Thursday, August 18, 2011

एक गाँव को आप भी दुरस्‍त कर दें। बस बैठे-बैठे खीसें निपोरना ही आता है.....

एक गाँव को आप भी दुरस्‍त कर दें। बस बैठे-बैठे खीसें निपोरना ही आता है 

आज का आम आदमी अपने आप को तो दुरस्त कर नहीं पाता है  आप एक गाँव को दुरस्त करने की बात करते है

मौसम के बदलते ही आम आदमी डाक्टर के पास दवाई लेने जाता तब कही जाकर उसकी तबियात दुरुस्त होती  है
तब जाकर आदमी की तबियात दुरुस्त होती है लोग अपने आप को दुरुस्त कर नहीं पाते अपने परिवार को दुरुस्त नहीं
कर पाते और कुछ लोग कुछ करना .............है उनको आइसे कम्मेंट देते है कि आदमी कि तबित्यात  खुस हूँ जाती है
 एक आन्ना जो कर रहे है हम उसके साथ है


जय बाबा बनारस.....

2 comments:

  1. सबके अपने अपने आसमान हों, अपनी अपनी जमीं हो।

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