मुस्कराना एक आर्ट है हर आदमी मुस्करा नहीं सकता है
मुस्कराना भी एक कला है
सबका मुस्कराने का एक अलग अंदाज होता है
कोई किसी के मुस्कान पर ही अपने पूरी जिन्दाजी दाव पर लगा देता है
पुराने लोग कहते है मुस्कराने के वक़्त बत्तस्सी नज़र नहीं आणि चाहिए
हँसना और मुस्कराने में बहुत फर्क है
आप गला फाड़ कर हँस सकते है
लेकिन मुस्करा --------सकते है
कोइए फत्तू पर हँसता है ,
कोई संता पर हसता है
कोइए ढक्कन और मक्खन पर हँसता है
कोई हम पर भी हँसता है ------
जिंदगी में मुस्कराना जरुरी है
मुस्कराना ही जिंदगी है
हमने भी अब डाल ली है आदत मुस्कराने की
ReplyDeletebahut khoob.ye aadat hai muskarane ki.
ReplyDeleteमुस्कराना ही जिंदगी है
ReplyDeleteमुस्करा रहा हूँ
sahi keh rahe ho verma ji .
ReplyDeleteआज के जमाने में मुस्कुराने की नोबत कम ही आती है लेकिन आप कह रहे हैं तो चलिए मुस्कुरा ही देते हैं।
ReplyDeleteबेतरीन पोस्ट .
ReplyDeleteजबरदस्त पोस्ट, मिश्रा जी। इतने मुश्किल समय में जो पल मुस्कुराने के मिल जायें, बटोर लेने चाहियें।
ReplyDeleteआज के जमाने में मुस्कुराने की नोबत कम ही आती है लेकिन आप कह रहे हैं तो चलिए मुस्कुरा ही देते हैं।
ReplyDeleteaap muskare hamari post safal.
इतने मुश्किल समय में जो पल मुस्कुराने के मिल जायें, बटोर लेने चाहियें।
ReplyDeletemuskarahat ka koie mol nahi hai.
batore lo jitani batore sakate ho-----
वाह मिश्र जी,........
ReplyDeleteआपकी इसी अदा पर मुद्दत के बाद देखो आज हम भी मुस्कुरा उठे......
कोई खुद पर ही हँसता है और सबसे अच्छी वही हंसी होती है |
ReplyDeleteaccha likh rahe hain mishra ji !
ReplyDeleteहम तो मुस्कुरा रहे हैं…………यही ज़िन्दगी है।
ReplyDeleteआपकी रचना यकीनन चेहरे पर मुस्कान ले आई ... बहुत सुंदर रचना .. ...
ReplyDeleteहम तो पोस्ट पढ़ कर ही मुस्करा दिए
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