Friday, November 15, 2013

आप भी श्रेष्ठ का चुनाव करें ।

बहुत ही कम लोगों को ज्ञात होगा कि 'गंधासुर-वध' हेतु हुतात्मा पंडित नथुराम गोडसे जी, आप्टे जी, विष्णु करकरे, मदनलाल पाहवा, गोपाल जी गोडसे आदि ने मोहनदास करमचन्द गाज़ी पर 20 जनवरी को भी एक बम फेंका था बिरला हॉउस में ।

बिरला हाउस के गेटकीपर छोटूराम को रिश्वत देकर ये सभी लोग प्रार्थना सभा में घुस गये।
मदनलाल ने छोटूराम से कहा कि वह उन्हें सभा- स्थल के पीछे जाने दे जहाँ से
गान्धी की प्रार्थना सभा में उपस्थित जन
समुदाय की एक फोटो ली जा सके।

छोटूराम को जब मदनलाल पर शक हुआ तो उसने वहाँ से चले जाने को कहा। इस पर मदनलाल वापस लौटे और चहारदीवारी के ऊपर से गंधासुर गाज़ी जी सभा में हथगोला फेंककर वहाँ से भागे परन्तु भीड के हत्थे चढ गये।

उनके अन्य साथी प्रार्थना सभा में मची अफरा-तफरी का लाभ उठाकर बिरला हाउस से साफ बच निकले।

सरदार पटेल हिन्दू-महासभाईयों की दृढ़-संकल्पता से भली भांति परिचित थे, पटेल दुखी थे पहले ही गाँधी द्वारा पाकिस्तान को 55 करोड़ रूपये देने से ।
पटेल ने पहले भी कहा था कि यह 55 करोड़ गाँधी वध का कारण बनेगा, अत: पटेल ने भी कुछ सोच समझ कर बिरला हॉउस की सुरक्षा 6 दिन बाद कम कर दी ।

उस समय न तो मोबाइल था,
न पेजर, न FAX, न ही कोई और संचार व्यवस्था का साधन था ।

फिर भी अगले 10 दिन में ही एक और प्रयास किया गया जो कि सफल रहा ।

यहाँ उल्लेखनीय है कि 10 दिन तो किसी योजना के विफल हो जाने पर छिपने पर ही लग जाते हैं परन्तु हिन्दू महासभा के शूरवीरों ने अगले 10 दिनों में ही अपनी योजना को पुन: कार्यान्वित कर सफल बनाया, इससे क्या क्या सिद्ध हो सकता है आप सब विचार कर सकते हैं?

10 ही दिन में फरार भी हुए,
फिर अगली योजना भी बना डाली,
उसके लिए हथियार भी खरीदा,
टेस्ट भी किया और फिर गाँधी वध भी किया ।

स्पष्ट है कि संभव ही कोई दिन इन शूरवीरों ने व्यर्थ गंवाया होगा ।

रेलगाड़ियों में घूमते हुए ही सारी योजनायें बनी और संसाधन जुटाए गये ।

कानपुर जाते समय एक दिन गोडसे कुछ सोच रहे थे बाकी साथी हंसी मजाक में व्यस्त थे, आप्टे ने गोडसे जी को छेड़ते हुए कहा :- "पंडित अब तुम्हारी वाक्शक्ति क्या गाँधी वध के बाद ही सुनने को मिलेगी ?"

गोडसे जी बोले "नारायण मैंने निश्चय किया है की इस बार गोली मैं चलाऊंगा ।"

फिर योजना बनी की गाँधी की प्रार्थना सभा में गाँधी के सामने जाकर गोली मारी जाएगी ।

जब बिरला हॉउस में प्रवेश किया तो सौभाग्य से गोडसे जी से 4 कदम आगे ही गाँधी 2 महिलाओं को बैसाखी बना कर आगे बढ़ रहा था ।

गोडसे जी सहसा निर्णय लिया कि बाद में न जाने योजना सफल हो या न हो, अवसर प्राप्त हो या न हो, अभी जब गाँधी साथ ही चल रहा है तो ... "शुभ्स्थ शीघ्रम" ।

सहसा नथुराम गोडसे जी ने कदम तेज बढाये और भागते हुए गाँधी के सामने जाकर खड़े हो गये ।

गोडसे जी ने बरेटा पिस्तौल से गोलियां दागीं और... गंधासुर के मुंह से निकला "हराम..." ... ।

शब्द पूरा भी न हुआ था गंधासुर के प्राण पखेरू उड़ चुके थे

ऋषिभूमि का एक आर्यपुत्र जो शास्त्रों और शस्त्रों में अपनी आस्था रखता था वो अपनी भारत भूमि का विभाजन करवाने वाले पापी को उसके अपराध का दंड दे चुका था ।

भारत का अलोकतांत्रिक संविधान अभी पारित नही हुआ था, 26 जनवरी 1950 को संविधान के पारित होने के बाद ही गोडसे जी को फांसी दी जानी थी ।

परन्तु नेहरु जानता था कि उसने कैसा संविधान बनवाया है, उस संविधान के अनुसार कोई न कोई गोडसे जी की फांसी में अडचन डलवा सकता है ।

नेहरु ने दबाव डाल कर गोडसे और आप्टे जी को समय से पूर्व ही 15 नवम्बर 1949 को फांसी की सजा दिलवाई ।

