Monday, November 8, 2010

एक हादसे का इन्तिज़ार करो तब लोगो के ---------------

जिस बेटी को अपने हाथों से पाला-पोसा, उसी को इन आंखों ने सड़क पर दम
तोड़ते देखा और इन्हीं हाथों ने उसकी चिता को अग्नि दी। मैं सड़क पर हाथ जोड़कर लोगों से अपनी बेटी को हॉस्पिटल ले जाने की गुहार करता रहा, लेकिन कोई रुकने को तैयार नहीं था। अगर इन हत्यारे ड्राइवरों और सरकारी कर्मचारियों में सुधार आ जाए तो बहुत सी जानें बच जाएंगी।'

यह वेदना सड़क हादसे में अपनी बेटी को मरते देखने वाले एक पिता की है। सिविल लाइंस इलाके में राजनिवास मार्ग पर बी. एम. ग्रेज सीनियर सेकेंडरी स्कूल में इश्मीत (14) क्लास 9 की स्टूडेंट थी। उसके पिता महेंद्र सिंह ने बताया कि इश्मीत स्टूडेंट पास बनवाने के लिए चार दिन से लगातार कश्मीरी गेट इलाके में डीटीसी ऑफिस में जा रही थी। स्कूल के बाद बेटी के डेढ़ किलोमीटर पैदल जाने के कारण महेंद्र सिंह 2 नवंबर को खुद स्कूल पहुंचे। वह इश्मीत को साथ लेकर स्कूटर पर चर्च के नजदीक डीटीसी ऑफिस गए। वहां पास बनाने वाले कर्मचारी ने आनाकानी की। वह बेटी को लेकर दोबारा स्कूल पहुंचे। वहां से वह दोबारा डीटीसी ऑफिस की ओर जा रहे थे।

इसी दौरान अलीपुर रोड पर ओबेरॉय अपार्टमेंट के सामने टूर ऐंड ट्रेवेल्स की एक बस ने रॉन्ग साइड में घूमकर उनके स्कूटर में पीछे से जोरदार टक्कर मारी। इश्मीत नीचे गिर गई। बस का अगला टायर उस पर चढ़ गया। बेटी की यह हालत देखकर महेंद्र सिंह ने रोते हुए आसपास से गुजर रहे गाड़ी वालों को हाथ जोड़कर रोकने की कोशिश की। न किसी कार वाले का दिल पसीजा, न फटफट सेवा के ड्राइवर ने अपनी गाड़ी रोकी और ऑटो ड्राइवर ने भी तिपहिया में ब्रेक नहीं लगाया। महेंद्र सिंह को चीत्कार करते देखकर एक सरदार जी ने अपनी कार रोकी। इश्मीत को सुश्रुत ट्रॉमा सेंटर ले जाया गया। कुछ देर बाद डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।

14 अक्टूबर को इश्मीत को जन्मदिन था। तब महेंद्र सिंह उसके लिए ज्योमेट्री बॉक्स, पर्स और नई सड़क से एक बुक गिफ्ट लेकर आए थे। अपनी सीमित आमदनी के बावजूद वह अपने खर्च बंद कर बेटी की हर डिमांड पूरी करते थे। वह उसके लिए कंप्यूटर भी ले आए थे। उनका कहना है कि बेटी की कामयाबी ही उनकी जिंदगी की सफलता होती। वह तिनका-तिनका जोड़कर उसे आईपीएस अफसर बनाना चाहते थे, हालांकि वह खुद डॉक्टर बनना चाहती थी।

महेंद्र सिंह को भगवान से शिकायत है कि उसने उनके साथ यह ठीक नहीं किया। अब वह बेटी की कापियों में उसकी लिखावट देखकर उसे याद करते रहते हैं। इस दुखद हादसे से एक दिन पहले इश्मीत ने अपने पिता से सदीर् का हवाला देकर कोट निकालने के लिए कहा था। महेंद्र सिंह ने फुर्सत मिलते ही संदूक में रखा उसका कोट निकालने के लिए कहा था। अब उनका कहना है कि उस कोट को बाहर निकालने की जरूरत ही नहीं रही।

महेंद्र सिंह को जिंदगी भर का दुख देने वाले बस ड्राइवर लाभाराम को गिरफ्तारी के बाद थाने से ही जमानत भी मिल गई। दरअसल जानलेवा रोड एक्सिडेंट के केस में आईपीसी के सेक्शन 304ए के तहत एफआईआर होती है, जो जमानती अपराध है। इसमें थाने से ही बेल मिल जाती है। लाभाराम को जमानत पहले मिली, जबकि इश्मीत का अंतिम संस्कार बाद में हुआ। महेंद सिंह के मुताबिक, अगर इश्मीत की जान लेकर ही लापरवाह ड्राइवर कर्मचारी सुधर जाएं तो बहुत से बच्चे बच जाएंगे। उन्हें दुख है कि अगर इश्मीत को हॉस्पिटल ले जाने के लिए सड़क पर कोई जल्दी ठहर जाता तो उनकी बेटी बच सकती थी।
हर खबर कुछ कहती है लोगो की संवेदना ख़तम हो चुकी है.

3 comments:

  1. behad samvedansheel prastuti... maa-baap ke liye isse bada dukh koi nahi ki unke saamne koi beti dam tod den.... sach mein aaj jis tarah ka mauhal jahan kahin dikhta hai isse yahi lagta hai ki insaan samvedanheen hota jaa raha hai..
    ..bahut dukh hota hai aise haadson ko dekhkar, sunkar......
    ..saarthak samvedansheel prastuti ke liye aabhar

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  2. संवेदनशील व मार्मिक

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  3. सच है आज संवेदनाएं मर चुकी हैं .... सब पता नहीं किस बात के पीछे भाग रहे हैं ... बहुत शर्म की बात है ..

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