Tuesday, February 21, 2012

संबंधों को पल्लवित करने के लिये समय देना पड़ता है,

१.संबंधों को पल्लवित करने के लिये समय देना पड़ता है, ...जो की लोगो के पास नहीं है..
२.पाठक ढूढ़ने का श्रम लेखक को करना होता है ...आज कल परिश्रम कोइए नहीं करना चाहता है..
३. अच्छे लेखक को ढूढ़ने का श्रम पाठक को भी करना पड़ता है।...अब पाठक के पास पढ़ने का टाइम है नहीं और आप कहते है की...
४. रेत से पिरामिड नहीं बनते, उनके लिये बड़े पत्थरों की आवश्यकता होती है।...सत्य वचन ...
५.हर निर्णय का आधार होता है,...सब का कुछ न कुछ आधार होता है ..आज कल सर्कार भी आधार कार्ड बनवा रही है ....
आभार प्रवीण पाण्डेय जी का जो की इतना कुछ लिख गए अपनी समझ मैं बस यही सब आया जो समझ आया वह आप सब के सामने है...जाने अनजाने मैं कुछ गलत हो गया हो तो अग्रिम माफ़ी नामा साथ है ....
जय बाबा बनारस....

4 comments:

  1. :) लेखक और पाठक का श्रम बच जाता यदि सम्पादक/आलोचक भी थोडा श्रम कर लेते।

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  2. हमको तो आपकी टिप्पणी पढ़कर भी आनन्द आया...अपनी अपनी प्रकृति है...

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  3. 1. जिससे संबंध बढाने हों उसका समय मैं छीन लेता हूं।
    2. मैं लेखक नहीं तो इस बारे में कुछ नहीं कहूंगा।
    3. अपने पास टाईम है और ढूंढ-ढूंढ कर पढता हूं। (सबूत के लिये की है ये टिप्पणी):)
    4. पत्थरों को जोडकर रखने में रेत के महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता।
    5. सरकार ने आधार कार्ड वाली योजना अधर में लटक गई है।
    श्री प्रवीण जी की पोस्ट पढने और समझने में बहुत श्रम चाहिये होता है, फिर भी अपन उनके पंखे (फैन) हैं। उनकी पोस्ट समझने की कोशिश खूब करता हूं, लेकिन पूरी पोस्ट के 1-2 प्रतिशत से ज्यादा को वहन करना मेरे दिमाग की क्षमता नहीं है।

    प्रणाम स्वीकार करें

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  4. जय बाबा बनारस...खांटी पुरबिया अंदाज़ पढ़ कर मज़ा आ गया...

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