सभी ब्लोगर्स भाइयों को जय राम जी की
आज अपने मित्र को "लफ़त्तू की संगत" मैं ले गए. बहुत ही आनंद आया. लगभग २-३ घंटे तक हम दोनों पांडेजी के लाफ्तू के साथ रामनगर में ऐश करते रहे.
बच्चपन की कई बातें हमें भी बार बार याद आती रही. और उन्हीं का जिक्र कर रहा हूँ.
एक मास्टर जी जो हमे प्राथमिक कक्षा में पड़ते थे. एक बार एक बच्चा कक्षा के बाहर झांक रहा था. मास्टरजी ने उसे बुला कर पहेले तो २ झापड़ रसीद किया फिर पूछा "बाहर तेरी माँ नाच रही थी" बेचारा बच्चा क्या जवाब देता. हाँ मगर लफ्तू टाइप कई लड़के उसको कई दिन तक छेड़ते रहे - बाहर तेरी माँ नाच रही है.
जब में नवी कक्षा में था, तो गणित और बिज्ञान में हमारा हाथ शुरू से ही तंग था (और आज भी है). जीवविज्ञानं के सरजी (अब मा'साब - सरजी बन गए थे) ने न जाने मुझ में क्या देखा - डेस्क से खड़ा कर दिया और केमिस्ट्री के कुछ HO2 जैसे फार्मूले पूछने लगे, (जहीर ही है, की जब उन्होंने सोच समझ कर मुझ से पूछा था तो उनको इतना तो मालूम ही था की मुझे नहीं आते) और मैंने भी सरजी की अपेक्षा पर खरे उतारते हुए अपनी गर्दन हिला दी. बस फिर क्या था रावल सरजी नै आव देखा न तव, पिल पड़े मुझ पर. पता नहीं कितने थप्पड़ मारे. वो भी तेज़ तेज़ मुहं लाल हो गया. आज भी बेटे की केमिस्ट्री की किताब देखता हूँ तो एक हाथ स्वत की मुंह पर चला जाता है. - बात थप्पड़ तक ही सिमित नहीं थी "हरामजादे पड़ते नहीं - कल हमारा मेट्रिक का रिजल्ट डाउन करवायेगे. आब कहेगा - कान का पर्दा फट गया, - कल बाप को बुला कर प्रिंसिपल के पास जा कर मेरी शिकायत लगायेगे." पिरोड़ ख़त्म होने के बाद में तो सर झुका कर बैठा रहा पर - बाकि क्लास नें मेरी और सरजी की एक्टिंग की क्या बताएं.
अब सोचते हैं की सरजी नें खामखा ही मारा, अगर आज केमिस्ट्री के फोर्मुल नहीं आते तो क्या रोटी नहीं खा रहे - जिंदगी में किसी मुकाम पर पीछे हैं क्या. हाँ गणित आता होता तो अच्छा था . आज प्रेस में हिसाब किताब में कई बार गड़बड़ हो जाती है.
ऐसी बात नहीं है की मास्टरों ने ही हमारी बजाई. जब हमें मोका लगता हम भी बाज़ नहीं आते थे. आठवी क्लास में एक मा'साब नें एक प्रसिद्ध दूकान से पकोड़े मंगवाए, हम पकोड़े तो ले लिए पर बाल सुलभ हरकतों की वजह से पकोड़े का लिफाफा हिलाते हुवे स्कूल ला रहे थे की लिफाफा हाथ से छूट कर रोड पर गिर गया और पकोड़े बिखर गए. अब बिखर गए तो कोई बात नहीं - पर बिखरे वहां थे जहाँ पर गोबर (सुखा) पड़ा था. हमने बड़े जतन से पकोड़े एकठे किये पर उनमें गोबर का बुरादा लग गया था. समझ नहीं आया क्या करें. फिर भी दिमाग(?) था .. पकोड़े दूकानदार को वापिस दे कर बोले की मा'साब नें बोला है दुबारा गर्म कर दो. दूकानदार नें दुबारा गर्म के दे दिए और हमने कांपते हाथों से मा'साब को दिए. शुक्र है पकोड़े ज्यादा क्रिस्पी बन गए थे........
स्कूल के दिन के याद आ गये
ReplyDeleteबहुत बढिया पोस्ट
हाहा हा हा
ReplyDeleteज़ालिम कौन Father Manu या आज के So called intellectuals ?
ReplyDeleteएक अनुपम रचना जिसके सामने हरेक विरोधी पस्त है और सारे श्रद्धालु मस्त हैं ।
देखें हिंदी कलम का एक अद्भुत चमत्कार
ahsaskiparten.blogspot.com
पर आज ही , अभी ,तुरंत ।
महर्षि मनु की महानता और पवित्रता को सिद्ध करने वाला कोई तथ्य अगर आपके पास है तो कृप्या उसे कमेँट बॉक्स में add करना न भूलें ।
जगत के सभी सदाचारियों की जय !
धर्म की जय !!
bahut sundr likha hai
ReplyDeletebdhai
खूब क्रिस्पी पकोडे खिलाये :):)
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