आप्टे जी ने तो गोली भी नही चलवाई वो तो केवल षड्यंत्र में शामिल ही थे फिर भी उन्हें अंग्रेजों के संविधान की भांति ही अनीतिपूर्ण तरीके से मृत्यु दंड सुनाया गया ।

गान्धी-वध के अभियोग में आरोपित
सभी अभियुक्तों की सूची इस प्रकार है:

नाथूराम विनायक गोडसे,
नारायण दत्तात्रेय आप्टे,
विष्णु रामकृष्ण करकरे,
मदनलाल कश्मीरीलाल पाहवा,
गोपाल विनायक गोडसे,
शंकर किश्तैय्या,
दिगम्बर रामचन्द्र बडगे,
दत्तात्रेय सदाशिव परचुरे,
विनायक दामोदर सावरकर,
गंगाधर जाधव,
गंगाधर दण्डवते एवम्
सूर्यदेव शर्मा।

दिगम्बर बड़गे आदि ने विश्वासघात किया और सरकारी गवाह भी बने ।

ये सब शूरवीर भी आम भारतियों की भांति ही जीवनयापन कर रहे थे ।
इनके भी परिवार थे ।

गाँधी वध के समय इनके दिमाग ने भी संभवत: हजारों बार यह प्रश्न किया होगा कि परिवार का क्या होगा ?

परन्तु इन्होने सन्गठन और परिवार की चिंता किये बिना मातृभूमि हेतु सर्वस्व बलिदान देकर अपना सर्वोत्तम कर्म किया और भारत भूमि का एक और विभाजन अर्थात 'मुग्लिस्तान' बनने से बचाया ।

फलस्वरूप बिना व्यापक सूचना तन्त्र के भी अहिंसा का ढिंढोरा पीटने वाले कांग्रेसियों ने हिन्दू महासभाईयों के गढ़ कहे जाने वाले पुणे पर एक बहुत बड़ी संख्या में सुनियोजित नेतृत्व में हमला किया और 6000 चित्पावन ब्राह्मणों को चुन चुन कर जिन्दा जला दिया गया ।
20000 से अधिक चित्पावन ब्राह्मणों के घर, दूकान, गोदाम आदि जला दिए गये ।

जो हिन्दू-महासभाई आरोप मुक्त हुए या दंड पाकर जेल से निकले उन्हें कोई नौकरी तक न देता था ।

हिन्दू-महासभाई सुन कर ही लोग मन ही मन में बहिष्कार कर देते थे ।

हिन्दू-महासभाईयों के पुत्र-पुत्रियों के साथ कोई भी परिवार वैवाहिक संबंध बनाने से मना कर देते थे ।

व्यापारिक रूप से भी बहुत अपमानित और उपेक्षित होना पड़ा हिन्दू महासभाइयों को ... निरंतर पडते आयकर के छापे, जाँच ।

Sales Tax के छापे पड़वा कर उन्हें परेशान करना आम बात हो गई थी ।

सगे सम्बन्धी भी हिन्दू महासभा का नाम सुनकर दूर भागते थे ।

ये सब नेहरु की सरकारी नीतियों द्वारा पोषित हुआ ।

आज जो सडकछाप फेसबुकिए अपनी बिना हड्डी की जुबान चला कर ये कहते नही थकते हैं कि इतने वर्षों में हिन्दू महासभा दोबारा क्यों न खड़ी हुई उन्हें संभवत: अंदाजा ही नही कि हिन्दू महासभाई होना किस प्रकार अभिशप्त हो चुका था उस समय ।

हालात ऐसे थे कि चुनाव लड़ने हेतु भी कोई वित्तीय सहायता पाना असंभव होता था ।

अभिशप्त जीवन जीना कैसा होता है ये हिन्दू महासभाई जानते हैं ।



कुछ तो अवसर ही नही छोड़ते अपमानित करने का, झूठी बातें बना कर भी दुष्प्रचार करने में कोई लज्जा नही आती न ही अंतरात्मा धिक्कारती है ऐसे अहिंदुओं की ।

इतिहास साक्षी है प्रत्येक नीति-अनीति द्वारा व्याप्त रोष से जनित अच्छे बुरे कर्म कर्म का ... क्रिया का और प्रतिक्रिया का ।

आप भी श्रेष्ठ का चुनाव करें ।

आप सबसे विनम्र अनुरोश है की अपने इतिहास को जानें, जो की आवश्यक है की अपने पूर्वजों के इतिहास जो जानें और समझने का प्रयास करें....
उनके द्वारा स्थापित किये गए सिद्धांतों को जीवित रखें l

जिस सनातन संस्कृति को जीवित रखने के लिए और अखंड भारत की सीमाओं की सीमाओं की रक्षा हेतु हमारे असंख्य पूर्वजों ने अपने शौर्य और पराक्रम से अनेकों बार अपने प्राणों तक की आहुति दी गयी हो, उसे हम किस प्रकार आसानी से भुलाते जा रहे हैं l

सीमाएं उसी राष्ट्र की विकसित और सुरक्षित रहेंगी ... जो सदैव संघर्षरत रहेंगे l
जो लड़ना ही भूल जाएँ वो न स्वयं सुरक्षित रहेंगे न ही अपने राष्ट्र को सुरक्षित बना पाएंगे l

No comments:

Post a Comment