या तो मोनू जाग जा या या दुनिया से भाग जा......................याद कर वो दिन मोनू....याद कर जब
१४-१५ अगस्त १९४७ की आधी रात को जब दुनिया सो रही थी तो हमारे मुल्क के मुहाफ़िज़ जाग कर मुल्क की एक नयी तत्बीर लिख रहे थे... और हम लोग उस समय कोई माँ की गोद में और कोई बाप की उंगली थामे लाहोर का बाघा बोर्डर पार के इस नए इलाके में भूखे प्यासे .... १ जून के भोजन और रात बिताने के लिए आशियाना ढूंढ रहे थे.... जनाब , भरे पूरे खानदानी लोग मात्र ३ तार के जनेऊ की रक्षा हेतु वहां से चल पड़े थे... की जब हालात ठीक होंगे तो वापिस आ जायेंगे.... खाली हाथ चले ..
जनाब, मेरे ख्याल से आप भी उनमे से एक रहे होंगे.... जो चकवाल जिले से अपने खानदान के साथ चले होंगे..
आपको इस लिए याद दिलाया जा रहा है ... कि आप हम में से एक है .... और हमारी मुश्क्लातों को समझते होंगे... जनाब इधर कई जगह भटकने के बाद हमारे लोगों को मुस्लिम खानदानो द्वारा छोड़ी गयी जमीन पर कब्ज़ा दिया गया... ताकि हमारी अपनी छोड़ी गयी जमीन के बदले कुछ भारपाई हो सके.
जनाब, मेरे ख्याल से आप भी उनमे से एक रहे होंगे.... जो चकवाल जिले से अपने खानदान के साथ चले होंगे..
आपको इस लिए याद दिलाया जा रहा है ... कि आप हम में से एक है .... और हमारी मुश्क्लातों को समझते होंगे... जनाब इधर कई जगह भटकने के बाद हमारे लोगों को मुस्लिम खानदानो द्वारा छोड़ी गयी जमीन पर कब्ज़ा दिया गया... ताकि हमारी अपनी छोड़ी गयी जमीन के बदले कुछ भारपाई हो सके.
या तो मोनू जाग जा या या दुनिया से भाग जा.........................
जय बाबा बनारस......
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