Wednesday, February 2, 2011

प्रेम के बदले प्रेम दे सकते हो

एक बच्चा रोज अपने घर के पास के एक पेड़ के नीचे खेलने आता था। कभी वह पेड़ के चारों ओर घूमता, कभी नाचता। धीरे-धीरे उस पेड़ को बच्चे से प्रेम हो गया। अब पेड़ भी अपनी शाखाओं को नीचे कर देता ताकि उसकी नर्म पत्तियां उसके लाड़ले को सहला सकें और बच्चा उसकी शाखाओं पर लटक कर खेल सके।

बच्चा बड़ा होने लगा। वह कभी फूल तोड़ता, तो कभी फल खाता। कभी उसके फूलों का ताज पहन कर खुश होता। समय निरंतर बहता रहा। बच्चे का आना धीरे-धीरे कम होने लगा। फिर भी, जब कभी वह आता और उसकी शाखाओं पर चढ़ कर जोर-जोर से झूलता तो वृक्ष को बहुत खुशी होती।
फिर वह कभी आता, कभी नहीं आता। प्रेम एक प्रतीक्षा है। पेड़ की शाखाएं मन ही मन पुकारतीं, ओ मेरे बच्चे, मेरे पास आओ। पर लड़के की दुनिया फैल रही थी। वह पेड़ की परिधि से बाहर निकल रहा था। लंबे समय के बाद एक बार वह उस वृक्ष के पास आया। उस पेड़ की शाखाएं बोलीं, आओ हम तुम्हें याद करते हैं।

लड़का बोला, समय बदल गया है। अब मुझे पैसों की जरूरत होती है। उसके लिए मुझे कई जगहों पर जाना पड़ता है। तुम्हारे पास मैं कैसे और कब आऊं, तुम मुझे क्या पैसे दे सकते हो? पेड़ असमंजस में पड़ गया कि मैं तुम्हें पैसा कैसे दे सकता हूं। पैसा तो मनुष्य के पास होता है, पर मैं मनुष्य नहीं हूं। मेरे पास तो ऐसा कुछ भी नहीं है। हां, तुम मेरे फल तोड़ लो, उसे बेच कर तुम पैसा पा सकते हो।

लड़के ने वैसा ही किया। उसने बहुत सारे कच्चे- पक्के फल तोड़ लिए। इस कोशिश में पेड़ की कुछ शाखाएं भी टूट गईं। किंतु पेड़ खुश था कि वह जिसको प्रेम करता है उसके काम आया।
छोटा बच्चा जो अब बड़ा हो चुका था, वह फल बेचकर पैसा कमाने लगा। इस कोशिश में वह फिर उस पेड़ को भूल गया। और पेड़ फिर बेचैन होने लगा। उसकी शाखाएं फिर हवाओं को संदेश देने लगीं। इस बीच वह लड़का एक प्रौढ़ आदमी बन गया।

एक दिन घूमता हुआ वह पेड़ के पास से गुजरा, तो पेड़ ने उसे पुकारा, तुम तो मुझे भूल ही गए। मैं तुम्हें कितना याद करता हूं। उसने कहा, कैसे आऊं तुम्हारे पास, मुझे घर बनाना है। पेड़ बोला, हां, मनुष्य तो घर में ही रहते हैं। मैं खुली हवाओं में रहता हूं, इसलिए मुझे उसके महत्व का अंदाजा नहीं होता। किंतु तुम्हें तो चाहिए ही। तुम ऐसा करो कि मेरी शाखाएं काट लो। इससे शायद तुम्हारा घर बन जाए।

उसने आरी से पेड़ काट डाला। पेड़ एक ठूंठ बन कर रह गया , किंतु वह खुश था कि जिसको वह प्रेम करता है उसके काम आया। वह लकड़ी लेकर गया और एक आलीशान घर बनाया।

लेकिन कुछ दिनों बाद वह आदमी फिर उस ठूंठ बने पेड़ के पास लौटा। कहने लगा , मैं ने तुम्हारा सब कुछ ले लिया , फिर भी तुम सोच रहे हो कि आज मुझे कुछ नहीं दे पाओगे। पर आज मैं कुछ लेने नहीं आया क्षमा मांगने आया हूं तुम से। पेड़ ने कहा , प्रेम के बदले प्रेम दे सकते हो तो दो , मेरे पास क्षमा नहीं है। वह उस ठूंठ से चिपक गया और रोने लगा क्योंकि अब वह खुद बूढ़ा हो रहा था और बच्चों की नजर में ठूंठ हो गया था।

आज उसने उस ठूंठ के पास नन्हा पौधा लगाया और बोला , यह नन्हा पौधा तुम्हारा अस्तित्व बनेगा , किंतु तुम इसे किसी से प्रेम करना मत सिखाना। वृक्ष बोला , पर यही तो हमारी प्रकृति है। हमें तो प्रेम देना ही है , चाहे हमारा अस्तित्व समाप्त ही क्यूं न हो जाए।

7 comments:

  1. प्रेम के बदले प्रेम दे सकते हो तो दो , मेरे पास क्षमा नहीं है। वह उस ठूंठ से चिपक गया और रोने लगा क्योंकि अब वह खुद बूढ़ा हो रहा था और बच्चों की नजर में ठूंठ हो गया था।



    जिन्दगी की सच्चाई ही यही है ...लेकिन आपने बहुत सुंदर तरीके से समझा दिया ...आपका आभार

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  2. भूख भला कब शांत होती है........... अच्छी सीख देती हुई सुंदर कथा .

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  3. बहुत सार्थक सन्देश देती सुन्दर समसामयिक प्रस्तुति..

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  4. बहुत सुन्दर बोध कथा ।

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  5. मनुष्य की भूख कहाँ शान्त होती है भला। वृक्ष कबहुँ नहीं फल भखै...

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  6. बहुत सार्थक सन्देश

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