अब आगे क्या होगा पता नहीं ?
एक बार मुझे अपने घर के रास्ते में एक कांटा चुभा । जूता छेद कर अन्दर तक चला गया । बहुत दर्द हुआ; बड़ा, लम्बा-मोटा था । मैंने निकाला और किनारे फैंक दिया फिर भूल गया । एक दो दिन तक हलकी पीड़ा रही; उसके बाद तो बिलकुल भी याद न रहा ।
कुछ दिन बाद मेरे बेटे ने शाम को लंगड़ाते हुए शिकायत करी; कि उसे उसी रास्ते पर दिन में कांटा चुभा, और क्योंकि वह चप्पल में था तो पांव में ज्यादा अन्दर तक गया और अब पीड़ा हो रही है । उसे सावधान रह कर चलने और खेलने की नसीहत देकर मैं एक दो दिन में फिर भूल गया ।
कुछ दिन बाद हमारे क्षेत्र के कुछ लोग जिनके पास खाली समय प्रयाप्त होता है। वह आये और उन्होंने बताया कि रास्ते में कांटे और कुछ गन्दगी हो जाती है उसे साफ करने के लिए हमने एक समिति बना दी है । और 'हम', लोगों से इसमें आने वाले खर्च के लिए चंदा एकत्र कर रहे हैं आप भी दो। हमें यह कार्य ठीक लगा, हमने उन्हें चंदा देदिया ।
अब वह नियमित तौर पर चंदा लेने आने लगे, पहले महीने में एक बार, फिर; साप्ताहिक ।
कुछ समय गुजरा; हमें भी, और अन्य लोगों को भी लगा; कि चलो काँटों से तो मुक्ति मिली।
लेकिन ऐसा हुआ नहीं कुछ समय बाद काँटों की शिकायतें फिर से मिलने लगीं, अपितु अधिक मिलने लगीं स्वयं मैंने भी देखा संभल कर न चलें तो जरुर कांटा चुभ जाये ।
क्या हुआ ? उनसे पूछा जो चंदा लेने आते थे, उन्होंने बताया; कि चंदा कम पड़ने लगा बढ़ाना पड़ेगा, तभी व्यवस्था हो सकती है…। क्षेत्र के लोगों की सभा बुला ली गयी..., उनका विरोध हो गया...., नयी समिति वालों ने कहा; कि हम करेंगे अच्छी व्यवस्था, "वो सौ बढ़ाने को कह रहे हैं हम पचास रुपये बढाकर ही ये काम करेंगे" । सबको बात सही लगी । दरअसल कोई नहीं चाहता था कि उसे या उसके बच्चों को कांटे चुभें । ........... ।
कुछ समय बाद नयी समिति ने भी वही नाटक कर दिया । इस बार पुरानी वाली समिति ने अपना दावा ठोक दिया; कि हम करेंगे सही व्यवस्था …… ।
इसी तरह चल रहा था, कि "हमारी कालोनी में एक नए निवासी आ गए कुछ समय बाद जब उन्हें इस अवस्था का ज्ञान हुआ तो उन्होंने एक सुझाव दिया; कि हम केवल रास्ते से कांटे क्यों साफ करवा रहे हैं। क्यों न जहाँ से वो कांटे रास्ते पर आ रहे हैं वही से उन्हें साफ करवाएं"।
सभी को सांप सा सूंघ गया, "ये बात आज तक क्यों नहीं सूझी" जब समझ आया तो सभी ने बात का समर्थन किया। पर; जो कांटे साफ करने के लिए चंदा करते थे, वह एकदम से चुप हो गए, क्या कहें विरोध करें तो जानता के बुरे, न करें तो अपनी कमाई छूटे।
न निगले बन रहा न उगले बने ऐसी स्थिति हो गयी है ।
अब आगे क्या होगा पता नहीं ?
पर हम तो उन मूल बदलाव लाने वाले के साथ में हो गए हैं । जो समस्या को जड़ से समाप्त करना चाहते हैं ।
हमारे देश का भी यही हाल है। कल जो पाकिस्तान ने किया सब सही है और मन मोहन मुरली बजा रहा है।पता नहीं कब इसका गला खुलेगा ....
