आज दीपक बाबा जी पोस्ट पढ़ी आप भी पढ़े लिंक http://deepakmystical.blogspot.com
आज का बाज़ार वाद पर आप के अपने किस तरह से आप के उपर हावी ही
जमाना बदल गया है – प्यारे, तू भी बदल
जमाना बदल गया है – प्यारे, तू भी बदल.
सही में, जमाना कितना बदल गया है. आज बुद्धू-बक्से (टी वी को हम यही नाम दिया करते थे न) से होकर बाजार हम पर कितना हावी हो गया है – ये बात आज अपने 11 वर्षीय बेटे (और मोहल्ले में उसके मित्रगण) को देख कर लगती है. पापा आप पुराने हो?
गाँव के नाम पर – नाक सिकोड़ कर कहता है – नहीं पापा वहाँ नहीं जाना. क्यों ? पापा – वहाँ पोटी कि स्मेल आती है (भैंस के गोबर की) ये बालक वहाँ का दूध नहीं पीना चाहता. गन्दी भैंस से निकला है. घर में अगर गाँव से आयातित मक्खन आ जाये – तो इनको पसंद नहीं – इनको चाहिए अमूल बटर.
अब आप क्या कहेंगे.
पापा आप गाडी कब लोगो ?
बेटा, क्या जरूरत है, (मैं दोपहिया वाहन का इस्तेमाल करता हूँ)
नहीं पापा, कुआलिस लो?
बेटा – मारुती ८०० क्यों नहीं
नहीं पापा, that’s old one
Ok, मैं चुप हो जाता हूँ.
बेटा, इन छुट्टियों में हम मनाली घूमने जायेंगे ?
नहीं पापा – न्यूजीलैंड?
अरे .............. क्यों
नहीं पापा – न्यूजीलैंड? क्यों का जवाब उसके पास नहीं है – पर मैं ये मानता हूँ कि, उसके क्लास फैलो विश्व भ्रमण का चस्का लग गया है तो ये कैसे पीछे रहे.
बेटा, आज रोटी क्यों नहीं खाई ......... क्या पापा रोज-रोज रोटी. क्या मतलब. मुझे रोज रोज रोटी नहीं खानी. फिर क्या ? पिज्जा, ब्रेड-ऑमलेट और सैंडविच. रोटी तो ये इंडियन खाते हैं.
तो, तू इंडियन नहीं है ..............
.......... हुम्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म
अच्छा.
फलां – साबुन लाना, फलां पावडर लाना (दूध में डालने हेतु), फलां टूथ पेस्ट लाना. यानी ये पीड़ी हर जगह से ब्रांडिड है. या ये माना जाये – कि ये आज़ाद देश और आज़ाद ख्याल के गुलाम व्यक्तित्व बन चुके हैं. जैसे पहनने के, ओढने के, पीने के, खाने के – हर चीज़ के ब्रांड हैं. और उस ब्रांड के बिना ये जी नहीं सकते.
और ये लोग आज खामख्वाह ही बड़े-बड़े माल में घूमना चाहते हैं – और वहीँ से खरीदारी करना चाहते हैं. बनिया कि दूकान अब इनको ओल्ड फैशन लगती है.
हम जब ४-५ कक्षा में थे – हमारे आदर्श – भगत सिंह, आज़ाद, नेताजी बोस जैसी शक्सियत होती थी. पर आज इनकी – शाहरुख खान, जान अब्राहिम और जान सीना (शायद wwf) वाले हैं.
इस समय चाणक्य जैसे नीतिकार अगर होते तो उन्हें दुबारा सोचना पड़ता....... आज ८ साल के बालक को आप प्रताड़ित नहीं कर सकते. ये मेरा मानना है.
आज ये पीडी इन्टरनेट में मुझ से ज्यादा जानती है. उनको कई वेबसाइट पता हैं – जो स्कूल में बच्चे आपस में शेयर करते हैं. विंडो सेवेन आपने अपने कम्पुटर में डाली हो या नहीं – उनको चाहिय. और सबसे मजेदार बात ये है कि उनको विन्डोज़ सेवेन के कई नए फंक्शन मालूम है – जो आपको मालूम नहीं. और उनके पास किसी वेबसाइट का एड्रेस भी है जहाँ से ये डाउनलोड हो सकती है.
जैसे कर्ण को कुंडल और कवच जन्म से मिले थे – उसी प्रकार मोबाइल फोन इनको मिला है. कौन सा नया मॉडल, किस कंपनी का, कौन-कौन से नए आप्शन इसमें है. ये आपको किसी प्रशिक्षित सेल्समैन कि तरह समझा देंगे................... और बता भी देंगे – पापा अमुक ही लेना.
याद आता है जब स्कूल में फीस के नाम पर 40 पैसे चंदा दिया जाता था (हाँ तब हम फीस को चंदा ही कहते थे) और १० तारिख निकल जाने के बाद भी जब नहीं दे पाते थे – तो मा’साब वापिस घर भेज देते थे – जाओ चंदा लेकर आओ. इसी वज़ह से जब क्लास में खड़ा करते थे – ऐसा लगता था – मानो जमीन फट जाए – और हम बीच में समां जाए. बहुत ही शर्म आती थी. आज बच्चे से पूछो – बेटा इस बार आपका स्कूल फीस का चेक जमा नहीं करवा पाए – मेम ने कुछ कहा तो नहीं ? तो वो हँसता है ?
बताओ भाई ?
कुछ नहीं ?
कुछ तो बोला होगा
कुछ नहीं ? मुहं कि एक विशेष सी आकृति बना कर वो कहता हैं.
वो मैम बला बला बला बला बला बला बला बला बला कर रही थी.........
अब बताइये ............... कैसे निभाएंगे आप इस पीड़ी के साथ?
हैं न यक्ष प्रशन .
बहरहाल, जय राम जी की.
और मेरा मानना ये है कि ये सब बाजारवाद का ही परिणाम है।
अगर यही हाल रहा तो कल को आपकी बच्चे भी ब्रांडेड होंगे ???????????????
हेअडिंग देख कर मैं ब्लॉग आपके ब्लॉग पर आया - तो पता चला कि साहेब ने मज़मूम तो हमारा वाला ही छाप रखा है. चलो इसका मतलब ये हुवा कि लेख आपको पसंद आया.
ReplyDeleteये ब्रांडेड बच्चे वाली बात ठीक कह रहे हैं आप. हम लोगो ब्रांड के गुलाम होते जा रहे हैं.
ये ब्रांडेड बच्चे वाली बात ठीक कह रहे हैं आप. हम लोगो ब्रांड के गुलाम होते जा रहे हैं.
ReplyDeletehum log is gulami ki mansikata sai kab niklenge
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteफ़ुरसत में ….बड़ा छछलोल बाड़ऽ नऽ, आचार्य परशुराम राय, द्वारा “मनोज” पर, पढिए!