सावन के अंधे को हरा ही हरा नज़र आता है और कुछ नज़र ही नहीं आता है .
सावन मैं सब कुछ हरा ही हरा रहता है मौसम बहुत सुंदर रहता है
सब लोग उस मौसम को पसंद करते है मगर कुछ लोग उस मैं कुछ न कुछ
किन्तु परन्तु बता देते है किया किसी एक नजीर से पुरे के पुरे समाज की परिभासा नहीं लिखी जा सकती है.
शराबी को हर जगह शराबी मिल जाते है
तसडी को हर जगह तसडे मिल जाते है उसी तरह बुरे करने वालो को हर किसी बात मैं
हर किसी परंपरा मैं कुछ न कुछ बुराई नज़र आ ही जाती है .....क्योकि उनका चस्मा उसी को देखता है .........
जय बाबा बनारस .....
बिलकुल सही लिखा है आपने| धन्यवाद|
ReplyDeletebadhiya post.
ReplyDeleteसच कहा आपने।
ReplyDeleteजय बाबा बनारस ..
ReplyDeleteअगर गाँधी जी ने ऐसा सोचा होता तो हम आज़ाद ना होते
ReplyDeleteराज राम मोहन रॉय ने भी ऐसे ही सोचा होता तो सती प्रथा चल ही रही होती
सावन के अंधे नहीं हैं वो सब जो बदलाव की बात करते हैं
हाँ वो लोग जरुर डरपोक हैं जो हर बदलाव की बात पर डर जाते हैं
चाहत है मेरे मन में भी ,हास लिखू श्रृंगार लिखू
ReplyDeleteगीत लिखू मै सदा गुलाबी,कभी नहीं मै खार लिखू
पर जब दुश्मन ललकारे तो कैसे ना ललकार लिखू?
अपने देश के गद्दारों को कैसे ना गद्दार लिखू
हमें बाटकर खोद रहे जो जाति धरम की खाई हैं
खुलेआम मै कहता हूँ वो नेता नहीं कसाई हैं
जो आपस में हमको बाटें उनका शीश उतारेंगे
ऐसे नेताओं को हम चुन-चुन कर गोली मारेंगे
मत भारती के दामन पर दाग नहीं लगने देंगे
अपने घर में हम मज़हब की आग नहीं लगने देंगे
हमने तो गुरूद्वारे में भी जाकर शीश झुकाया है
बाईबल और कुरान को भी गीता का मान दिलाया है
हम ख्वाजा जी की मजार पर चादर सदा चढाते हैं
मुस्लिम पिट्ठू वैष्णो देवी के दर्शन करवाते हैं
किन्तु यहाँ एक दृश्य देखकर मेरी छाती फटती है
पाक जीतता है क्रिकेट में यहाँ मिठाई बटती है
उन लोगों से यही निवेदन,वो ये हरकत छोड़ दें
वरना आज और इसी वक़्त वो मेरा भारत छोड़
आँख मूँदकर कुछ करना, चाहे वो हाँ में हाँ मिलाना हो या फ़िर आदतन विरोध करना, वक्त की रफ़्तार को रोक देता है। आलोचनायें कमियों को दूर करने का सुंदर हथियार है, अगर कोई माने तो।
ReplyDeleteबकिया आप के पास तो बाबाजी जैसे उस्ताद का सान्निध्य है ही,
जय बाबा बनारस।