Thursday, September 15, 2011

सावन के अंधे को हरा ही हरा नज़र आता है

सावन के अंधे को हरा ही हरा नज़र आता है और कुछ नज़र ही नहीं आता है .
सावन मैं सब कुछ हरा ही हरा रहता है मौसम बहुत सुंदर रहता है 
सब लोग उस मौसम को पसंद करते है मगर कुछ लोग उस मैं कुछ न कुछ 
किन्तु परन्तु बता देते है किया किसी एक नजीर से पुरे के पुरे समाज की परिभासा नहीं लिखी जा सकती है.

शराबी को हर जगह शराबी मिल जाते है 
तसडी  को हर जगह तसडे मिल जाते है  उसी तरह बुरे करने वालो को हर किसी बात मैं 

हर किसी परंपरा  मैं कुछ न कुछ बुराई नज़र आ ही जाती है .....क्योकि उनका चस्मा उसी को देखता है .........

जय बाबा बनारस .....

7 comments:

  1. बिलकुल सही लिखा है आपने| धन्यवाद|

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  2. अगर गाँधी जी ने ऐसा सोचा होता तो हम आज़ाद ना होते
    राज राम मोहन रॉय ने भी ऐसे ही सोचा होता तो सती प्रथा चल ही रही होती

    सावन के अंधे नहीं हैं वो सब जो बदलाव की बात करते हैं
    हाँ वो लोग जरुर डरपोक हैं जो हर बदलाव की बात पर डर जाते हैं

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  3. चाहत है मेरे मन में भी ,हास लिखू श्रृंगार लिखू
    गीत लिखू मै सदा गुलाबी,कभी नहीं मै खार लिखू
    पर जब दुश्मन ललकारे तो कैसे ना ललकार लिखू?
    अपने देश के गद्दारों को कैसे ना गद्दार लिखू
    हमें बाटकर खोद रहे जो जाति धरम की खाई हैं
    खुलेआम मै कहता हूँ वो नेता नहीं कसाई हैं
    जो आपस में हमको बाटें उनका शीश उतारेंगे
    ऐसे नेताओं को हम चुन-चुन कर गोली मारेंगे
    मत भारती के दामन पर दाग नहीं लगने देंगे
    अपने घर में हम मज़हब की आग नहीं लगने देंगे
    हमने तो गुरूद्वारे में भी जाकर शीश झुकाया है
    बाईबल और कुरान को भी गीता का मान दिलाया है
    हम ख्वाजा जी की मजार पर चादर सदा चढाते हैं
    मुस्लिम पिट्ठू वैष्णो देवी के दर्शन करवाते हैं
    किन्तु यहाँ एक दृश्य देखकर मेरी छाती फटती है
    पाक जीतता है क्रिकेट में यहाँ मिठाई बटती है
    उन लोगों से यही निवेदन,वो ये हरकत छोड़ दें
    वरना आज और इसी वक़्त वो मेरा भारत छोड़

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  4. आँख मूँदकर कुछ करना, चाहे वो हाँ में हाँ मिलाना हो या फ़िर आदतन विरोध करना, वक्त की रफ़्तार को रोक देता है। आलोचनायें कमियों को दूर करने का सुंदर हथियार है, अगर कोई माने तो।
    बकिया आप के पास तो बाबाजी जैसे उस्ताद का सान्निध्य है ही,
    जय बाबा बनारस।

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