Monday, May 20, 2013

ब्राह्मणों का अनादर

इस पोस्ट का आशय सिर्फ कुछ अतिवादियों को आइना दिखाना है न की जातिवाद को बढ़ावा देना .. गीता के चौथे अध्याय में कर्म से ब्राम्हण होने को कहा गया है देखते हैं कुछ कर्मयोगी ब्राम्हणों की गाथा ...

आजकल ब्राह्मणों का अनादर करना हमारे हिन्दू धर्म 
में फैसन बन गया है । जबकि भारत के क्रान्तिकारियो मे 90% क्रान्तिकारी ब्राह्मण थे जरा देखो कुछ मशहूर ब्राह्मण क्रान्तिकारियो के
नाम ब्राह्मण स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी
(१) चंद्रशेखर आजाद
(२) सुखदेव
(३) विनायक दामोदर सावरकर( वीर सावरकर )
(४) बाल गंगाधर तिलक
(५) लाल बहाद्दुर शास्त्री
(६) रानी लक्षमी बाई

 (७) डा. राजेन्द्र प्रसाद
(८) पण्डित रामप्रसाद बिस्मिल
(९) मंगल पान्डेय
(१०) लाला लाजपत राय
(११) देशबन्धु डा. राजीव दीक्षित
(१२) नेताजी सुभाष चन्द्र बोस

 (१३) शिवराम राजगुरु
(१४) विनोबा भावे
(१५) गोपाल कृष्ण गोखले
(१६) कर्नल लक्ष्मी सह्गल ( आजद हिंद फ़ौज
की पहली महिला )
(१७) पण्डित मदन मोहन मालवीय,

 (१८) डा. शंकर दयाल शर्मा
(१९) रवि शंकर व्यास
(२०) मोहनलाल पंड्या
(२१) महादेव गोविंद रानाडे
(२२) तात्या टोपे
(२३) खुदीराम बोस

 (२४) बाल गंगाधर तिलक
(२५) चक्रवर्ती राजगोपालाचारी
(२६) बिपिन चंद्र पाल
(२७) नर हरि पारीख
(२८) हरगोविन्द पंत
(२९) गोविन्द बल्लभ पंत

 (३०) बदरी दत्त पाण्डे
(३१) प्रेम बल्लभ पाण्डे
(३२) भोलादत पाण्डे
(३३) लक्ष्मीदत्त शास्त्री
(३४) मोरारजी देसाई
(३५) महावीर त्यागी

 (३६) बाबा राघव दास
(३७) स्वामी सहजानन्द सरस्वती हमारे इस पोस्ट का ध्येय जातिवाद
बढ़ाना नहीं बल्कि सिर्फ आईना दिखाना है ध्यान रहे।।।।


जय बाबा बनारस .....

4 comments:

  1. प्रात: स्मरणीय महान क्रांतिकारियों का नाम पढवाने के लिए पंडित जी को आभार.


    ऐसे महातेजस्वी, महाप्रतापी, महाविभूति, महायोगी, ब्राह्मणों में महाश्रेष्ठ जिन्होंने सृष्टिसृजन से लेकर इस कलियुग तक भारत माँ की सेवा यज्ञ अपने प्राणों की आहुति देने वाले महर्षि ब्राह्मणों को पदम-पदम नमन् !

    जय सिया राम

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  2. ब्राम्हण क्षत्रीय वैश्य और शूद्र ये वर्ण व्यवस्था उस समय के लिये तो प्रासँगिक थी ही, आज भी प्रासँगिक है, क्यों कि कृ्मश: ग्यान, शक्ति, धन और सेवा के सँस्कार, अथवा आदतें इन वर्णों में अर्थात ब्राम्हण क्षत्रीय वैश्य और शूद्र में पाये जाते थे। जहाँ ब्राम्हण "ग्यान" देता था और राजाओं का धर्म गुरू हुआ करता था, क्षत्रीय अपनी "शक्ति" से समाज और देश की रक्षा का बोझा उठाता था, वैश्य व्यापार के द्वारा राज्य के लिये "धन" सँपत्ति का स्त्रोत हुआ करता था और शूद्र इन सभी की सेवा का भार खुशी से अपने कँधों पर उठाता था, ताकि सभी अपने अपने कर्तव्य करते हुए प्रजा को सुखी रख सकें। एक सुँदर व्यवस्था बनी हुई थी वर्ण-व्यवस्था के द्वारा, जिसमें अपने अपने स्वभाव सँस्कार के अनुसार हरेक को अपना कर्तव्य करना होता था (और उसी कर्तव्य पालन को गीता ने स्वधर्म कहा)।
    आज के वैग्यानिकों को हम ब्राम्हणों की श्रेणी में ही रख सकते हैं

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  3. बोलो ऊँचे आसान स्थित ब्राहमण देवता की जय ...

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  4. मिश्र जी राम प्रसाद बिस्मिल जी चम्बल के तोमर राजपूत परिवार से थे।उनके पिता जी को शाहजहाँपुर आकर विद्वान होने के कारण पण्डित उपनाम पड़ गया था।आप चैक कर सकते हो।

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