एक गाँव में एक विधवा रहती थी, जिसे सत्संग और सेवा में रुचि थी । गाँव में कोई साधु-महात्मा आते तो वह उनके दर्शन के लिए जाती, उपदेश सुनती और उसे भिक्षा भी देती, यथाशक्ति सेवा भी करती ।
उसके जीवन में सांसारिक सुख न था । पूर्वसंस्कार बडे प्रबल होने पर उसका मन संतसमागम में गहरे सुख की अनुभूति करता । संतपुरुष से ऐसा प्रेम किसी असाधारण आत्मा में ही होता है । इस दृष्टि से देखा जाय तो उस स्त्री की आत्मा असाधारण थी । उस समय उच्चे कोटि की साधनावाले संतपुरुष तीर्थयात्रा पर निकलते और बीच में आनेवाले गाँव में इच्छानुसार कम या अधिक समय रहते । इनमें कुछ संतपुरुष शक्तिसंपन्न भी होते थे ।
इत्तफाक से एक बार ऐसे ही परम प्रतापी संतपुरुष घूमते-धूमते इस गाँव में आ पहुँचे । गाँव के भाविक लोग उनके दर्शन से बडे प्रसन्न हुए । वह विधवा भी उसके पास पहूँच गई ।
उनके दर्शन व उपदेश से ऐसा लगा कि महापुरुष उच्च अवस्था प्राप्त है । ऐसे पुरुष का समागम जिस किसको और जब तब नहीं मिलता । अगर उनकी सेवा का लाभ मिले तो जीवन सफल हो जाये । वह स्त्री बडे मन से उनकी सेवा करने लगी । महात्मा पुरुष को भी उस गाँव का शांत वातावरण भा गया । इसलिए वे वहाँ लंबे समय रहे ।
‘जहाँ गाँव वहाँ सडाव’ इस न्याय से बायल गाँव में भी कुछ अशुभ-बुरे तत्व विद्यमान थे । उन्होंने उस विधवा की निंदा करना शुरु किया । महात्मा पुरुष एवं उस स्त्री का संबंध बुरा है ऐसा खुलमखुल्ला बोलने लगे ।
उस स्त्री को यह सुनकर बडा दुःख हुआ । वह जानती थी कि संतपुरुष कितने पवित्र थे और वह भी पवित्रता से उनकी सेवा करती थी । इसलिए लोगों की निंदा सुनकर उसे अत्यधिक दुःख हुआ लेकिन क्या करे ?
कुछ आदमियों ने उस स्त्री से कहा, ‘कितने भी बडे महापुरुष हो, संगदोष तो उन्हें लगता ही है । जेमिनी, पराशर और विश्वामित्र जैसे पुरुष भी स्त्री की मोहिनी से नहीं बचे तो आजकल के सामान्य संतो की क्या बिसात ? फिर भी अगर तुम्हें संगदोष न लगा हो, तुम पवित्र हो तो उबलते तेल की कडाही में हाथ डालो और पवित्रता की परख होने दो अन्यथा गाँव में फजीहत होगी ।
उस स्त्रीने लोगों को बहुत समझाया पर न माने तब वह पवित्रता की परख देने तैयार हो गई । वैसे तो वह अनपढ थी पर ईश्वर की कृपा एवं सत्य की विजय में उसे बडी श्रद्धा थी । एक निश्चित दिन गाँव वाले इकट्ठे हुए । उबलते तेल की कडाही के पास वह स्त्री आई ।
उसने परमात्मा से प्रार्थना की ‘हे प्रभु ! मेरा व संतपुरुष का सम्बन्ध कितना पवित्र है, यह आप ही जानते है । आप सर्वज्ञ है, अंतर्यामी है, आज मेरी रक्षा करना । तुम्हारे बिन मेरा कौन सहारा ?’
ऐसा बोलकर उसने उबलती तेल की कडाही में हाथ डाल दिया । गाँव के लोग यह दृश्य उत्सुकता, आश्चर्य एवं कुतूहल से देखते रहे ।
उबलते तेल का उस नारी पर कोई असर न हुआ । जाने किसी ठंडे पानी में हाथ डाले हो ऐसा लगा । सबकुछ जानने वाले परम कृपालु परमात्मा ने उसकी रक्षा की । उनके लिए कोई काम मुश्किल नहीं है । शरणागत भक्त के लिए वे कुछ भी कर सकते हैं ।
जिसे शंका की नजरों से देखते थे, जिसकी निंदा करते थे, वह नारी विशुद्ध-पवित्र साबित हुई । लोगों के दिल में उसके प्रति सम्मान की भावना जागी । उन्होंने उसकी जयजयकार की । संकीर्ण मनोवृत्तिवाले, निंदा करनेवाले खामोश हो गये ।
गाँव के अग्रगण्य लोगों ने सबकी ओर से उस पवित्र नारी की क्षमा माँगी । उसके मना करने पर भी उस नारी को सो बीघा जमीन दी । थोडे समय के बाद वे संतपुरुष गाँव से चले गये और समयांतर में उस नारी ने भी देहत्याग किया ।आप के विचार आमंत्रित है -----
very nice.
ReplyDeleteजो आदमी सच्चा है और उसका अपने इष्ट पर पूर्ण विश्वास है
ReplyDeleteउसका कोई कुछ नही बिगाड सकता। ये सिर्फ मेरी राय नही है म
मै इसका प्रत्यक्षदर्शी हूं
सत्यता को बयां करती हुई सुंदर पोस्ट. मगर कोई कितना भी सच्चा हो दुनिया वालों के उछाले कीचड़ उछालने से बाज नहीं आते... मगर फिर भी अपने सत्य पे अडिग रहना चाहिए...
ReplyDeleteकुत्सित मन वाले , दूसरों को गिरा हुआ ही समझते हैं। ऐसे लोगों को प्रमाण देने की भी आवश्यकता नहीं है। अपने चरित्र की दृढ़ता व्यक्ति स्वयं जानता है और इश्वर भी । फिर मामूली लोगों की बातों से खुद को क्यूँ व्यथित करना और क्यूँ प्रमाण देना ?
ReplyDelete.
भारत देश है प्यारे..... कदम कदम पर सीता को अग्निपरीक्षा देनी पड़ती है.
ReplyDeleteकितना भी सच्चा हो दुनिया वालों के उछाले कीचड़ उछालने से बाज नहीं आते... मगर फिर भी अपने सत्य पे अडिग रहना चाहिए...
ReplyDeletesatya vachan hai upendra ji aap ke.
कुत्सित मन वाले , दूसरों को गिरा हुआ ही समझते हैं।
ReplyDeletesatya vachan zeal ji.
बढ़िया प्रस्तुति
ReplyDelete... शुभकामनायें.