Wednesday, October 6, 2010

पुरुषों के खिलाफ होने वाली हिंसा की बातकोई नहीं मानता है

नई दिल्ली। 'पत्नी सताए तो हमें बताएं' जैसे विज्ञापनों को एक समय अतिरंजना के तौर पर देखा जाता था, लेकिन पिछले कुछ समय के आंकड़ों ने इस धारणा को बदल दिया है कि सिर्फ महिलाएं ही घरेलू हिंसा का शिकार बनती हैं। अब सिक्के का दूसरा पहलू सामने आया है, जिसमें पुरुषों को भी घर या समाज में किसी न किसी प्रकार की शारीरिक, मानसिक या आर्थिक हिंसा का सामना करना पड़ रहा है।
पिछले कुछ दिनों से ऐसे मामलों में लगातार इजाफा हो रहा है, जिसमें पुरुषों को घरेलू हिंसा का शिकार होना पड़ रहा है और पुरुषों को इस बात को लेकर मलाल है कि उनकी इन शिकायतों का न तो कहीं निपटारा हो रहा है और न ही समाज उनकी इन शिकायतों को स्वीकार कर रहा है। घरेलू हिंसा के शिकार होने वाले पुरुषों के लिए काम करने वाली संस्था 'सेव इंडियन फैमिली फाउंडेशन' के प्रतिनिधि प्रकाश जुगनाके इसकी गंभीरता को कुछ ऐसे बताते हैं कि तस्वीर का सबसे भयावह पहलू यह है कि पुरुषों के खिलाफ होने वाली हिंसा की बात न तो कोई मानता है और न ही पुलिस इसकी शिकायत दर्ज करती है। इस सबसे परेशान होकर कई बार पुरुष बेबसी में आत्महत्या जैसा कदम उठाने को भी मजबूर हो जाते हैं। जुगनाके ने से कहा कि महिलाओं के पास कानून का कवच है, जिसका खुलकर दुरुपयोग हो रहा है। इस बात को अब स्वीकार भी किया जा रहा है, लेकिन स्थिति यथावत है। शीर्षाधिकारियों के पास जानकारी है, इसलिए वे मान जाते हैं, लेकिन छोटे शहरों में घरेलू हिंसा के शिकार पुरुषों को अपनी शिकायत रखने के लिए कोई मंच नहीं मिलता है।
एक अन्य संगठन 'फैमिली' के संयोजक अमित त्रिपाठी के मुताबिक समाज भी इस बात को स्वीकार नहीं करता कि पुरुषों के साथ महिलाएं हिंसा करती हैं। त्रिपाठी के मुताबिक, दहेज के झूठे मामलों की तो छोड़िए, वे तो सबके सामने आ गए हैं। पुरुष तो चारदीवारी के भीतर मारपीट और पैसे छीने जाने के मामलों के भी शिकार हो रहे हैं, समाज में क्या इन बातों को कोई स्वीकार करेगा? सुप्रीम कोर्ट ने भी पिछले महीने एक मामले की सुनवाई के दौरान घरेलू हिंसा के शिकार पुरुषों की स्थिति को समझते हुए कहा कि महिलाएं दहेज विरोधी कानून का दुरुपयोग कर रही हैं और सरकार को इस कानून पर एक बार फिर नजर डालने की जरूरत है। न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी और न्यायमूर्ति के एस राधाकृष्णन की खंडपीठ ने धारा 498 [ए] के दुरुपयोग की बढ़ती शिकायतों के मद्देनजर कहा था कि कई ऐसी शिकायतें देखने को मिली हैं, जो वास्तविक नहीं होतीं और किसी खास उद्देश्य को लेकर दायर की जाती हैं। जुगनाके ने बताया कि उनके संगठन समेत कई अन्य संगठनों ने राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल को भी इस संबंध में ज्ञापन सौंपा है, जिस पर कार्रवाई का इंतजार है।
पुरुष इस समस्या से निपटने के लिए किसका सहारा लें, इस सवाल के जवाब में सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता कमलेश जैन कहती हैं कि सबसे पहले तो पुरुषों को इस बारे में प्राथमिकी दर्ज करानी चाहिए। अगर पुलिस प्राथमिकी के बाद कोई कार्रवाई न करे, तो इस प्राथमिकी को जिला न्यायाधीश के पास दिखाया जा सकता है। जैन ने कहा कि पुरुषों की शिकायत होती है कि पुलिस उनकी शिकायत पर मामला दर्ज ही नहीं करती, ऐसे में पीड़ित पक्ष सीधे मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट या मेट्रोपालिटन मजिस्ट्रेट के पास जा सकता है। कमलेश ने इस बात को भी रेखांकित किया कि निचली अदालतों से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक अब इस बात को महसूस कर रहे हैं कि महिलाएं 498 [ए] का दुरुपयोग कर रही हैं। इसी का परिणाम है कि कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जिनमें अदालतों ने झूठी शिकायतों पर कार्रवाई करते हुए महिलाओं को सजा दी है।
सेव फैमिली फाउंडेशन और माइ नेशन फाउंडेशन ने अप्रैल 2005 से मार्च 2006 के बीच एक ऑनलाइन सर्वेक्षण किया था। इस सर्वेक्षण में शामिल लगभग एक लाख पुरुषों में से 98 फीसदी पुरुष किसी न किसी तौर पर घरेलू हिंसा का शिकार बन चुके थे। इसमें आर्थिक, शारीरिक, मानसिक और यौन संबंधों के दौरान की जाने वाली हिंसा के मामले शामिल थे।

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