Friday, August 6, 2010

सूरज ठेकेदार सा - सबको बांटे काम..

नदिया सींचे खेत को - तोता कुतरे आम.
सूरज ठेकेदार सा - सबको बांटे काम..
निदा फाजली की ग़ज़ल का ये टुकड़ा कुछ जूठा लगता है जब ... में देखता हूँ की कौन अपना काम कर रहा. ये जरूर है की सूरज दादा सुबह सुबह आकर सबको जगाते हैं.......... जगाते ही नहीं बल्कि सबको अपना अपना कम भी दे देते हैं. पर आज लग रहा है की अपना काम कर के कोई भी राजी नहीं है. अगर कोई mcd ka councellor है तो वो विधयक के बारे में सोचता है. काश में विधयाक होता.. दिल्ली सरकार में अपना हक होता ... मौज होती आज क्या है .... कर्पोरासन की कोई सुनता नहीं. अगर विधायक होता तो ........ काश मंत्री होता.. यहाँ क्या है.. मंत्री होता तो इस कोमन वेल्थ गेम में सात नहीं तो एक दो पुसते तो तर ही जाती. और अगर मंत्री जी है तो सोचते हैं की काश मैडम के खेमे में होता तो ठीक था. यहाँ संघटन के खेमे से आया हूँ ... बेकार का मंत्रालय दे रखा है. सबके अपने अपने तर्क है. बस पैसा चाहिए. और इस खेल में जो कमा गया कमा गया. ठीक है बाद में इन्कुँरी होगी ... पर तब की तब देखेंगे.
पर अभी तो माल आना चाहिए था न. आज जब डेड सौ रुपे का टिसू पेपर चार हज़ार में बिक रहा और हम उद्घाटन समारोह में बैठ कर दिल्ली सरकार की उपलब्धियों की ताली बजा रहे है. आग लगे ऐसे मंत्री पद को जो इतने सालों बाद होने वाले खेल में अपना खेल सेट नहीं कर पाए. इससे तो अच्छा था कलमाड़ी साहेब के दफ्तर में चपरासी होते. कुछ बक्त तो होता. आज कलमाड़ी साहिब को बन्दों की कमी है. बन्दे दूंद रहे - इन्कुँरी के लिए . शहीद होने के लिए . हो सकता है चपरासी को कह दिया जाता - भैया बहोत पानी पिला दिया .. जायो - स्वेच्छिक सेवा नविरिती लो और एक ठो कोम्पनी बनाओ ... और ये जो पप्कोर्ण बेचा जायेगा उसका टेंडर आपको दिया. ध्यान रहे ... मार्केट में तीस रुपे का आत है - तुम दो सो रूप का देना. पच्चास तुम्हारे और बाकि एक सो बीस - यहाँ जमा करवा देना.
साले कुछ तो कमा लेते. यहाँ लाल बत्ती वाली गाड़ी का क्या फायदा.
भाइयों सभी हाथ मॉल रहे है. .... MCD, NDMC, CSD का ठेकेदार इस समय दिल्ली सरकार के ठेकेदार के इर्ष्य की नज़र से देख रहा है. और MCD, NDMC का कलर्क दिल्ली सरकार के कलर्क को देख रहा है. काम एक सा है पर ... बंदरबांट बराबर नहीं हो रही. सभी कर्मो को कोस रहे हैं.

1 comment:

  1. अच्छा कटाक्ष है. चरित्र पतन की यह स्थिति है कि किसी आपदा के आने पर शासन से लेकर प्रशासन तक के भ्रष्ट कर्मचारी गिद्धों की तरह से राहत सामग्री की बन्दर बाँट में से अपने हिस्से में प्राप्त होने वाली रक़म के इंतजार करने लग जाते हैं.

    http://haqnama.blogspot.com/2010/08/terrorism-and-its-solution-sharif-khan.html

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