जय बाबा बनारस।।।।।
एक बार मुझे अपने घर के रास्ते में एक कांटा चुभा । जूता छेद कर अन्दर तक चला गया । बहुत दर्द हुआ; बड़ा, लम्बा-मोटा था । मैंने निकाला और किनारे फैंक दिया फिर भूल गया । एक दो दिन तक हलकी पीड़ा रही; उसके बाद तो बिलकुल भी याद न रहा ।
कुछ दिन बाद मेरे बेटे ने शाम को लंगड़ाते हुए शिकायत करी; कि उसे उसी रास्ते पर दिन में कांटा चुभा, और क्योंकि वह चप्पल में था तो पांव में ज्यादा अन्दर तक गया और अब पीड़ा हो रही है । उसे सावधान रह कर चलने और खेलने की नसीहत देकर मैं एक दो दिन में फिर भूल गया ।
कुछ दिन बाद हमारे क्षेत्र के कुछ लोग जिनके पास खाली समय प्रयाप्त होता है। वह आये और उन्होंने बताया कि रास्ते में कांटे और कुछ गन्दगी हो जाती है उसे साफ करने के लिए हमने एक समिति बना दी है । और 'हम', लोगों से इसमें आने वाले खर्च के लिए चंदा एकत्र कर रहे हैं आप भी दो। हमें यह कार्य ठीक लगा, हमने उन्हें चंदा देदिया ।
अब वह नियमित तौर पर चंदा लेने आने लगे, पहले महीने में एक बार, फिर; साप्ताहिक ।
कुछ समय गुजरा; हमें भी, और अन्य लोगों को भी लगा; कि चलो काँटों से तो मुक्ति मिली।
लेकिन ऐसा हुआ नहीं कुछ समय बाद काँटों की शिकायतें फिर से मिलने लगीं, अपितु अधिक मिलने लगीं स्वयं मैंने भी देखा संभल कर न चलें तो जरुर कांटा चुभ जाये ।
क्या हुआ ? उनसे पूछा जो चंदा लेने आते थे, उन्होंने बताया; कि चंदा कम पड़ने लगा बढ़ाना पड़ेगा, तभी व्यवस्था हो सकती है…। क्षेत्र के लोगों की सभा बुला ली गयी..., उनका विरोध हो गया...., नयी समिति वालों ने कहा; कि हम करेंगे अच्छी व्यवस्था, "वो सौ बढ़ाने को कह रहे हैं हम पचास रुपये बढाकर ही ये काम करेंगे" । सबको बात सही लगी । दरअसल कोई नहीं चाहता था कि उसे या उसके बच्चों को कांटे चुभें । ........... ।
कुछ समय बाद नयी समिति ने भी वही नाटक कर दिया । इस बार पुरानी वाली समिति ने अपना दावा ठोक दिया; कि हम करेंगे सही व्यवस्था …… ।
इसी तरह चल रहा था, कि "हमारी कालोनी में एक नए निवासी आ गए कुछ समय बाद जब उन्हें इस अवस्था का ज्ञान हुआ तो उन्होंने एक सुझाव दिया; कि हम केवल रास्ते से कांटे क्यों साफ करवा रहे हैं। क्यों न जहाँ से वो कांटे रास्ते पर आ रहे हैं वही से उन्हें साफ करवाएं"।
सभी को सांप सा सूंघ गया, "ये बात आज तक क्यों नहीं सूझी" जब समझ आया तो सभी ने बात का समर्थन किया। पर; जो कांटे साफ करने के लिए चंदा करते थे, वह एकदम से चुप हो गए, क्या कहें विरोध करें तो जानता के बुरे, न करें तो अपनी कमाई छूटे।
न निगले बन रहा न उगले बने ऐसी स्थिति हो गयी है ।
अब आगे क्या होगा पता नहीं ?
पर हम तो उन मूल बदलाव लाने वाले के साथ में हो गए हैं । जो समस्या को जड़ से समाप्त करना चाहते हैं ।
हमारे देश का भी यही हाल है। कल जो पाकिस्तान ने किया सब सही है और मन मोहन मुरली बजा रहा है।पता नहीं कब इसका गला खुलेगा ....
जय बाबा बनारस।।।।।
रोमकन्या के राज में क्या उम्मीद करें???
ReplyDeleteकभी कभी चर्चा बन्द करनी पड़ती है।
ReplyDeleteबात तो यही है जद से समस्या खत्म कर देंगे तो आगे नेतागिरी कैसे चलेगी.
ReplyDeleteलोहड़ी, मकर संक्रांति और माघ बिहू की शुभकामनायें.