Tuesday, September 13, 2011

न अति बरखा न अति प्रीत .

न अति बरखा न अति प्रीत ....अति किसी की हो ठीक नहीं होती वह पठन हो या पाठन हो लिखी हो या घिसाई हो 
पता नहीं लोग अपने को क्या क्या समझते है कुछ समझ ही नहीं आता है ....

एक अति जरुरी जानकारी जब हमारी किसी से नई नई मित्रता होती है तब उसकी हमें हर बात अच्छी लगाती है 
लेकिन वही मित्र कुछ समय के बाद अच्छा नहीं लगता है जब वह आप की हर बात मैं कोइए न कोई कमी निकालने लगता है  वही मित्र दुश्मन की तरह लगता है ....

यही सब आजकल ब्लागजगत मैं चल रहा है .....
जय बाबा बनारस....

5 comments:

  1. आपके विचारों से सहमत . मगर ब्लाग जगत एक बड़ा परिवार है और हर परिवार में सभी एक जैसे नहीं रहते.
    पुरवईया : आपन देश के बयार

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  2. आपके विचारों से सहमत!!!

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  3. ब्लाग जगत में कुछ मित्र (?) शुरू से कमियाँ ही निकालते हैं. ऐसे मित्रों से बचे हैं तो भाग्यशाली हैं आप.

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