बंधन एक जाना पहचाना सा सब्द बंधन जैसे ही बच्चा कुछ समझने लगता है
उसको किसी न बंधन में बांध दिया जाता है
हमारा यह मानना है की बंधन में किसी को नहीं बधना चाहिए
लेकिन हिन्दू धरम में तो सोलह संस्कार है
बहुत से हिन्दुओ को तो वाह पता ही नहीं है
की सोलह संस्कार कौन कौन से है
जाती का बंधन
उम्र का बंधन
समाज का बंधन
शादी का बंधन
प्यार का बंधन
और पता नहीं कौन कौन से बंधन में
हमको आप को बाँधा जाता है
कुछ लोग किसी भी बंधन को नहीं मानते है
भाई आप लोगो से एक सवाल है की क्या कोइए बंधन होना चाहिए ?
न उम्र की सीमा है न प्यार का है बंधन -----
न उम्र की सीमा है न प्यार का है बंधन -----
ReplyDeletehona chahiye ..bahut badhiya mishr ji
सब कच्चे धागे के बंधन हैं......
ReplyDeleteनिभाओ तो बखूबी से और न निभाव तो एक झटके में टूट जायेंगे.
sahi kaha mishra ji.
ReplyDeleteसब कच्चे धागे के बंधन हैं......
ReplyDeleteनिभाओ तो बखूबी से और न --------
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteविचार-परिवार
bandhan to hote hi hain. lekin jo khud hi ban jayein aur bane rahein, wo hi achhe.
ReplyDeleteबन्धन में बँधने वाला ही जानता है बन्धन के महात्म्य को
ReplyDeleteअनेक बन्धन में हम स्वेच्छा से बँध जाने को आतुर होते हैं
पूर्विया जी,
ReplyDeleteसही कहा आपने, क्यों हम बंधें, पर दीपक जी का भी सच है…।
कच्चे धागे की तरह टूटे सब अनुबंध।
आखिर कितने दिन चले स्वारथ के सम्बंध्॥
दिव्या जी नें भी खुब कहा स्वसमर्पण ही बंधन है।
वर्मा जी भी कहते है,हम स्वेच्छा से बँध जाने को आतुर रहते है।
सार यही है कि
1- बंधने की किसी को इच्छा नहिं होती।
2- स्वार्थ से टूटते बंधन फिर दुखी कर जाते है।
3- मोहबंधन में हम स्वतः बंधे चले जाते है।
4- सभी, बंधन से से मुक्ति चाहते है - परमसत्य॥
suz ji ne sahi kaha .
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