Monday, December 27, 2010

दगडू का शाकाहार ----------

बात कुछ पुरानी है। कोल्‍हापुर के पास के जंगलों में रहने वाले दगढू नाम के एक धनगर को रोज़ाना मांस-मच्‍छी खाने की आदत थी। पुणे में आकर बसा तो उसे सदाशि‍व पेठ (ब्राह्मणवादी शहर पुणे का एक घोर ब्राह्मणवादी इलाका) में घर मि‍ला। सेटल होने के बाद दगडू रोज़ अपने घर में मांस पकाता था। उसकी गन्‍ध सारी बि‍ल्‍डिंग पर छा जाती थी। कुछ दि‍नों में सारे पड़ोसी आपस में इसकी चर्चा करने लगे। मगर उस हट्टे-कट्टे दगडू से पंगा कौन ले? अन्‍तत: गोगटे काका ने इसका जि‍म्‍मा लि‍या।
अगले दि‍न सुबह काका ने दगडू से मुलाकात की। काफी देर यहां-वहां की बातें करने के बाद मुद्दे की बात छेड़ी। उनका आशय जान कर दगडू बोला, “पर काका मैं तो बचपन से यही सब खाता आया हूं। मैं जंगल में पला-बढ़ा हूँ, ये आदत कैसे छूटेगी?”
काका बोले, “अरे बेटा, तू पहले अलग सोहबत में था, अब तू असली वि‍द्वानों की संगत में है! क्‍या तुझे इस बात का अहसास है कि‍ तू कि‍तना भाग्‍यवान है?”
बात पर बात बढ़ती गई मगर कोई समाधान नहीं हो सका। अन्‍तत: काका बोले, ”इसका एक ही उपाय है... तुझे शाकाहारी बनना ही होगा।”
वह बोला, ”यह कैसे सम्‍भव है?”
काका ने हाथ में थोड़ा पानी लि‍या, शान्‍ति‍ से ऑंखें बन्‍द कीं, एक लम्‍बी सांस लेकर उन्‍होंने प्रणाम कि‍या और एक बार फि‍र लोटे में से अपने हाथ पर थोड़ा पानी लि‍या।
दगडू भौंचक होकर उन्‍हें देख रहा था।
अपने हाथ का पानी दगडू पर छींट कर वे बोले, ”तूने एक धनगर के रूप में जन्‍म लि‍या था, धनगर के रूप में पला-बढ़ा, कि‍न्‍तु अब तू एक ब्राह्मण है।”
अत्‍यन्‍त भावुक होकर दगडू ने उनके चरण पकड़ लि‍ए। काका ने भी तहेदि‍ल से उसे आर्शीवाद दि‍या और सोसायटी कष्‍टमुक्‍त हो गई यह मान कर गोगटे काका ने राहत की सांस ली।
शाम को जोशीजी ने गोगटे काका को बताया कि‍ उन्‍होने दुकान से दगडू को मुर्गी का मांस लाते हुए देखा था। तमतमाए हुए काका जोशीजी को साथ लेकर दगडू के घर पहुँचे तो देखते हैं कि‍ दगडू उनकी ओर पीठ कि‍ए बैठा है और उसके सामने एक साफ-सुथरी थाली में धुली हुई बोटि‍यां रखी हैं।
काका कुछ बोलते... तभी दगडू ने अपने हाथ में पानी लि‍या और थाली पर छि‍डक कर वह बोला, ”तूने मुर्गी के रूप में जन्‍म लि‍या, और मुर्गी के रूप में ही पली-बढ़ी, मगर अब तू चवला फली है!”
***
यह कहानी मुझे एक मराठी भाषी दोस्‍त ने भेजी थी। उम्‍मीद करता हूं कि‍ जो साथी जन्‍म से ब्राह्मण हैं, या जो शाकाहारी हैं, वे बुरा नहीं मानेंगे।

9 comments:

  1. गजब दगड़ू की गज़ब कहानी।

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  2. दगडू नाम पहली बार सुना, पसंद आया।

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  3. ई दगरू तो बहुत ही तेज निकला.......... सुंदर प्रस्तुति.

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  4. तूने मुर्गी के रूप में जन्‍म लि‍या, और मुर्गी के रूप में ही पली-बढ़ी, मगर अब तू चवला फली है!


    भई वाह........... एक नयी कहानी पढ़ने को मिली - एक नए मनोवज्ञान के साथ....... बढिया है.

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  5. अच्छी लगी ! तार्किक भी ! वैसे मैं शाकाहारी हूं !

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  6. मस्तेमस्त।
    अब से अपन भी यही करेंगे, थोड़ा सा चेंज करके। कटहल या बैंगन को भूनकर\पकाकर उसे पानी से छींटा देकर चिकन बोलकर खायेंगे:)

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  7. वाकई मस्त जवाब था दगडू का ...
    नए साल की शुभकामनायें कौशल भाई !

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