मजबूरी की पहली सीढ़ी ही भ्रष्टाचार की जननी है .
आप लोग कहेगे की किया लिख दिया ........पागल हो गया है क्या........यह एक कटु सत्य है ....
जय से हम लोगो का रोज कही न कही पला पड़ता है -------आप कहे गे की कहा....
एक उधाहरण है .....
आप घर से निकल कर कही जा रहे है आप ने रिक्शा करना है बच्चे आप के साथ है
या कुछ भरी सामान आप के पास है आप ने रिक्शा वाला को बुलाया यहाँ चलाना है ..
वो कहगा ठीक है आप ने पूछा क्या लेना है ....जो वाजिब होगा कम से कम उस से बहुत जयादा एक रिक्शा वाला आप से पैसे की डिमांड उसकी होगी ....और यही से शुरु होती है .....मजबूरी की पहली सीढ़ी ही भ्रष्टाचार की जननी है ....
आप उस समय मजबूर होगे आप को उसकी नाजायज मांग -----होगी यह पहला कदम होती है
यही वाक्या आप को रेलवे स्टेशन पर देखना पड़ता है .......एहा से यह सब शुरु होता है ...और अंत मैं कहा ख़तम होता है यह हम सब जानते है .....अब मानसिकता ही आइसे हो तब एक अन्ना ..किया कर सकता है ..........इसका सिर्फ एक हल है .......
जय बाबा बनारस.....
इंसान के व्यवहार की छोटी-छोटी बातें ही उसके चरित्र का आईना होती है।
ReplyDeleteमजबूरी को संसाधनों से भरना होगा।
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ReplyDeleteसही प्रशन उठाये है की एक अन्ना क्या कर सकता है ?
ReplyDeleteपर दुष्यंत को भूलना नहीं चाहिए....
एक दरिया है यहां पर दूर तक फैला हुआ
आज अपने बाज़ुओं को देख पतवारें न देख।
शुरुवात खुद से करनी होगी...
Let's see !
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