Monday, September 13, 2010
दुनिया बदल गयी लकिन तू कियूँ न बदला
दुनिया मैं हर चीज बदल जाती है लकिन कुछ लोग ऐसा होता है वोह आखरी दम तक नहीं बदल पाते है ,एक बार की बात एक गाँव मैं एक बहुत ही सरारती रहेता था बहुत ही सरारत करता था गाँव की नाक मैं दम कर रखा था ,कुछ समय के बाद उसका जीवन का आखिरी पड़ाव आ गया उसना सब गाँव वालो को bulttiya और दोनों हाथ जोड़ कर गाँव वालो से बोला की भी लोगो मैना आप लोगो को बहुत ही सताया है अब मेरा आखिरी वक़्त है मैं आप लोगो से माफ़ी मागता हु आप लोग muja माफ़ कर दी ताकि मैं चैन से मर सकू सब गाँव वालो नै सलाह मशविरा क्या और बोला चलो भी इसको माफ़ कर दो यह अपना क्या पर शिर्मिन्दा है जब गाँव वालो नै उसको माफ़ कर दिया तो उसना एक बात कही भी लोगो मेरी एक आखिरी इच्छा है लोग बोले क्या है वो बोला जम मैं मर जाऊ तो मेरा मुख मैं एक बाद bada लक्कड़ गाड देना इस से मैं समझुगा की आप लोगो मैं माफ़ कर दिया ,उसका मरना के बाद लोगो नै यही क्या जैसा ही उसको लाकर कुछ दूर आगे चले वह पर एक सिपाही खड़ा था उसना देखा यह क्या मुर्दा के मुख मैं लक्कड़ है यह तो लगता है की हत्या का मामला है तुर्रेंट दरोगा जी को खबर दी दरोगा जी नै sabco thana bula liya aab लोग kehana lage e तो जब तक jinda thaa नाक मैं दम कर रखा था और मरना के baad bhee dekho कुछ न कुछ कर ही गया -------------
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इस किस्से पर वही कहावत याद आ गई..........
ReplyDelete"कुत्ते कि दुम्म - कभी सीधी नहीं होती"
wah deepak ji wah kiya baat hai
ReplyDeleteबहुत अच्छी और संदेश देती पोस्ट। ऐसे लोगों से दो-चार हम होते ही रहते हैं।
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
शैशव, “मनोज” पर, आचार्य परशुराम राय की कविता पढिए!
bilkul sahi baat hai
ReplyDeleteराजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
ReplyDeleteमैं दुनिया की सब भाषाओं की इज़्ज़त करता हूँ, परन्तु मेरे देश में हिन्दी की इज़्ज़त न हो, यह मैं नहीं सह सकता। - विनोबा भावे
भारतेंदु और द्विवेदी ने हिन्दी की जड़ें पताल तक पहुँचा दी हैं। उन्हें उखाड़ने का दुस्साहस निश्चय ही भूकंप समान होगा। - शिवपूजन सहाय
हिंदी और अर्थव्यवस्था-2, राजभाषा हिन्दी पर अरुण राय की प्रस्तुति, पधारें