Friday, September 10, 2010
शुक्ला जी का आक्रोश
दुनिया के हर आदमी को , जानवर को, परिंदों को सबको आक्रोश का अधिकार है ,सबका आक्रोश का तरीका अलग अलग होता है .अब आप हमारा शुक्ला जी को ही ले ले उनका आक्रोश का तरीका ही कुछ और है जब उनको कोइए बात पसंद नहीं होती तो उनका उस के प्रति नज़रिया ही बदल जाता है उसकी तारीफ मैं कसीदा कुछ जायदा ही पढ़ना लगते है बचपन मैं अगर आप की कोइए बात पापा और माँ नहीं मानती है तो आप खाना छोड़ देता है बड़ा होना पर अगर श्रीमती जी कोइए बात नहीं मानती तो घर दिएर से आना शुरु कर देना है ,श्रीमती जी का आक्रोश का तरीका ही अलग है खाना मैं नमक य तो काम होगाय जायदा होगा आप की कोइए भी सामान करीना से नहीं होगा आप को जो काम पसंद नहीं होगा श्रीमती जी वोहो काम करंगी हमारे गाँधी जी भारतवासी को असहयौग का नारा जरुर देकर गए है की बेटा भारतवासी काम मत करना ,यही आज कल भारत के सभ्या नागरिक कर रहा है जैसा डाक्टर ----------------------------------------------------------------------------------
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अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को तीज, गणेश चतुर्थी और ईद की हार्दिक शुभकामनाएं!
फ़ुरसत से फ़ुरसत में … अमृता प्रीतम जी की आत्मकथा, “मनोज” पर, मनोज कुमार की प्रस्तुति पढिए!