जब एक परदेसी की अपने वतन की वापसी होती है उसके दिल में बहुत अरमान होते है
परदेसी को अपने वतन अपने गाँव अपने देश की मिटटी की खुसबू की याद आती है कभी वो याद कर के हँसता है कभी कुछ याद करके अपने आख को नम करता है परदेसी का दिल अपनों से मिलाने को तडफता है ,सबकी याद एक एक करके आती है ,और जब उस दौरान गाड़ी किसी कारन से देर होती है एक एक मिनट एक एक साल के बराबर लगता है
गाँव में सबको उसका बहुत इंतजार है, किसी के लिए रिमोट वाली कार लाया हूं तो किसी के लिए कैमरा... पूरे तीन साल बाद जो आ रहा हूं। तीन साल बाद क्यों आ रहे हो, पहले क्यों नहीं आए, यह पूछने पर वह बोला, बार-बार आऊंगा तो दिन रात काम करके जो पैसे बचाएं हैं वह टिकट पर ही खर्च हो जाएंगे। गांव में मकान पक्का करना है, बड़ा टीवी लगाना है, तीन जवान बहनें हैं जिनकी शादी भी करनी है। मुझे हिंदी फिल्मों के सीन याद आने लगे, बिल्कुल हीरो की तरह। उसकी लाइफ में भी इतना ही थ्रिल होता है।
परदेसी पुरे गाँव का एक हीरो होता है सबको उसका इन्तिज़ार होता है और परदेसी को अपनों का इन्तिज़ार होता है।
क्या आप परदेसी है ???????????????????
जी हाँ ! मैं भी अपने वतन (वाराणसी) जा रहा हूँ पता नहीं इंतजार कितना है
ReplyDeleteहमरा परदेसी अनिलवा (इंकमैंन) भी गाँव गया है.... अभी तक नहीं आया ...... और उ सब है जो आप लिख रहे हैं...
ReplyDeleteपरदेसी के वापसी की भी इन्तेज़ार होती है ?
और हाँ, आज पोस्ट बढिया लिखे हो मिसर जी, आईसी ही पोस्ट की अपेक्षा है आपसे.
ReplyDeleteसाधुवाद
sach mein bahut achha lagta hain jab gaon mein aatmiyta se log haal-chaal puchhte hai... aur ham unke haal samachar jaante hai... kayee sukh-dukh kee ghadiya chalchitra kee tarah saamne aati-jaati hai..
ReplyDeletebahut achha laga aapka aalekh.. gaon kee yaad yun to aati rahti hain lekin aisa kuch padh-sun lete hain to aur bhi aane lagti hai....
bhawukta bhari achchhi post.
ReplyDeletebhai verma ji aap ki yatra subh ho.
ReplyDeletejai ho baba ji ki kisi ka gam koi aur hi likh sakata hai.
kavita ji koie bas apno ki baat kar le yahi good feel deta hai.
ReplyDeletesurinder ji bhawana main aadmi pata nahi kiya kiya kar jata hai.yeh sab bhawuk man ki dastan hai.
जड़े हमे हमेशा अपनी ओर खींचती है और हम उनसे कभी अलग नही हो सकते ।
ReplyDeleteअपने वतन की खबर ही अंदर तक प्रफुल्लित कर देती है. अपने वतन को लौटने के समय जो ह्रदय में उल्हास और अपनों से मिलने की जो विव्हलता होती है उसका बहुत सुन्दर चित्रण...
ReplyDeleteअपने घर की याद इस पोस्ट जरिये हमने भी ताजा कर ली...... बहुत ही सुंदर पोस्ट .
ReplyDeleteहम सभी परदेसी हैं मिश्रा जी। अपनी जमीं से दूर। बहुत अच्छा लिखा है आपने।
ReplyDeleteवाह! बहुत संवेदनशील राचना।
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति. आभार.
ReplyDeleteसादर
डोरोथी.
दिल को छू लेने वाली अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteगांव बुलाता है....
ReplyDeleteआपका लेख दिल को छु गया ... हम भी परदेसी ही हैं .. :(
ReplyDeleteबिल्कुल सही फरमाया आपने...हुज़ूर!
ReplyDelete