Wednesday, September 11, 2013

स्वामीजी की वाणी....

किसी ने कहा कि "हम हिन्दुओं की कितनी सुंदर  सोच है जो की - अहिंसा को सबसे ज्यादा महत्व देते हैं" ...स्वामीजी अपने आपको नहीं रोक पाए और बीच में ही बोल पड़े
"ये सोच ही हमारे पतन का कारण बनी है .हमने इस अधूरे सत्य को पूर्ण सत्य मान लिया -हमने यहाँ भी धर्म का पालन नहीं किया। हमारी इस ही सोच के कारण, पहले मुगलों ने हमारे ऊपर शाशन किया और अब अंग्रेज हमारे ऊपर शाशन कर रहे हैं"

चर्चा गोष्ठी में सन्नाटा छा गया ..फिर भी किसी ने पूछा -" अहिंसा में बुराई ही क्या है ,स्वामी जी "
स्वामीजी की वाणी में ओज भर गया, बोले .."अहिंसा ठीक है, निश्चय ही बड़ी बात है। कहने में और सुनने में बात बहुत अच्छी लगती है ; किन्तु शास्त्र कहते हैं कि तुम गृहस्थ हो, तुम्हारे गाल पर यदि कोई थप्पड़ मारे और तुम उसका उत्तर दस थप्पड़ो से ना दो, तो तुम पाप करते हो " स्वमी जी ने आगे कहा ."मनुस्म्रति में भी मनु ने कहा है हत्या करने कोई आये ,तो एसा ब्रह्मवध भी पाप नहीं है "

तो फिर स्वामीजी , विश्व को एक कुटम्ब मानना। सब से बन्धुतत्व स्थापित करना, इसका क्या होगा ? प्रशन जैसे स्वामीजी के पीछे ही पड़े थे ..... स्वामीजी जी मुस्कराकर उसकी और देखा और मनमोहक मुस्कान लिए हुए बोले -

"अन्नाय मत करो, अत्याचार मत करो, यथाशाध्य परोपकार करो।किन्तुगृहस्थ के लिए अन्याय सहना पाप है। प्रतिकार उसका धर्म है। अन्याय का प्रतिशोध तत्काल लेना होगा।"...किसी पर पहले आक्रमण मत करो,पर अगर कोई करता है तो उसका प्रतिकार करो। पूर्ण शक्ति के साथ प्रतिकार करो। ये ही धर्म है और ये ही धार्मिकता है।"

याद रखों "अन्याय करने वाला तो पापी होता ही है पर उस से बड़ा पापी उसको चुपचाप सहने वाला होता है, बल्कि कायर भी होता है।अगर कोई तुम्हारे घर में घुसकर तुम्हारी स्त्री,को छेड़ता है तो तुम क्या करोगे। उसकी रक्षा करोगे या ये कहोगे की हम तो अहिंसा के पुजारी हैं जो तुमे करना है कर लो।"

अहिंसा परमो धर्मः - अधुरा है ,इसको पूरा ही जानना होगा और उस पर कर्म करना होगा। पूर्ण है अहिंसा परमो धर्मः -धर्म हिंसा तथीव च। "अहिंसा परम धर्म है परन्तु हिंसा का, धर्म के अनुसार प्रतिकार करना भी उतना ही परम धर्म है "


जय बाबा बनारस.....

2 comments:

  1. अधूरे सच को ही संपूर्ण माने बैठे हैं लोग।

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  2. बहुत कुछ ऐसा है जिसकी सच्चाई का लोगों को पता भी नहीं है !

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