Friday, March 1, 2013

अँग्रेजी हमारी मजबूरी, हिन्दी हमारा स्वाभिमान !

न्यूटन कक्षा 9 में फ़ेल हो गया था, आइंस्टीन कक्षा 10 के आगे पढे ही नही और E=hv बताने वाला मैक्सप्लांक कभी स्कूल गया ही नहीं।
ऐसी ही शेक्सपियर, तुलसीदास, महर्षि वेदव्यास आदि के पास कोई डिग्री नहीं थी, इन्होनें सिर्फ अपनी मातृभाषा में काम किया। जब हम हमारे बच्चों को अँग्रेजी माध्यम से हटकर अपनी मातृभाषा में पढ़ाना शुरू करेंगे तो इस अंग्रेज़ियत से हमारा रिश्ता टूटेगा और हम भी नोबल पुरस्कार विजेता पैदा करने लगेंगे।
क्या आप जानते हैं जापान ने इतनी जल्दी इतनी तरक्की कैसे कर ली ? क्यूंकी जापान के लोगों में अपनी मातृभाषा से जितना प्यार है उतना ही अपने देश से प्यार है। जापान के बच्चों में बचपन से कूट- कूट कर राष्ट्रीयता की भावना भरी जाती है।

अँग्रेजी हमारी मजबूरी, हिन्दी हमारा स्वाभिमान !

जय बाबा बनारस ....

4 comments:

  1. बहुत सच का है...हमें अपनी मातृभाषा पर गर्व होना चाहिए...

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  2. हिन्दी हमारा स्वाभिमान है....

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  3. भाषा पर गर्व करना आवश्यक है. सुंदर आवाह्न.

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  4. अपनी भाषाओं को आधार बनाना होगा।

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