Tuesday, March 20, 2012

एक मगरूर...एक मजबूर...

जनता को की दे दो यह सब जनता का है ...बजट आ गया ..तभी एक चर्चित लाइन याद आ गयी

वक़्त मेरी जिन्दगी मैं दो ही गुजरे है कठिन एक तेरे आने से पहले एक तेरे जाने के बाद

जब तक बजट नहीं आया था बजट का इन्तिज़ार था और जब आ गया तो बजट को कैसे ......

१.एक मगरूर ...एक मगरूर शासक पार्टी ..जो की अपना ही फ़ायदा देखती है

२.एक मजबूर...एक मजबूर परधान मंत्री..पता नहीं कौन सी मजबूरी है की कुर्सी चिपक गयी है

३.एक मजबूत ...एक मजबूत जनता जनार्दन ....सरकार कुछ करे कुछ नहीं कहना है ...a

सरकार कुछ करे कुछ नहीं कहना सरकारी लोग अपना बजट बनाते है जनता का नहीं ..

अगर जनता के हिसाब से बजट बन गया तो फिर वह सरकार से पता नहीं क्या क्या.....

जय बाबा बनारस...

1 comment:

  1. वाह, एकदम सही समुच्चय बनाये हैं।

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