े प्रोजेक्ट को बनायेंगे..........
बहरहाल, जय राम जी की